Wednesday, May 11, 2016

अध्यापकों में अलगाव की बर्फ पिघल रही है :- रिजवान खान बैतूल

सम्मानीय अध्यापक साथियो
              सोशल मीडिया पर अध्यापक विमर्श सागर मंथन के समान है जिसमे पोस्टो कॉमेंट के माध्यम से जो आलोचना रूपी विष निकलता है उसे अध्यापक साथी पी लेते है और अमृत स्वरूप नए विचार सुझाव निकलते है जो हमारा मार्गदर्शन करते है. विगत एक माह से जारी आरोप आलोचना तर्क कुतर्क के फलस्वरूप आज सर्व संघो से जुड़े महत्वपूर्ण लोगो की पोस्ट और कमेंट देखकर ऐसा प्रतीत होता है की बर्फ पिघलने लगी है. आज चहुँओर से आते एकता के लिए सार्थक सुझावो को देखकर लगता है की जल्द ही एक महामोर्चा बन जाएगा जो सम्भावित विसंगतियो से चिंतित निराशा में डूबे अध्यापको में चेतना का संचार कर सकेगा और यही समय की मांग भी है.
               आगे होने वाला संघर्ष किसी मांग को मनवाने के लिए नही वरन जनवरी 2016 में पूर्ण हो चुकी छठे वेतनमान की मांग को नियमानुसार लागू कराने एवं वर्षो से लम्बित तबादला नीति की न्यायोचित मांग को पूर्ण करने के लिए होगा. आज 2015 के आंदोलन की सबसे बड़ी पूंजी चार लाइन का छठे वेतन का आदेश हमारे पास है शासन कितना भी विलंब करे कुत्सित प्रयास करे अंततः छठे वेतन के नियमानुसार अध्यापको का वेतन निर्धारण उसको करना ही होगा.....मगर कब ? यही यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर शासन नही हमारे पास है. जितनी जल्दी हमारा नेतृत्व एकजुट होकर शासन को चुनौती देगा उतनी ही शीघ्रता से हमारी समस्याओ का अंत हो जाएगा.
                  2016 लगभग आधा होने को है और छह माह बाद 2017 के शुरुवाती महीनो से प्रदेश में राजनैतिक बिसात बिछने लगेगी जिसमे आगे हर निर्णय राजनैतिक लाभ हानि के दृष्टिकोण से होगा. यदि हम धैर्य रखकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करेंगे हमारी हर मांग पूरी हो सकती है. नियमित वेतनमान लेने के लिए 17 वर्ष प्रतीक्षा की है साल छह महीने और सही........ अगर एकता नही हुई तो विधानसभा चुनावो के पूर्व शासन अलग अलग संघो से समझौते कर दीर्घकालीन नुकसान कर देगा. पूर्व का अनुभव सबको पता है.
कोई एक संघ आंदोलन करे इससे आज की परिस्तिथियो में शासन पर कोई दबाव नही बन सकता.
                  अभी अभी लिपिक वर्गीय कर्मचारियों की मांगो के सम्बन्ध में बनी शासकीय अधिकारसंपन्न कमेटी में कर्मचारी नेता भी शामिल किये गए है पूर्व में भी अनेक कमेटियो में कर्मचारी नेताओ को सम्मिलित किया जाता रहा है. अगर शासन पर दबाव बनाकर हम इसी प्रकार समस्या निवारण कमेटी बना सके और अपने नेताओ को उसमे सम्मिलित करा सके तो हमारे नेताओ की भी परीक्षा हो जायेगी क्योकि कमेटी की कार्यवाही रिकार्ड की जाती है. कहने का आशय यह है की आगे जो भी हो निश्चित रूपरेखा बनाकर समन्वयित प्रयासों से किया जाये. यह मेरा सोचना है बाकी अध्यापको में अनुभवी वरिष्ठ आंदोलनों में तपे तपाये गुणी लोगो की कमी नही है जो दो दशको पुराने इस आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचाने में पूर्णतः सक्षम है ।
             समर शेष है नही पाप का भागी केवल व्याघ्रः ।
             जो तठस्थ है समय लिखेगा उसका भी इतिहास ।।
     
