Thursday, June 23, 2016

पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे ने बढ़ाई अफसर-कर्मचारियों में दरार

भोपाल - आरएसएस और भाजपा पूरे देश में समरसता अभियान चला रहे हैं, वहीं पदोन्नति में आरक्षण मामले ने प्रदेश में सामान्य और एससी-एसटी वर्ग के बीच खासी दरार बना दी है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि एक ही दफ्तर में काम करने वाले आरक्षित और सामान्य वर्ग के कर्मचारी साथ में चाय पीना, भोजन करना तो दूर, बात करने से भी कतराने लगे हैं।
हाईकोर्ट ने 'मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002' खारिज कर दिया है। जिसे लेकर सामान्य एवं आरक्षित वर्ग के कर्मचारी एक-दूसरे के खिलाफ हो गए हैं। पूर्व आला अफसर इसके लिए सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। एससी-एसटी के पक्ष में दिए गए बयान ने माहौल बिगाड़ दिया है। अजाक्स और सपाक्स भी इन हालात की पुष्टि करते हैं।
अजाक्स नेता आरोप लगा रहे हैं कि सामान्य वर्ग के कुछ अफसर आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों की सीआर बिगाड़ रहे हैं, तो सपाक्स अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों की सीआर खराब करने के आरोप लगा रहा है। इस मसले पर दोनों संगठन मुख्य सचिव से मिलने की तैयारी कर रहे हैं।
उदाहरण-एक : मंत्रालय में 11 कर्मचारियों (सभी वर्ग) का ग्रुप रोज साथ में चाय पीने जाता था। 30 अप्रैल के बाद 5 कर्मचारियों ने ग्रुप का साथ छोड़ दिया। ये एक साथ बैठकर खाना खाते थे। वह भी बंद हो गया।

उदाहरण-दो : सतपुड़ा भवन में संचालित दफ्तर में साथ में बैठने वाले कर्मचारियों की टेबलें दूर हो गई हैं। दरअसल, ये बातचीत के दौरान आरक्षण पर बहस शुरू कर देते हैं। जिससे कई बार झगड़े की स्थिति निर्मित हो जाती है।


इनका कहना है

केएस शर्मा, पूर्व मुख्य सचिव -
इस मामले से प्रदेश में जातिवाद उभर आया है। जब अपील में सुप्रीम कोर्ट चले गए थे, तो एक पक्षीय बयान जारी नहीं करना था। अब जो हालात हैं वो प्रशासन और समाज के लिए ठीक नहीं। वोट की सियासत में समाज के हित की चीजें नजरंदाज हो रही हैं। 

मान दाहिमा, पूर्व आईएएस- आरक्षण का शुरू से विरोध हुआ, पर समरसता हर कीमत पर बनी रहनी चाहिए। आरक्षण चिर स्थाई व्यवस्था नहीं है। कानूनी लड़ाई लड़ना दोनों पक्षों का हक है, जो मित्रता रखते हुए लड़ी जाना चाहिए। आरक्षण को लेकर जैसा बयान आया है, वह नहीं आना था। उन्हें कहना था कि कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। 


डॉ. आनंद सिंह कुशवाह, अध्यक्ष, सपाक्स-आरक्षण पर राजनीति हो रही है। अधिकारियों-कर्मचारियों के बीच दूरियां बढ़ी हैं। वर्गवार पहचान शुरू हो गई है। इसे जल्द नहीं रोका गया, तो भविष्य में वर्ग संघर्ष की स्थिति भी बन जाएगी। आरक्षित वर्ग के अफसर अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों की सीआर खराब कर रहे हैं। 

एसएल सूर्यवंशी, महासचिव, अजाक्स- अफसर वर्गवार द्वेष भावना बढ़ा रहे हैं। आरक्षित वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को सताया जा रहा है। उनकी सीआर खराब कर रहे हैं। पहले फिजिकल, अब बौद्धिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं। सम्मेलन के बाद स्थिति बिगड़ी है।

