भारत में दोयम दर्जे की शिक्षा प्रणाली बन्द होकर समान शिक्षा प्रणाली लागु हो -- एच एन नरवरिया
एक तरह के विद्यालय ,
एक तरह के शिक्षक ,
एक तरह का पाठ्यक्रम हों
साथियो, जैसा की हम की हम जानते है भारत में जो शिक्षा नीति है वो बहुत ही दोषपूर्ण है
जिसमे अधिकारी के बच्चे अधिकारी , किसान मजदूर का बच्चा किसान मजदूर बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है ।
आज भारत में तीन तरह की शिक्षा प्रणाली है
आई सी इस सी ई बोर्ड
सी बी एस सी ई बोर्ड
और स्टेट बोर्ड
हम देखते है जब बच्चे 15 वर्षो तक शिक्षा ग्रहण करते है तो एक बच्चा अंतरार्ष्ट्रीय स्तर का एक राष्ट्रीय स्तर का , और एक प्रदेश स्तर पर तैयार होता है जबकि 15 वर्ष का समय तीनो कोर्सो में लगता है । आई सी एस सी ई और , सी बी एस सी ई की संस्थाये लगभग 5% मात्र है जो महानगर और जिला स्तर पर है इनमे अधिकारियो, उद्योग पतियों जनप्रतिनिधि और सम्पन्न वर्ग के ही बच्चे पढ़ते है । और आगे चलकर ही इनके बच्चे ही डॉक्टर इंजीयर अधकारी, व्यवसायी, बनते है।
जबकि स्टेट बोर्ड के पढ़ने वाले बच्चे कर्मचारी और चपरासी बन पाते है ये संस्थाये 95 % ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित है 50% शाशन द्वारा और 45% प्राइवेट स्कूलो के माध्यम से स्थापित है इन संस्थाओ में पड़ने वाले बच्चे सिर्फ साक्षर होते है पास होते है और किसी भी क्षेत्र में योग्य नही माने जाते है ।
देश जब आजाद हुआ था तब 5 वीं पास बच्चे को भी देश भर का ज्ञान हो जाता था।
क्योंकि उस समय अधिकारी उद्योगपतियों और मजदूर के बच्चे एक सात पढ़ते थे उसी समय के पढ़े लिखे लोग आज हर क्षेत्र में नोकरी व्यवसाय, राजनीति में आगे नजर आते है और समाज उन्नति की और बढ़ ही रहा था तो शाशन सत्ता में बेठे लोगो ने सोचा यदि ये समान शिक्षा का सिलसिला ऐसा ही चलता रहा तो हमारी सत्ता एक दिन खत्म हो जायेगी , उन्होंने इस दूरगामी सोच को रखते हुए ग्रामीण गरीब माध्यम वर्गीय बचो को शिक्षा से वंचित करना का सडयंत्र रचा और शिक्षा का निजीकरण के तहत सामान शिक्षा प्रणाली को नेस्तनाबूत कर डाला , और शिक्षको को विभिन्न कार्यो में उलझा दिया गया और उनका किस प्रकार से शोषण किया जा सके वो सब किया गया जो उदाहरण के रूप में पैरा टीचर , शिक्षामित्र, शिक्षाकर्मी, संविदा शिक्षक, गुरूजी, अतिथि शिक्षको के नाम से कई प्रजाति का निर्माण कर उनको दी जानी वाली सुख सुविधाओ वेतन भत्तो में कटौती कर दी है , इस कारण आज भी ये वर्ग आंदोलित है ।
आज सरकारी विद्यालयो में ड्रेस , मिड डे मील,स्कॉलर शिप, फीस किताबे सब दिया जा रहा पर शिक्षा नही दी जा रही है । गरीब किसान मजदूर का बच्चा इन स्कूलो में पड़ा कर अनपढ़ बना रहा है और मध्यम वर्गीय समाज अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के नाम पर कमाई का 30 % हिस्सा इसमें खर्च कर रहा है । फिर भी उनके बच्चे शिक्षित नही हो पा रहे है , शाशन की गलत नीतियों के कारण आज शिक्षा माफिया माध्यम वर्गीय समाज को नोच नोच कर लूट रहे है और बच्चों को उनके लायक भी नही बना पा रहा है।
इसलिए हम चाहते है की इन समस्याओ से मुक्ति पाना है तो ये उपाय कारगर होंगे औरभारतीय संबिधान अनुसार समान अवसर प्राप्त हो सकेंगे ।
"सभी निजी और सरकारी स्कूलो का राष्ट्रीय करण कर दिया जाये ।
एक शिक्षा बोर्ड हो
एक तरह का पाठ्यक्रम हो
और एक तरह के शिक्षक हो।"
और जनप्रतिनिधि (नेता )अधिकारी जो साशन के मद से 1 रु भी प्राप्त करता है तो उसके बच्चे को अनिवार्यतः सरकारी विद्यालयों में पढ़ाये तभी ये ववस्था में सुधार हो पायेगा , अगर ये नही कर सकते तो तो सभी अपने पदों से मुक्त हो जाये ,
"साथियो इन सासकीय पदों में रहने वाले लोगों को साशन की सभी सुविधाये चाहिए , वाहन, आवास, चिकित्सा , खाना , साशन की और से वेतन भत्ते और रिटायर मेंट के बाद पेंशन चाहिए , पर शाशन द्वारा संचालित स्कूलो में इनके बच्चों को शिक्षा क्यों नही चाहिए?"
राष्ट्पति की हो चपरासी की संतान ।
सबकी शिक्षा एक सामान ।।
एच एन नरवरिया
लेखक राज्य अध्यापक संघ की आई टी सेल के सदस्य है और मिडिया प्रभारी है ।
यह लेखक के निजी विचार है ।
Very appreciating sir
ReplyDeleteThanks
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