Saturday, June 25, 2016

आम अध्यापक की एकता विखंडित क्यों ?-राशी राठौर देवास

राशी राठौर -अक्सर आम अध्यापक अपने अधिकारों को प्राप्त ना कर पाने के लिए संघीय राजनीती को दोषी ठहराते रहे है। ये बात सही भी है। एकता के सूत्र मै बंध के किये गये प्रयास विफल नही होते। किन्तु क्या हम सभी आम अध्यापक जिनमै नेताजी शामिल नही है ,वो सब एक है ? हम आम अध्यापक भी तो स्वयं गुरू होते हुऐ भी उसी संघीय मानसिकता के गुलाम है। ये संघ आव्हान करेगा तो हम जायेंगे , वो संघ आव्हान करेगा तो हम नही जायेंगे। वर्तमान मै अध्यापक हित मै जारी भोपाल का क्रमिक अनशन इसी संघवाद से घिरे अध्यापको की मानसिकता को उजागर करती है। 14 दिन से घर परिवार छोड कर भोपाल मै अध्यापक बैठै है किन्तु आम अध्यापक हर उस आवाज का समर्थन करने की बजाय ,जो उसके हक के लिए उठती है, उस आवाज की पहचान करने मै लगा की आवाज कौन दे रहा है। क्या अब आम अध्यापक स्वयं संघवाद की ओछी मानसिकता से बंधा अनुभव नही करता। हम से तो बेहतर अतिथी शिक्षक है जो अध्यापक से संख्या मै एक तिहाई भी नही है किन्तु हर जगह उनकी संख्या अध्यापक से अधिक होती है। क्योंकि उन्हें हक लेना है वो किसी संघ के बन्धवा नही है। कई दिनों से लगत अनशन पर बैठे अध्यापको का साहस जवाब दे जाये या शरीर साथ छोड जाये पर किन्तु संघवाद की जडे इतनी गहराई तक अध्यापक के ह्रदय मै उतर गयी है की उसी आधार पर अनेक अध्यापक समस्याएं फल-फूल रही है।आम अध्यापक की मानसिकता भी किसी ना किसी संघो के पूर्वाग्रह से ग्रसित प्रतित होती है।वो तो सिर्फ अलादीन के जिन्न  की तरह अपने आका के हुकम की तामील मै ही हाजरी दे सकते है। कौन है ये आका ? हमारे ही बीच के कुछ भाई बहन जो अपनी महत्वकांक्षा के चलते अध्यापको को एक नही होने देते। इस मानसिकता के साथ तो अध्यापक संघर्ष सफल कैसै होगा। आम अध्यापक को चाहिए की चेहरा नही उदेश्य पर ध्यान केन्द्रित कर अपना संघर्ष लडे। जो भी आवाज अध्यापक हित मै उठे उसका बिना किसी पूर्वाग्रह के सहयोग दे। ये अविस्मरणीय सत्य है की छोटे से संघ गुरूजी बिना किसी चयन प्रक्रिया से गुजरे एकता के बल पर संविदा बन गये, और अतिथी भी इसी तर्ज पर वेतन बढवाने, अनुभव के अंक लेने यहाँ तक की अब नियमितीकरण करवाने तक को आतुर है वो भी बिना किसी चयन प्रक्रिया से गुजरे, और एक अध्यापक है जिनको सरकार पिछले तीन साल मै छः बार छटवाँ देकर भी छका रही है।
लेखिका स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं ।

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Saturday, June 25, 2016

आम अध्यापक की एकता विखंडित क्यों ?-राशी राठौर देवास

राशी राठौर -अक्सर आम अध्यापक अपने अधिकारों को प्राप्त ना कर पाने के लिए संघीय राजनीती को दोषी ठहराते रहे है। ये बात सही भी है। एकता के सूत्र मै बंध के किये गये प्रयास विफल नही होते। किन्तु क्या हम सभी आम अध्यापक जिनमै नेताजी शामिल नही है ,वो सब एक है ? हम आम अध्यापक भी तो स्वयं गुरू होते हुऐ भी उसी संघीय मानसिकता के गुलाम है। ये संघ आव्हान करेगा तो हम जायेंगे , वो संघ आव्हान करेगा तो हम नही जायेंगे। वर्तमान मै अध्यापक हित मै जारी भोपाल का क्रमिक अनशन इसी संघवाद से घिरे अध्यापको की मानसिकता को उजागर करती है। 14 दिन से घर परिवार छोड कर भोपाल मै अध्यापक बैठै है किन्तु आम अध्यापक हर उस आवाज का समर्थन करने की बजाय ,जो उसके हक के लिए उठती है, उस आवाज की पहचान करने मै लगा की आवाज कौन दे रहा है। क्या अब आम अध्यापक स्वयं संघवाद की ओछी मानसिकता से बंधा अनुभव नही करता। हम से तो बेहतर अतिथी शिक्षक है जो अध्यापक से संख्या मै एक तिहाई भी नही है किन्तु हर जगह उनकी संख्या अध्यापक से अधिक होती है। क्योंकि उन्हें हक लेना है वो किसी संघ के बन्धवा नही है। कई दिनों से लगत अनशन पर बैठे अध्यापको का साहस जवाब दे जाये या शरीर साथ छोड जाये पर किन्तु संघवाद की जडे इतनी गहराई तक अध्यापक के ह्रदय मै उतर गयी है की उसी आधार पर अनेक अध्यापक समस्याएं फल-फूल रही है।आम अध्यापक की मानसिकता भी किसी ना किसी संघो के पूर्वाग्रह से ग्रसित प्रतित होती है।वो तो सिर्फ अलादीन के जिन्न  की तरह अपने आका के हुकम की तामील मै ही हाजरी दे सकते है। कौन है ये आका ? हमारे ही बीच के कुछ भाई बहन जो अपनी महत्वकांक्षा के चलते अध्यापको को एक नही होने देते। इस मानसिकता के साथ तो अध्यापक संघर्ष सफल कैसै होगा। आम अध्यापक को चाहिए की चेहरा नही उदेश्य पर ध्यान केन्द्रित कर अपना संघर्ष लडे। जो भी आवाज अध्यापक हित मै उठे उसका बिना किसी पूर्वाग्रह के सहयोग दे। ये अविस्मरणीय सत्य है की छोटे से संघ गुरूजी बिना किसी चयन प्रक्रिया से गुजरे एकता के बल पर संविदा बन गये, और अतिथी भी इसी तर्ज पर वेतन बढवाने, अनुभव के अंक लेने यहाँ तक की अब नियमितीकरण करवाने तक को आतुर है वो भी बिना किसी चयन प्रक्रिया से गुजरे, और एक अध्यापक है जिनको सरकार पिछले तीन साल मै छः बार छटवाँ देकर भी छका रही है।
लेखिका स्वयं अध्यापक है और यह उनके निजी विचार हैं ।

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