Saturday, October 1, 2016

कविता @ शिक्षाकर्मी बना दिया -अर्जुन पटेल


जीवन उधार जैसा बेशर्मी बना दिया।
वर्षों की साधना ने शिक्षाकर्मी बना दिया।
सन्98में एक ऐसी नीति आई।
पढे लिखे युवकों की जवानी शरमाई।
मजबूरी बस शेरों ने घास खाना स्वीकारा था।
500 के वेतन में महीने किया गुजारा था।
फिर भी जोश नहीँ था कम पूरे दम से काम किया।
तनिक दया न आई शाशन ने सौतेली सन्तान किया ।
फिर से काबिज होने सत्ता पर एक निवाला फेका था ।
लाचार शिक्षाकर्मी ने उसे आशा की नजर से देखा था।
फिर उम्मीदे टूट गयी।
किस्मत ही जैसे रूठ गई।
फिर इनकी अगवाई में कई बार बजाई है ताली।
पर पूरा भोजन भरकर कभी न दी इनने थाली।
उतने पर भी सभाजीत नीति लाते हैं जाली।
कल भी हाथ ख़ाली थे
आज भी हाथ हैं खाली।
बार बार मझधार में आपने ला छोड़ा है।
पर हमने अब भी उम्मीद को नहीं तोडा है।
जो आप बने हैं धर्मपिता।
तो अपना धर्म निभाना।
अपने वादे को पूरा कर
शिक्षक हमें बनाना।
वेतन भी दो गर पूरा
तो हम वो कर दिखलायेंगे।
मध्यप्रदेश को शिक्षा में
नम्बर एक पर लाएंगे।।

( लेखक स्वय अध्यापक  है और यह उनके निजी  विचार हैं " १९९८ के बाद नियुक्त शिक्षको का शिक्षा पर और स्वय उनके जिवन  पर प्रभाव " विषय पर  2 दिवसीय  विमर्श  में सयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर इस रचना को रखा गया )

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Saturday, October 1, 2016

कविता @ शिक्षाकर्मी बना दिया -अर्जुन पटेल


जीवन उधार जैसा बेशर्मी बना दिया।
वर्षों की साधना ने शिक्षाकर्मी बना दिया।
सन्98में एक ऐसी नीति आई।
पढे लिखे युवकों की जवानी शरमाई।
मजबूरी बस शेरों ने घास खाना स्वीकारा था।
500 के वेतन में महीने किया गुजारा था।
फिर भी जोश नहीँ था कम पूरे दम से काम किया।
तनिक दया न आई शाशन ने सौतेली सन्तान किया ।
फिर से काबिज होने सत्ता पर एक निवाला फेका था ।
लाचार शिक्षाकर्मी ने उसे आशा की नजर से देखा था।
फिर उम्मीदे टूट गयी।
किस्मत ही जैसे रूठ गई।
फिर इनकी अगवाई में कई बार बजाई है ताली।
पर पूरा भोजन भरकर कभी न दी इनने थाली।
उतने पर भी सभाजीत नीति लाते हैं जाली।
कल भी हाथ ख़ाली थे
आज भी हाथ हैं खाली।
बार बार मझधार में आपने ला छोड़ा है।
पर हमने अब भी उम्मीद को नहीं तोडा है।
जो आप बने हैं धर्मपिता।
तो अपना धर्म निभाना।
अपने वादे को पूरा कर
शिक्षक हमें बनाना।
वेतन भी दो गर पूरा
तो हम वो कर दिखलायेंगे।
मध्यप्रदेश को शिक्षा में
नम्बर एक पर लाएंगे।।

( लेखक स्वय अध्यापक  है और यह उनके निजी  विचार हैं " १९९८ के बाद नियुक्त शिक्षको का शिक्षा पर और स्वय उनके जिवन  पर प्रभाव " विषय पर  2 दिवसीय  विमर्श  में सयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर इस रचना को रखा गया )

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