सीमा चावल - आज शिक्षक डरा सहमा व भयग्रस्त है । समुदाय की सबसे बड़ी समस्या अस्तित्व ,गरिमा एवं स्वाभिमान को बचाने की है । प्रशासन ने शिक्षा में गुणवत्ता के नाम पर अनाप शनाप धन खर्च करने के लिए ऐसी नीतियों को निर्माण करवाया है जिससे निजी स्कूल फले फुले व् सरकारी स्कूल व् शिक्षक की बदनामी हो । समाज व् सरकार इन स्कूलो से घृणा करे ताकि सम्पन्न लोगो के बच्चे निजी स्कूलो में पढ़े । गरीबो की पहुँच में शिक्षा रहे ही नही । यह अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने का प्रयास भी है । आज समाज को भी इस समस्या की सच्चाई को समझना होगा । मुझे यह बताने में शर्म आती है कि हमारे अधिकारियो ने शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए हर सप्ताह प्रति माह संकूल स्तर पर विषयवार प्रशिक्षण आयोजित करने का कार्यक्रम तय किया है आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि प्राथमिक विद्यालय में दो शिक्षक में से 5वीं पढ़ाने वाले को प्रतिमाह 8 दिन प्रशिक्षण लेने जाना है । जिनकी गुणवत्ता के लिए उसे महीने में 10 से 12 दिन पढ़ाने का समय मिलता है । प्रशिक्षण उन्ही शिक्षको में एक को देना है कुछ नही होता केवल बैठने के । क्या इससे गुणवत्ता बढ़ेगी ?
इससे भी बड़ी बात तो यह है कि इन प्रशासनिक विशेषकर IAS ने शिक्षको को डाकू लुटेरे चोर समझकर स्कूलो में निरीक्षण अवलोकन व् सरकूलर जारी किए है । नीतियों को बनवाया है । छात्रवृति सायकल mdm पाठ्यपुस्तक वितरण गणवेश आदि योजनाओ में हमारे साथ अविश्वास किया जाता है । इसी कारण हर साल ,आए दिन बदलाव कर, निरीक्षण में शंकाए व्यक्त होती है ।जबकि बहुत सी बातो के लिए हमसे अविश्वास कर योजना सञ्चालन किसी ओर से कराया जाता है व् जिम्मेदार शिक्षक को बनाया जाता है ।
आज बड़वानी की घटना से हमे सोचना चाहिए कि जब mdm समूह बनाता है । उससे सम्बन्ध जनपद का है । तो मात्र जनशिक्षक को दोषी मानना क्या शिक्षक के प्रति प्रशासन की दुर्भावनाए नही तो क्या है ? क्या केवल आत्महत्या हमारे अस्तित्व स्वाभिमान व् गरिमा को बचाने का हल है ?क्या यह सबसे बड़ी समस्या नही है ? हम स्व प्रकाशजी चौहान बड़वानी को इस रूप में अपनी श्रद्धांजलि दे कि किसी ओर शिक्षक को ऐसा कदम उठाने कि अवश्यकता नही महूसस हो ।
मित्रो अब समय आ गया है कि हम इनकी कुत्सित चालो को समझकर सारे थोपे गए गैर शैक्षणिक कार्य छोड़े और मात्र हमारा मूल कार्य पढ़ाई के लिए संघर्ष करे । सङ्कल्प करे कि हम बच्चों के आलावा किसी से नही डरेंगे । पढ़ाने के आलावा कोई गैर शैक्षिक कार्य नही करेंगे । सरकार से पढ़ाने के लिए लडेंगे ।
आज बड़वानी की घटना से हमे सोचना चाहिए कि जब mdm समूह बनाता है । उससे सम्बन्ध जनपद का है । तो मात्र जनशिक्षक को दोषी मानना क्या शिक्षक के प्रति प्रशासन की दुर्भावनाए नही तो क्या है ? क्या केवल आत्महत्या हमारे अस्तित्व स्वाभिमान व् गरिमा को बचाने का हल है ?क्या यह सबसे बड़ी समस्या नही है ? हम स्व प्रकाशजी चौहान बड़वानी को इस रूप में अपनी श्रद्धांजलि दे कि किसी ओर शिक्षक को ऐसा कदम उठाने कि अवश्यकता नही महूसस हो ।
मित्रो अब समय आ गया है कि हम इनकी कुत्सित चालो को समझकर सारे थोपे गए गैर शैक्षणिक कार्य छोड़े और मात्र हमारा मूल कार्य पढ़ाई के लिए संघर्ष करे । सङ्कल्प करे कि हम बच्चों के आलावा किसी से नही डरेंगे । पढ़ाने के आलावा कोई गैर शैक्षिक कार्य नही करेंगे । सरकार से पढ़ाने के लिए लडेंगे ।
( लेखक स्वय अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं " १९९८ के बाद नियुक्त शिक्षको का शिक्षा पर और स्वय उनके जिवन पर प्रभाव " विषय पर 2 दिवसीय विमर्श में सयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर इस रचना को रखा गया )
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