वासुदेव शर्मा - एक ही दिन, एक ही वक्त, प्रदेशभर में जब 1 लाख अध्यापक एक साथ 25 सितंबर को तिरंगा लेकर सडक़ों पर उतरे, तो सभी हैरान-परेशान थे। हैरानी की वजह, ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ।
सरकार हैरान थी। मुख्यमंत्री परेशान थे।
हैरान परेशान अध्यापकों का नेतृत्व भी था। उसे भी ऐसी उम्मीद नहीं थी कि बिना उनके दौरो, अपीलों एवं आव्हान के बाद भी एक साथ इतनी अधिक संख्या में अध्यापक एकजुट होकर सरकार को ललकार देंगे।
सरकार की समस्या थी कि वह किससे बात करे, अध्यापकों को सडक़ पर आने से रोकने के लिए।
तिरंगा रैली के बाद अध्यापकों के नेतृत्व को उत्साह में आना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2 अक्टूबर की बैठक में यह साबित भी हुआ।
बहरहल,
चूंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद अध्यापक नेताओं से बातचीत की कमान संभाले हुए हैं। सीएम साहब भी खुद यह कह चुके हैं कि वे ही अध्यापकों के अच्छे दिन लाएंगे। अच्छे दिनों का इंतजार काफी लंबा हो गया है, अब इससे अधिक इंतजार करने के लिए अध्यापक तैयार नहीं है। 25 सितंबर की तिरंगा रैलियों के जरिए प्रदेशभर के अध्यापकों ने 21 सूत्रीय ज्ञापन देकर मुख्यमंत्री से यह कह दिया है।
अलग-अलग स्थानों से 9-10 बार छठवां वेतनमान दे चुके सीएम साहब 25 सितंबर के बाद खामोश हैं, उनकी यह खामोशी अध्यापकों के गुस्से को बढ़ाने का काम कर रही है, जिसकी अभिव्यक्ति 16 अक्टूबर को शहडोल
एवं 13 नवंबर को भोपाल में होगी।
जिस दिन अध्यापकों का गुस्सा चरम पर पहुंचेगा, उस दिन से शिवराज की सरकार लडख़ड़ाना शुरू कर देगी। यह चेतावनी 2 अक्टूबर को आर्य समाज धर्मशाला से अध्यापक संघर्ष समिति ने एक स्वर से दी है।
एकजुट हो चुके अध्यापकों ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं।
16 अक्टूबर को शहडोल में रैली कर सरकार को चेताया जाएगा। यदि अध्यापकों को संतुष्ट करने वाला गणपत्रक जारी नहीं हुआ और शिक्षा विभाग में संविलियन का रास्ता नहीं बनाया तो 13 नवंबर को राजधानी
भोपाल के रास्ते जाम कर दिए जाएंगे।
2 अक्टूबर को आर्य समाज धर्मशाला में हुई अध्यापक संघर्ष समिति की बैठक ने निर्णय लिया था कि 13 नवंबर को भोपाल में रैली की जाएगी, जिसमें प्रदेश भर से 2 लाख से अधिक अध्यापक हिस्सा लेंगे।
13 नवंबर की रैली की तैयारियों के लिए 6 नवंबर को जिला मुख्यालयों पर विशाल धरने दिए जाएंगे, जिनमें 100 प्रतिशत अध्यापकों की भागीदारी सुनिश्चित कराने का संकल्प भी अध्यापक संघर्ष समिति ने 2 अक्टूबर की बैठक में लिया है यानि इस बार अध्यापक संगठनों की सीमाओं से ऊपर जाकर अपने भविष्य को बचाने की लड़ाई खुद लड़ रहा है, 25 सितंबर की तिरंगा रैली यह साबित कर चुकी है और 13 नवंबर की भोपाल रैली के वक्त अध्यापकों की एकजुटता का इतिहास लिखा जाएगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं .
सरकार हैरान थी। मुख्यमंत्री परेशान थे।
हैरान परेशान अध्यापकों का नेतृत्व भी था। उसे भी ऐसी उम्मीद नहीं थी कि बिना उनके दौरो, अपीलों एवं आव्हान के बाद भी एक साथ इतनी अधिक संख्या में अध्यापक एकजुट होकर सरकार को ललकार देंगे।
सरकार की समस्या थी कि वह किससे बात करे, अध्यापकों को सडक़ पर आने से रोकने के लिए।
तिरंगा रैली के बाद अध्यापकों के नेतृत्व को उत्साह में आना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2 अक्टूबर की बैठक में यह साबित भी हुआ।
बहरहल,
चूंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद अध्यापक नेताओं से बातचीत की कमान संभाले हुए हैं। सीएम साहब भी खुद यह कह चुके हैं कि वे ही अध्यापकों के अच्छे दिन लाएंगे। अच्छे दिनों का इंतजार काफी लंबा हो गया है, अब इससे अधिक इंतजार करने के लिए अध्यापक तैयार नहीं है। 25 सितंबर की तिरंगा रैलियों के जरिए प्रदेशभर के अध्यापकों ने 21 सूत्रीय ज्ञापन देकर मुख्यमंत्री से यह कह दिया है।
अलग-अलग स्थानों से 9-10 बार छठवां वेतनमान दे चुके सीएम साहब 25 सितंबर के बाद खामोश हैं, उनकी यह खामोशी अध्यापकों के गुस्से को बढ़ाने का काम कर रही है, जिसकी अभिव्यक्ति 16 अक्टूबर को शहडोल
एवं 13 नवंबर को भोपाल में होगी।
जिस दिन अध्यापकों का गुस्सा चरम पर पहुंचेगा, उस दिन से शिवराज की सरकार लडख़ड़ाना शुरू कर देगी। यह चेतावनी 2 अक्टूबर को आर्य समाज धर्मशाला से अध्यापक संघर्ष समिति ने एक स्वर से दी है।
एकजुट हो चुके अध्यापकों ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं।
16 अक्टूबर को शहडोल में रैली कर सरकार को चेताया जाएगा। यदि अध्यापकों को संतुष्ट करने वाला गणपत्रक जारी नहीं हुआ और शिक्षा विभाग में संविलियन का रास्ता नहीं बनाया तो 13 नवंबर को राजधानी
भोपाल के रास्ते जाम कर दिए जाएंगे।
2 अक्टूबर को आर्य समाज धर्मशाला में हुई अध्यापक संघर्ष समिति की बैठक ने निर्णय लिया था कि 13 नवंबर को भोपाल में रैली की जाएगी, जिसमें प्रदेश भर से 2 लाख से अधिक अध्यापक हिस्सा लेंगे।
13 नवंबर की रैली की तैयारियों के लिए 6 नवंबर को जिला मुख्यालयों पर विशाल धरने दिए जाएंगे, जिनमें 100 प्रतिशत अध्यापकों की भागीदारी सुनिश्चित कराने का संकल्प भी अध्यापक संघर्ष समिति ने 2 अक्टूबर की बैठक में लिया है यानि इस बार अध्यापक संगठनों की सीमाओं से ऊपर जाकर अपने भविष्य को बचाने की लड़ाई खुद लड़ रहा है, 25 सितंबर की तिरंगा रैली यह साबित कर चुकी है और 13 नवंबर की भोपाल रैली के वक्त अध्यापकों की एकजुटता का इतिहास लिखा जाएगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और यह उनके निजी विचार हैं .
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