स्त्रोत -नईदुनिया


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Thursday, June 23, 2016

पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे ने बढ़ाई अफसर-कर्मचारियों में दरार

भोपाल - आरएसएस और भाजपा पूरे देश में समरसता अभियान चला रहे हैं, वहीं पदोन्नति में आरक्षण मामले ने प्रदेश में सामान्य और एससी-एसटी वर्ग के बीच खासी दरार बना दी है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि एक ही दफ्तर में काम करने वाले आरक्षित और सामान्य वर्ग के कर्मचारी साथ में चाय पीना, भोजन करना तो दूर, बात करने से भी कतराने लगे हैं।
हाईकोर्ट ने 'मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002' खारिज कर दिया है। जिसे लेकर सामान्य एवं आरक्षित वर्ग के कर्मचारी एक-दूसरे के खिलाफ हो गए हैं। पूर्व आला अफसर इसके लिए सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। एससी-एसटी के पक्ष में दिए गए बयान ने माहौल बिगाड़ दिया है। अजाक्स और सपाक्स भी इन हालात की पुष्टि करते हैं।
अजाक्स नेता आरोप लगा रहे हैं कि सामान्य वर्ग के कुछ अफसर आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों की सीआर बिगाड़ रहे हैं, तो सपाक्स अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों की सीआर खराब करने के आरोप लगा रहा है। इस मसले पर दोनों संगठन मुख्य सचिव से मिलने की तैयारी कर रहे हैं।
उदाहरण-एक : मंत्रालय में 11 कर्मचारियों (सभी वर्ग) का ग्रुप रोज साथ में चाय पीने जाता था। 30 अप्रैल के बाद 5 कर्मचारियों ने ग्रुप का साथ छोड़ दिया। ये एक साथ बैठकर खाना खाते थे। वह भी बंद हो गया।

उदाहरण-दो : सतपुड़ा भवन में संचालित दफ्तर में साथ में बैठने वाले कर्मचारियों की टेबलें दूर हो गई हैं। दरअसल, ये बातचीत के दौरान आरक्षण पर बहस शुरू कर देते हैं। जिससे कई बार झगड़े की स्थिति निर्मित हो जाती है।


इनका कहना है

केएस शर्मा, पूर्व मुख्य सचिव -
इस मामले से प्रदेश में जातिवाद उभर आया है। जब अपील में सुप्रीम कोर्ट चले गए थे, तो एक पक्षीय बयान जारी नहीं करना था। अब जो हालात हैं वो प्रशासन और समाज के लिए ठीक नहीं। वोट की सियासत में समाज के हित की चीजें नजरंदाज हो रही हैं। 

मान दाहिमा, पूर्व आईएएस- आरक्षण का शुरू से विरोध हुआ, पर समरसता हर कीमत पर बनी रहनी चाहिए। आरक्षण चिर स्थाई व्यवस्था नहीं है। कानूनी लड़ाई लड़ना दोनों पक्षों का हक है, जो मित्रता रखते हुए लड़ी जाना चाहिए। आरक्षण को लेकर जैसा बयान आया है, वह नहीं आना था। उन्हें कहना था कि कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। 


डॉ. आनंद सिंह कुशवाह, अध्यक्ष, सपाक्स-आरक्षण पर राजनीति हो रही है। अधिकारियों-कर्मचारियों के बीच दूरियां बढ़ी हैं। वर्गवार पहचान शुरू हो गई है। इसे जल्द नहीं रोका गया, तो भविष्य में वर्ग संघर्ष की स्थिति भी बन जाएगी। आरक्षित वर्ग के अफसर अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों की सीआर खराब कर रहे हैं। 

एसएल सूर्यवंशी, महासचिव, अजाक्स- अफसर वर्गवार द्वेष भावना बढ़ा रहे हैं। आरक्षित वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को सताया जा रहा है। उनकी सीआर खराब कर रहे हैं। पहले फिजिकल, अब बौद्धिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं। सम्मेलन के बाद स्थिति बिगड़ी है।

स्त्रोत -नईदुनिया


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