एक संदेश असफल छात्र/छात्राओं के नाम ":-राशी राठौर
असफलता का संदेश मात्र इतना होता है कि सफलता के लिए और प्रयास करना बाकी है।असफलता का अर्थ ये कभी नही होता की हम कभी भी सफल हो ही नही सकते।या हमारे अन्दर सफल होने के गुण ही नही है। दसवी, बारवी की परीक्षा में प्राप्त अंको के आधार पर बच्चे के भविष्य का आंकलन कोरी कल्पना मात्र है। हम सभी अच्छे से जानते है, आजकल सभी प्रकार के व्यावसायिक पाठयक्रम मै प्रवेश हेतु प्रवेश परीक्षा आयोजित होती है उस प्रवेश परीक्षा के प्राप्तांक के आधार पर ही डाक्टर, इन्जीनियर, शिक्षक, पुलिस, नर्स, वनरक्षक, पटवारी, बैंक कर्मी, पब्लिक सर्विस कमीशन आदी बनने के मार्ग प्रशस्त होते है। इन सभी पदो के लिए कक्षा बारह में 50% लाने वाले और कक्षा बारह में 98% लाने वाले दोनो छात्रों की अंकसूची बराबर मायने रखती है। कक्षा दस और कक्षा बारह के प्रतिशत ऐसे पाठयक्रम के लिए अनिवार्य शैक्षणिक योग्यता मात्र होते है। एक कागज के टुकडे पर लिखे चंद डिजिट ही हमारे भविष्य का सही आंकलन कर सके तो शायद हमेशा ऐवरेज से कम अंक लाने वाले इन्सान को हम भारत का राष्ट्रीय पिता नही कहते । 98% लाने वाले छात्र और उनके पालक, मिलने वाले बधाई संदेश और इन प्रतिशत को आधार मानकर कर अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की आशा करके खुश होते है जो सही भी है। किन्तु सफलता किसी एक स्तम्भ पर नही टिकी होती है , ना ही बारहवी या दसवी मै 98% इस बात की ग्यारंटी होते है की संबंधित छात्र अब डाक्टर , इन्जीनियर या लोकसेवक बन ही जायेगा। असफलता ही सिखाती है की सफल कैसै होना है। किसी भी स्थिति मै निराश हो भविष्य को अंधकार मान लेना ही हमारी भूल है।जीवन मै अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए कई अवसर मिलते है, लेकिन इन अवसरों पर खुद को साबित करने के लिए जीवन का होना पहली शर्त है।यदि जीवन ही नही रहा तो कैसे खुद को साबित करेंगे।एक अवसर हाथ से निकल जाने से सभी अवसर पर पानी नही फेरना चाहिए। जीवन आगे भी अवसर देगा जब आप साबित कर पायेंगे ।आय एम द बेस्ट।
राशी राठौर देवास
एक संदेश असफल छात्र/छात्राओं के नाम ":-राशी राठौर
असफलता का संदेश मात्र इतना होता है कि सफलता के लिए और प्रयास करना बाकी है।असफलता का अर्थ ये कभी नही होता की हम कभी भी सफल हो ही नही सकते।या हमारे अन्दर सफल होने के गुण ही नही है। दसवी, बारवी की परीक्षा में प्राप्त अंको के आधार पर बच्चे के भविष्य का आंकलन कोरी कल्पना मात्र है। हम सभी अच्छे से जानते है, आजकल सभी प्रकार के व्यावसायिक पाठयक्रम मै प्रवेश हेतु प्रवेश परीक्षा आयोजित होती है उस प्रवेश परीक्षा के प्राप्तांक के आधार पर ही डाक्टर, इन्जीनियर, शिक्षक, पुलिस, नर्स, वनरक्षक, पटवारी, बैंक कर्मी, पब्लिक सर्विस कमीशन आदी बनने के मार्ग प्रशस्त होते है। इन सभी पदो के लिए कक्षा बारह में 50% लाने वाले और कक्षा बारह में 98% लाने वाले दोनो छात्रों की अंकसूची बराबर मायने रखती है। कक्षा दस और कक्षा बारह के प्रतिशत ऐसे पाठयक्रम के लिए अनिवार्य शैक्षणिक योग्यता मात्र होते है। एक कागज के टुकडे पर लिखे चंद डिजिट ही हमारे भविष्य का सही आंकलन कर सके तो शायद हमेशा ऐवरेज से कम अंक लाने वाले इन्सान को हम भारत का राष्ट्रीय पिता नही कहते । 98% लाने वाले छात्र और उनके पालक, मिलने वाले बधाई संदेश और इन प्रतिशत को आधार मानकर कर अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की आशा करके खुश होते है जो सही भी है। किन्तु सफलता किसी एक स्तम्भ पर नही टिकी होती है , ना ही बारहवी या दसवी मै 98% इस बात की ग्यारंटी होते है की संबंधित छात्र अब डाक्टर , इन्जीनियर या लोकसेवक बन ही जायेगा। असफलता ही सिखाती है की सफल कैसै होना है। किसी भी स्थिति मै निराश हो भविष्य को अंधकार मान लेना ही हमारी भूल है।जीवन मै अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए कई अवसर मिलते है, लेकिन इन अवसरों पर खुद को साबित करने के लिए जीवन का होना पहली शर्त है।यदि जीवन ही नही रहा तो कैसे खुद को साबित करेंगे।एक अवसर हाथ से निकल जाने से सभी अवसर पर पानी नही फेरना चाहिए। जीवन आगे भी अवसर देगा जब आप साबित कर पायेंगे ।आय एम द बेस्ट।
राशी राठौर देवास
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