Saturday, June 18, 2016

"क्या-खोया और क्या- पाया" -सियाराम पटेल नरसिंहपुर

  सियाराम पटेल नरसिंहपुर -आत्मचिंतन वर्तमान में सोशल मीडिया पर अध्यापक संवर्ग के मध्य चल रहे शीत वाकयुद्ध में सरकार जीत गयी और अध्यापक हार गए।   
      वर्ष 2013 में छटे वेतन की चार किस्तों में घोषणा को सभी संघों द्वारा स्वीकारने के बाद सतत निर्वाचन प्रक्रिया के चलते 2013 से 2015 तक  के लंबे अंतराल के मध्य अध्यापक संवर्ग में आई सुस्तता का फायदा उठाते हुए संघवाद के खिलाफ मुहिम छेड़ते हुए ए सी सी के नाम से आजाद अध्यापक संघ गठन और भाभरा से आजाद रथ यात्रा के शुभारम्भ से भोपाल समापन एवं आंदोलन में परिनिति तक के सफ़र में पहली बार अपने वजूद को लेकर शासन के साथ साथ अपने ही साथियों द्वारा अपनों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी गयी। एकता के उद्देश्य को लेकर शुरू हुई लड़ाई शासन की कुटिल चालों व अनुभव की कमी, जोश ज्यादा और होश कम होने की दशा में सोशल मीडिया के शीत वाक्युद्ध में कब बदल गयी किसी को आभास भी नही हुआ और शासन ने आपसी फूट  का फायदा कुछ इस तरह उठाया कि जहा से हम चले थे और आज फिर वही के वही हैं।                                                             
       आत्मचिंतन करें कि हमने 2015 से आज तक  "क्या-खोया और क्या- पाया"। मेरे हिसाब से तो "शासन जीत गया और हम हार गए "  इस परिणाम को दृष्टिगत रखते हुए अभी हाल 15 जून को भोपाल में एकता व अध्यापक हित को लेकर राज्य अध्यापक संघ और आस के पदाधिकारियों के एक साथ होने पर हमारे कुछ संघों के एक समूह ने पुनः दुष्प्रचारित करते हुए एकता की ओर बढ़ रहे कदमों को खींचने में कोई कोर कसर नही छोड़ी।  
    

   अभी भी देर नही हुई इस सोशल मीडिया रूपी शीत वाकयुद्ध को अपने अपने वजूद की लड़ाई हेतु प्रयोग  न करते हुए अध्यापक हित व वास्तविक एकता हेतु विराम  दिया जाए नही तो वो दिन दूर नही जब संघों का वजूद होगा या नही ये  कह पाना मुश्किल होगा लेकिन तब  तक आम अध्यापक का वजूद निश्चित ही ख़त्म हो जायेगा।    जागो अध्यापक  .....जागो.......  ये मेरे निजी विचार हैं, पसंद आये तो शेयर जरूर कीजियेगा।।              आपका अपना साथी -               
      

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Saturday, June 18, 2016

"क्या-खोया और क्या- पाया" -सियाराम पटेल नरसिंहपुर

  सियाराम पटेल नरसिंहपुर -आत्मचिंतन वर्तमान में सोशल मीडिया पर अध्यापक संवर्ग के मध्य चल रहे शीत वाकयुद्ध में सरकार जीत गयी और अध्यापक हार गए।   
      वर्ष 2013 में छटे वेतन की चार किस्तों में घोषणा को सभी संघों द्वारा स्वीकारने के बाद सतत निर्वाचन प्रक्रिया के चलते 2013 से 2015 तक  के लंबे अंतराल के मध्य अध्यापक संवर्ग में आई सुस्तता का फायदा उठाते हुए संघवाद के खिलाफ मुहिम छेड़ते हुए ए सी सी के नाम से आजाद अध्यापक संघ गठन और भाभरा से आजाद रथ यात्रा के शुभारम्भ से भोपाल समापन एवं आंदोलन में परिनिति तक के सफ़र में पहली बार अपने वजूद को लेकर शासन के साथ साथ अपने ही साथियों द्वारा अपनों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी गयी। एकता के उद्देश्य को लेकर शुरू हुई लड़ाई शासन की कुटिल चालों व अनुभव की कमी, जोश ज्यादा और होश कम होने की दशा में सोशल मीडिया के शीत वाक्युद्ध में कब बदल गयी किसी को आभास भी नही हुआ और शासन ने आपसी फूट  का फायदा कुछ इस तरह उठाया कि जहा से हम चले थे और आज फिर वही के वही हैं।                                                             
       आत्मचिंतन करें कि हमने 2015 से आज तक  "क्या-खोया और क्या- पाया"। मेरे हिसाब से तो "शासन जीत गया और हम हार गए "  इस परिणाम को दृष्टिगत रखते हुए अभी हाल 15 जून को भोपाल में एकता व अध्यापक हित को लेकर राज्य अध्यापक संघ और आस के पदाधिकारियों के एक साथ होने पर हमारे कुछ संघों के एक समूह ने पुनः दुष्प्रचारित करते हुए एकता की ओर बढ़ रहे कदमों को खींचने में कोई कोर कसर नही छोड़ी।  
    

   अभी भी देर नही हुई इस सोशल मीडिया रूपी शीत वाकयुद्ध को अपने अपने वजूद की लड़ाई हेतु प्रयोग  न करते हुए अध्यापक हित व वास्तविक एकता हेतु विराम  दिया जाए नही तो वो दिन दूर नही जब संघों का वजूद होगा या नही ये  कह पाना मुश्किल होगा लेकिन तब  तक आम अध्यापक का वजूद निश्चित ही ख़त्म हो जायेगा।    जागो अध्यापक  .....जागो.......  ये मेरे निजी विचार हैं, पसंद आये तो शेयर जरूर कीजियेगा।।              आपका अपना साथी -               
      

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