Wednesday, October 5, 2016

निजी विद्यालय है भेदभाव की जगह - विष्णु पाटीदार

विष्णु पाटीदार -RTE  अंतर्गत निजी विद्यालय में कमजोर वर्ग के 25 प्रतिशत भर्ती के कारण शासकीय शालाओं में दर्ज संख्या में काफी कमी आ गई क्योंकि वैसे भी शासकीय शालाओं में इन कमजोर वर्ग के बच्चों का हीं अधिक प्रवेश होता था उच्च वर्ग के बच्चे तो वैसे भी कम ही आते थे इससे सरकारी विद्यालय के साथ साथ समाज पर भी बहूत असर हुआ, कमजोर वर्ग के बच्चे उच्च वर्ग के बच्चों के साथ पढ़ने लगे जिससे कमजोर वर्ग अपने आप को गौरवान्वित महसूस करने लगा तथा उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलने लगी । नीजी स्कूलों ने भी इसका भरपूर फायदा उठाया क्योंकि बच्चों की फीस तो सरकार वहन कर हीं देती है लेकिन निजी स्कूल वाले इन बच्चो के साथ भेदभाव कर अलग से कक्ष में बैठाकर मुख्य धारा से अलग रखते हैं नियमों का पालन करते हुए इन बच्चों को उच्च वर्ग के बच्चों के साथ बैठाकर नहीं पढ़ाते साथ हीं टारगेट पूरा करने के लिए निर्धारित आयु से कम आयु या अधिक आयु के बच्चों को भी भर्ती कर लेते हैं । सरकार की कमजोर तबके को मुख्य धारा में जोड़ने की पहल अच्छी थी लेकिन कतिपय निजी विद्यालयों ने इसका नाजायज फायदा उठाया और इसी के कारण सरकारी विद्यालयों में दर्ज संख्या में कमी आने का एक कारण यह भी हो सकता है ।(लेखक स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार है ।)



( RTE अन्तर्गत वंचित तबके के बच्चों को निजी विद्यालयों में 25  प्रतिशत स्थान पर प्रवेश का सरकारी विद्यालयो और समाज पर प्रभाव )

तृतीय  स्थान पर पर यह लेख चयनित किया गया। 

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Wednesday, October 5, 2016

निजी विद्यालय है भेदभाव की जगह - विष्णु पाटीदार

विष्णु पाटीदार -RTE  अंतर्गत निजी विद्यालय में कमजोर वर्ग के 25 प्रतिशत भर्ती के कारण शासकीय शालाओं में दर्ज संख्या में काफी कमी आ गई क्योंकि वैसे भी शासकीय शालाओं में इन कमजोर वर्ग के बच्चों का हीं अधिक प्रवेश होता था उच्च वर्ग के बच्चे तो वैसे भी कम ही आते थे इससे सरकारी विद्यालय के साथ साथ समाज पर भी बहूत असर हुआ, कमजोर वर्ग के बच्चे उच्च वर्ग के बच्चों के साथ पढ़ने लगे जिससे कमजोर वर्ग अपने आप को गौरवान्वित महसूस करने लगा तथा उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलने लगी । नीजी स्कूलों ने भी इसका भरपूर फायदा उठाया क्योंकि बच्चों की फीस तो सरकार वहन कर हीं देती है लेकिन निजी स्कूल वाले इन बच्चो के साथ भेदभाव कर अलग से कक्ष में बैठाकर मुख्य धारा से अलग रखते हैं नियमों का पालन करते हुए इन बच्चों को उच्च वर्ग के बच्चों के साथ बैठाकर नहीं पढ़ाते साथ हीं टारगेट पूरा करने के लिए निर्धारित आयु से कम आयु या अधिक आयु के बच्चों को भी भर्ती कर लेते हैं । सरकार की कमजोर तबके को मुख्य धारा में जोड़ने की पहल अच्छी थी लेकिन कतिपय निजी विद्यालयों ने इसका नाजायज फायदा उठाया और इसी के कारण सरकारी विद्यालयों में दर्ज संख्या में कमी आने का एक कारण यह भी हो सकता है ।(लेखक स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार है ।)



( RTE अन्तर्गत वंचित तबके के बच्चों को निजी विद्यालयों में 25  प्रतिशत स्थान पर प्रवेश का सरकारी विद्यालयो और समाज पर प्रभाव )

तृतीय  स्थान पर पर यह लेख चयनित किया गया। 

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