सचिन गुप्ता ( खितौली ) - लोकसेवकों(अफसर,कर्मचारी,विधायक,सांसद) के बच्चे ही क्यों ? अभिनेता,व्यापारी,उधोगपतियों,पत्रकारों व अन्य वर्गो या देश के समस्त बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूलों में कराने का आदेश क्यों नहीं ?
क्या केवल लोकसेवकों के बच्चों के नामांकन करा देने मात्र से शिक्षा का स्तर सुधर जाएगा क्या वाकई में ये इतने प्रभावशाली हैं ?
इस प्रयोग में दो बातें छिपी है ,
1. लोकसेवकों के माध्यम से शिक्षकों पर अध्यापन कार्य के लिए अतिरिक्त दबाव निर्मित करवाने की मंशा।
2. लोकसेवकों को उनके अपने बच्चे के माध्यम से सरकारी स्कूलों की हालत का प्रत्यक्ष रूप से सामना करवाने की मंशा
उपर्युक्त दोनों मंशाओ में शोषण छिपा है पहली बात में शिक्षक का और दूसरी बात में लोकसेवकों के बच्चों का जिनका उपयोग किया जाना है।
अगर आप मान रहें हैं कि लोकसेवकों के बच्चों के नामांकन मात्र भर से सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर सुधर जाएगा तो थोडा रूकिए , फिर सोचिए ........ कही ये अभिभावकों का अपने बच्चे के सुरक्षित भविष्य के लिए निर्णय लेने के अधिकार का हनन तो नहीं ?
इस प्रयोग में दो बातें छिपी है ,
1. लोकसेवकों के माध्यम से शिक्षकों पर अध्यापन कार्य के लिए अतिरिक्त दबाव निर्मित करवाने की मंशा।
2. लोकसेवकों को उनके अपने बच्चे के माध्यम से सरकारी स्कूलों की हालत का प्रत्यक्ष रूप से सामना करवाने की मंशा
उपर्युक्त दोनों मंशाओ में शोषण छिपा है पहली बात में शिक्षक का और दूसरी बात में लोकसेवकों के बच्चों का जिनका उपयोग किया जाना है।
अगर आप मान रहें हैं कि लोकसेवकों के बच्चों के नामांकन मात्र भर से सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर सुधर जाएगा तो थोडा रूकिए , फिर सोचिए ........ कही ये अभिभावकों का अपने बच्चे के सुरक्षित भविष्य के लिए निर्णय लेने के अधिकार का हनन तो नहीं ?
एक जिले में कितने विधायक हैं औसतन 4-5 ,सांसद की संख्या जिले में 1 भी नहीं होती प्रथम द्वितीय श्रेणी के अधिकारी 200-400 की सीमा में ही होंगे और तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों के बच्चे प्राय: सरकारी स्कूल में ही पढते हैं जबकि सरकारी स्कूल सैकड़ो की तादात में ।
महज 500 बच्चें जो बाध्यता की स्थिति में जिले में ही स्थित सरकारी स्कूलों को प्राथमिकता देंगे तो क्या इस आदेश से अंतिम छोर में सुदूर स्थित ग्रामीण अंचलों की, जहाँ पहुँचने के लिए आज भी पक्का रास्ता नहीं है ,शिक्षा स्तर में सुधार हो पाएगा और इस बात की क्या गारंटी है कि शहरी क्षेत्र के सरकारी स्कूलों का स्तर ऐसा होने पर सुधर जाएगा अगर सुधार न हुआ तो कल को दलीलें दी जाएगी सारी स्कूलों को बंद करके जिले में केवल एक विशाल सर्वसुविधायुक्त स्कूल खोल दिया जाएँ जहाँ सब पढें तब भी सफल न हुए तो कहा जाएगा कि शिक्षा केवल जागरूक कर धनाढ्यौ को दी जाए और वंचित ,कमजोर वर्ग के हाथों से शिक्षा फिसल जाएँ ।
मामला उलझता जाएगा अंत में शिक्षा का मजाक बन जाएगा ।
वर्तमान में समस्त लोकसेवकों के बच्चें भव्य निजी स्कूलों में पढ रहे हैं तो क्या ये सभी पूर्णतः दक्ष हो जाते हैं। अपेक्षित परिणाम न आने पर क्या ये लोग निजी विधालयों पर दबाव बना पाते हैं ?
वैसे भी निजी स्कूलों की तरफ लोगों का बढता हुआ आर्कषण उनकी शिक्षा देने की कला व तरीका नहीं बल्कि अँग्रेजी भाषा के ग्लोबलाइज होने के कारण उसकी बढती हुयी माँग ,खेल विधा ,कंप्यूटर व अन्य सांस्कृतिक ,आधुनिक गतिविधियाँ हैं जिससे छात्र का सर्वागीण विकास होता है जबकि सरकारी स्कूल इन सारी सुविधाओं से आज भी वंचित हैं जबकि सयकारी स्कूलों की उपयोगिता आज भी ग्रामीण अंचलों में ज्यादा है
निष्कर्ष यह है कि अनावश्यक रूप से नए नए प्रयोगों को जन्म देकर; शिक्षक समुदाय पर किसी भी तरह के दबाव डालने की छिपी हुयी मंशा को पूरा करने की कोशिश करने के बजाए ; शिक्षा के स्तर को सुधारने हेतु ; शिक्षकों का सहयोग लेकर वास्तविक समस्याओं को चिन्हित कर; उनको दूर करने के सकारात्मक उपाय किए जाएँ ।
लेखक सवयं अध्यापक है और यह इनके निजी विचार है -यह लेख बुधवार और गुरूवार को शिक्षा विमर्श में चर्चा के विषय
' माननीय ईलाहबाद उच्च न्यायालय का आदेश जिसमे प्रत्येक लोकसेवक "अफसर ,कर्मचारी ,विधायक और सांसद " को अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों में पढ़ाने का आदेश ' में संयुक्त रूप से प्रथम स्थान पर चुना गया है .
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