Friday, October 14, 2016

बच्चे दक्षता प्राप्त कर सकें ऐसा पाठ्यक्रम होना चाहिए - विवेक मिश्रा ( नरसिंहपुर )

विवेक मिश्रा: यह भी सही है कि एक देश, एक समान शिक्षा, एक समान पाठ्यक्रम होना चाहिए. यह भी सही है कि माॅडल आन्सरशीट के अनुसार नंबर दिये जाने का प्रावधान है और न देने की स्थिति में जुर्माना भी लगाया जाना है, यह भी सही है कि राजीव गाँधी शिक्षा मिशन, सर्व शिक्षा अभियान के बाद राज्य शिक्षा सेवा में भी एसी मेें बैठे कुछ अधिकारियों के बदलने के मुताबिक दूसरों से हटकर दिखाने के लिए नीतियां बनाई जायेंगी, जो कुछ समय परिवर्तित हो जायेंगी, यह भी सही है कि इनके अनुरूप बहुत बड़ी संख्या में बहुत बड़े बजट पर निःशुल्क वितरण हेतु पुस्तकों का प्रिटिंग कार्य किया जाता है, जो कुछ समय में परिवर्तित हो जायेंगी, यह भी सही है कि पाठ्यक्रम और नीति देशकाल और वातावरण के अनुरूप होना चाहिए क्योंकि दिल्ली, मुंबई के बच्चों के आईक्यू और म. प्र. के एक गाँव के बच्चे के आईक्यू में बहुत अंतर होता है, यह भी सही है कि नीति निर्धारण व निर्मात्री समिति में शिक्षक संवर्ग को सम्मिलित अवश्य किया जाता है, पर अंतिम निर्णय तो आईएएस केडर ही लेता है जिनके बच्चों को कभी सरकारी स्कूल में पढ़ने नहीं आना है, नित नए सरकारी आदेशों के परिपालन के उपरांत यदि गैर शैक्षणिक लेखन, डाक निर्माण, प्रशिक्षण इत्यादि से फुर्सत मिल जाती है तो वह विधि ही सर्वोत्तम है जो किसी शहरी /ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे को वहां उसके देशकाल और वातावरण के अनुसार किसी भी कॉन्सेप्ट को सहजता से समझाने में मददगार हो अर्थात निर्धारित नीति अनुसार किताबी ज्ञान ग्रहण कराने से बेहतर है कि उन्हें सहज और व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाये जो स्थायी हो.
तो अंत में मेरा तो केवल इतना ही कहना है कि नीतियों के सही /गलत के विषय में हम हर साल उलझते /सुलझते रहे हैं परंतु सभी बच्चों में निर्धारित वांछित दक्षताओं का शतप्रतिशत लक्ष्य हासिल हो जाये, एेसा सैद्धांतिक रूप से कहा जा सकता है परंतु व्यावहारिक रूप से नहीं, क्योंकि प्राईमरी बच्चों के बस्तों के बढ़ते हुए वजन ही इस बात के जीते जागते उदाहरण हैं, शायद बिना बस्ते वाले स्कूलों की योजना भी बनाई गई है, कितनी चल रही है, कैसे चल रही है, कब तक चलेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता, वैसे इस लेख के बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता है कि इसमें जो कुछ भी कहने की जुर्रत की है, वो शिक्षकीय सदन कितना स्वीकारता है और कितना अस्वीकृत करता है, पर कुछ भी हो, रख तो अपनों के बीच ही रहा हूँ..          वैसे एक बात और भी कहना चाहता हूँ कि उपरोक्त विषय पर ऊपर भी सभी सम्मानीय साथियों द्वारा अपने अपने विचार तर्क सहित रखे जा चुके हैं, जो बेहद सटीक और विषयानुकूल हैं, सो मेरे पास लेख में ज्यादा कुछ कहने या लिखने को शेष नहीं रह जाता है,

 लेखक स्वय अध्यापक  हैं और यह उनकी निजी राय है  "सरकारी विद्यालयों में राष्ट्रीय स्तर पर सामान पाठ्य क्रम होना क्यों आवश्यक है ? " विषय पर आप ने पक्ष में लिखा है आप के लेख  को संयुक्त रूप से द्वितीय  स्थान पर चुना गया है। 