  आपका
रिज़वान खान, सामान्य अध्यापक
     
यह लेखक के निजी विचार हैं ,लेखक बैतूल में खेल प्रशिक्षक (अध्यापक ) हैं।


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Wednesday, May 11, 2016

अध्यापकों में अलगाव की बर्फ पिघल रही है :- रिजवान खान बैतूल

सम्मानीय अध्यापक साथियो
              सोशल मीडिया पर अध्यापक विमर्श सागर मंथन के समान है जिसमे पोस्टो कॉमेंट के माध्यम से जो आलोचना रूपी विष निकलता है उसे अध्यापक साथी पी लेते है और अमृत स्वरूप नए विचार सुझाव निकलते है जो हमारा मार्गदर्शन करते है. विगत एक माह से जारी आरोप आलोचना तर्क कुतर्क के फलस्वरूप आज सर्व संघो से जुड़े महत्वपूर्ण लोगो की पोस्ट और कमेंट देखकर ऐसा प्रतीत होता है की बर्फ पिघलने लगी है. आज चहुँओर से आते एकता के लिए सार्थक सुझावो को देखकर लगता है की जल्द ही एक महामोर्चा बन जाएगा जो सम्भावित विसंगतियो से चिंतित निराशा में डूबे अध्यापको में चेतना का संचार कर सकेगा और यही समय की मांग भी है.
               आगे होने वाला संघर्ष किसी मांग को मनवाने के लिए नही वरन जनवरी 2016 में पूर्ण हो चुकी छठे वेतनमान की मांग को नियमानुसार लागू कराने एवं वर्षो से लम्बित तबादला नीति की न्यायोचित मांग को पूर्ण करने के लिए होगा. आज 2015 के आंदोलन की सबसे बड़ी पूंजी चार लाइन का छठे वेतन का आदेश हमारे पास है शासन कितना भी विलंब करे कुत्सित प्रयास करे अंततः छठे वेतन के नियमानुसार अध्यापको का वेतन निर्धारण उसको करना ही होगा.....मगर कब ? यही यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर शासन नही हमारे पास है. जितनी जल्दी हमारा नेतृत्व एकजुट होकर शासन को चुनौती देगा उतनी ही शीघ्रता से हमारी समस्याओ का अंत हो जाएगा.
                  2016 लगभग आधा होने को है और छह माह बाद 2017 के शुरुवाती महीनो से प्रदेश में राजनैतिक बिसात बिछने लगेगी जिसमे आगे हर निर्णय राजनैतिक लाभ हानि के दृष्टिकोण से होगा. यदि हम धैर्य रखकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करेंगे हमारी हर मांग पूरी हो सकती है. नियमित वेतनमान लेने के लिए 17 वर्ष प्रतीक्षा की है साल छह महीने और सही........ अगर एकता नही हुई तो विधानसभा चुनावो के पूर्व शासन अलग अलग संघो से समझौते कर दीर्घकालीन नुकसान कर देगा. पूर्व का अनुभव सबको पता है.
कोई एक संघ आंदोलन करे इससे आज की परिस्तिथियो में शासन पर कोई दबाव नही बन सकता.
                  अभी अभी लिपिक वर्गीय कर्मचारियों की मांगो के सम्बन्ध में बनी शासकीय अधिकारसंपन्न कमेटी में कर्मचारी नेता भी शामिल किये गए है पूर्व में भी अनेक कमेटियो में कर्मचारी नेताओ को सम्मिलित किया जाता रहा है. अगर शासन पर दबाव बनाकर हम इसी प्रकार समस्या निवारण कमेटी बना सके और अपने नेताओ को उसमे सम्मिलित करा सके तो हमारे नेताओ की भी परीक्षा हो जायेगी क्योकि कमेटी की कार्यवाही रिकार्ड की जाती है. कहने का आशय यह है की आगे जो भी हो निश्चित रूपरेखा बनाकर समन्वयित प्रयासों से किया जाये. यह मेरा सोचना है बाकी अध्यापको में अनुभवी वरिष्ठ आंदोलनों में तपे तपाये गुणी लोगो की कमी नही है जो दो दशको पुराने इस आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचाने में पूर्णतः सक्षम है ।
             समर शेष है नही पाप का भागी केवल व्याघ्रः ।
             जो तठस्थ है समय लिखेगा उसका भी इतिहास ।।
     
  आपका
रिज़वान खान, सामान्य अध्यापक
     
यह लेखक के निजी विचार हैं ,लेखक बैतूल में खेल प्रशिक्षक (अध्यापक ) हैं।


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