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Friday, October 14, 2016

बच्चे दक्षता प्राप्त कर सकें ऐसा पाठ्यक्रम होना चाहिए - विवेक मिश्रा ( नरसिंहपुर )

विवेक मिश्रा: यह भी सही है कि एक देश, एक समान शिक्षा, एक समान पाठ्यक्रम होना चाहिए. यह भी सही है कि माॅडल आन्सरशीट के अनुसार नंबर दिये जाने का प्रावधान है और न देने की स्थिति में जुर्माना भी लगाया जाना है, यह भी सही है कि राजीव गाँधी शिक्षा मिशन, सर्व शिक्षा अभियान के बाद राज्य शिक्षा सेवा में भी एसी मेें बैठे कुछ अधिकारियों के बदलने के मुताबिक दूसरों से हटकर दिखाने के लिए नीतियां बनाई जायेंगी, जो कुछ समय परिवर्तित हो जायेंगी, यह भी सही है कि इनके अनुरूप बहुत बड़ी संख्या में बहुत बड़े बजट पर निःशुल्क वितरण हेतु पुस्तकों का प्रिटिंग कार्य किया जाता है, जो कुछ समय में परिवर्तित हो जायेंगी, यह भी सही है कि पाठ्यक्रम और नीति देशकाल और वातावरण के अनुरूप होना चाहिए क्योंकि दिल्ली, मुंबई के बच्चों के आईक्यू और म. प्र. के एक गाँव के बच्चे के आईक्यू में बहुत अंतर होता है, यह भी सही है कि नीति निर्धारण व निर्मात्री समिति में शिक्षक संवर्ग को सम्मिलित अवश्य किया जाता है, पर अंतिम निर्णय तो आईएएस केडर ही लेता है जिनके बच्चों को कभी सरकारी स्कूल में पढ़ने नहीं आना है, नित नए सरकारी आदेशों के परिपालन के उपरांत यदि गैर शैक्षणिक लेखन, डाक निर्माण, प्रशिक्षण इत्यादि से फुर्सत मिल जाती है तो वह विधि ही सर्वोत्तम है जो किसी शहरी /ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे को वहां उसके देशकाल और वातावरण के अनुसार किसी भी कॉन्सेप्ट को सहजता से समझाने में मददगार हो अर्थात निर्धारित नीति अनुसार किताबी ज्ञान ग्रहण कराने से बेहतर है कि उन्हें सहज और व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाये जो स्थायी हो.
तो अंत में मेरा तो केवल इतना ही कहना है कि नीतियों के सही /गलत के विषय में हम हर साल उलझते /सुलझते रहे हैं परंतु सभी बच्चों में निर्धारित वांछित दक्षताओं का शतप्रतिशत लक्ष्य हासिल हो जाये, एेसा सैद्धांतिक रूप से कहा जा सकता है परंतु व्यावहारिक रूप से नहीं, क्योंकि प्राईमरी बच्चों के बस्तों के बढ़ते हुए वजन ही इस बात के जीते जागते उदाहरण हैं, शायद बिना बस्ते वाले स्कूलों की योजना भी बनाई गई है, कितनी चल रही है, कैसे चल रही है, कब तक चलेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता, वैसे इस लेख के बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता है कि इसमें जो कुछ भी कहने की जुर्रत की है, वो शिक्षकीय सदन कितना स्वीकारता है और कितना अस्वीकृत करता है, पर कुछ भी हो, रख तो अपनों के बीच ही रहा हूँ..          वैसे एक बात और भी कहना चाहता हूँ कि उपरोक्त विषय पर ऊपर भी सभी सम्मानीय साथियों द्वारा अपने अपने विचार तर्क सहित रखे जा चुके हैं, जो बेहद सटीक और विषयानुकूल हैं, सो मेरे पास लेख में ज्यादा कुछ कहने या लिखने को शेष नहीं रह जाता है,

 लेखक स्वय अध्यापक  हैं और यह उनकी निजी राय है  "सरकारी विद्यालयों में राष्ट्रीय स्तर पर सामान पाठ्य क्रम होना क्यों आवश्यक है ? " विषय पर आप ने पक्ष में लिखा है आप के लेख  को संयुक्त रूप से द्वितीय  स्थान पर चुना गया है। 


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