शिक्षा और उस से जुड़े संवर्ग की सेवाओं से जुडी जानकारीयां ,आप तक आसानी से पहुंचाने का एक प्रयास है अध्यापक जगत
Wednesday, April 20, 2016
शिक्षा का व्यापारीकरण:- सियाराम पटेल
शिक्षा का व्यापारीकरणव्यापारीकरण, व्यवसायीकरण तथा निजीकरण ने शिक्षा क्षेत्र को अपनी जकड़ में ले लिया है। मण्डी में शिक्षा क्रय-विक्रय की वस्तु बनती जा रही है। इसे बाजार में निश्चित शुल्क से अधिक धन (Capitationfee) देकर खरीदा जा सकता है। परिणामत: शिक्षा में एक भिन्न प्रकार की जाति प्रथा जन्म ले रही है जो धन के आधार पर आई.आई.टी, एम.बी.ए., सी.ए. एम.बी.बी.एस आदि उपाधियों के लिये प्रवेश पा कर उच्च भावना से ग्रस्त ओैर धनाभाव के कारण प्रवेश से वंचित हीनभावना से ग्रस्त रहते है। दोनो ही श्रेणियों के छात्र ग्रस्त है। असमानता की खाई बढ़ रही है। सामाजिक असंतुलन और विषमता इस का ही परिणाम है।सामाजिक विज्ञान तथा मानविकी विषयों की उपेक्षा करना देश की उन्नति कें लिए हानिकारक है, और साथ ही इस दृष्टि से शोध को भी दुर्लक्ष करना और भी घातक है। पारम्परिक ज्ञान की ओर ध्यान न देना और शिक्षा को बाजारीकरण की शक्तियों के आधीन करना देश के लिए खतरनाक है।बाजारवादी नुस्खों में कई निहितार्थ छिपे है। एक तो यह सरकार ने मान लिया है कि देश के सभी बच्चों को शिक्षित करने का काम उसी का नहीं है। शिक्षा को बाजार का उन्मुक्त स्वरुप देने में क्रय-विक्रय की क्षमता रखने वाले छात्रों के लिए गुणवत्ताापूर्ण शिक्षा मिलेगी। शेष के लिए नहीं।शिक्षा के अधिकार पर धन और बल का अधिकार रहेगा, भेदभा। बढ़ेगा। स्पष्ट है निजीकरण के माध्यम से कभी भी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। कोचिंग के बाजार में कई घटिया, गैरमान्यता प्राप्त, फर्जी शिक्षा की दुकानें खुलती जा रही हैं। इन सबको रोकना बहुत बड़ी चुनौती है। देश में 125 डीम्ड विश्वविद्यालय हैं, इनके 102। निजी स्वामित्व वाले संस्थान है। इन्होंने उच्च शिक्षा को मुनाफे का धन्धा बना दिया है। आन्धप्रदेश में 600 से अधिक निजी इन्जीनियरिंग महाविद्यालय, कर्नाटक में यह संख्या 170 है, उड़ीसा में 81, राजस्थान में 80 है। इस परिदृश्य से जो स्थिति उपस्थित हुई, इस कारण आर्थिक व सामाजिक आधार पर भी शिक्षा विभाजित हुई है।
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Wednesday, April 20, 2016
शिक्षा का व्यापारीकरण:- सियाराम पटेल
शिक्षा का व्यापारीकरणव्यापारीकरण, व्यवसायीकरण तथा निजीकरण ने शिक्षा क्षेत्र को अपनी जकड़ में ले लिया है। मण्डी में शिक्षा क्रय-विक्रय की वस्तु बनती जा रही है। इसे बाजार में निश्चित शुल्क से अधिक धन (Capitationfee) देकर खरीदा जा सकता है। परिणामत: शिक्षा में एक भिन्न प्रकार की जाति प्रथा जन्म ले रही है जो धन के आधार पर आई.आई.टी, एम.बी.ए., सी.ए. एम.बी.बी.एस आदि उपाधियों के लिये प्रवेश पा कर उच्च भावना से ग्रस्त ओैर धनाभाव के कारण प्रवेश से वंचित हीनभावना से ग्रस्त रहते है। दोनो ही श्रेणियों के छात्र ग्रस्त है। असमानता की खाई बढ़ रही है। सामाजिक असंतुलन और विषमता इस का ही परिणाम है।सामाजिक विज्ञान तथा मानविकी विषयों की उपेक्षा करना देश की उन्नति कें लिए हानिकारक है, और साथ ही इस दृष्टि से शोध को भी दुर्लक्ष करना और भी घातक है। पारम्परिक ज्ञान की ओर ध्यान न देना और शिक्षा को बाजारीकरण की शक्तियों के आधीन करना देश के लिए खतरनाक है।बाजारवादी नुस्खों में कई निहितार्थ छिपे है। एक तो यह सरकार ने मान लिया है कि देश के सभी बच्चों को शिक्षित करने का काम उसी का नहीं है। शिक्षा को बाजार का उन्मुक्त स्वरुप देने में क्रय-विक्रय की क्षमता रखने वाले छात्रों के लिए गुणवत्ताापूर्ण शिक्षा मिलेगी। शेष के लिए नहीं।शिक्षा के अधिकार पर धन और बल का अधिकार रहेगा, भेदभा। बढ़ेगा। स्पष्ट है निजीकरण के माध्यम से कभी भी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। कोचिंग के बाजार में कई घटिया, गैरमान्यता प्राप्त, फर्जी शिक्षा की दुकानें खुलती जा रही हैं। इन सबको रोकना बहुत बड़ी चुनौती है। देश में 125 डीम्ड विश्वविद्यालय हैं, इनके 102। निजी स्वामित्व वाले संस्थान है। इन्होंने उच्च शिक्षा को मुनाफे का धन्धा बना दिया है। आन्धप्रदेश में 600 से अधिक निजी इन्जीनियरिंग महाविद्यालय, कर्नाटक में यह संख्या 170 है, उड़ीसा में 81, राजस्थान में 80 है। इस परिदृश्य से जो स्थिति उपस्थित हुई, इस कारण आर्थिक व सामाजिक आधार पर भी शिक्षा विभाजित हुई है।
शिक्षा पर मुनाफा कमाने पर रोक, धनवान तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े सभी छात्रों के लिए अच्छी शिक्षा दिलाने का संकल्प, शिक्षा इन सबको स्वीकार करे। राजनीति की चेरी बने रहने से इसे छुटकारा मिले। देशभक्ति, स्वास्थ्य-संरक्षण, सामाजिक संवदेनशीलता तथा आध्यात्मिक यह शिक्षा के भव्य भवन के चार स्तम्भ हैं। इनको राष्ट्रीय शिक्षा की नीति में घोषित कर, स्वायत्ता शिक्षा को संवैधानिक स्वरुप प्रदान करना चाहिए। इन सब उपायों से शिक्षा की चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकता है। शिक्षा बाजार नहीं अपितु मानव मन को तैयार करने का उदात्ता सांचा है। जितनी जल्दी हम इस तथ्य को समझेंगे उतना ही शिक्षा का भला होगा।
सियाराम पटेल
लेखक राज्य अध्यापक संघ की आई टी सेल के सदस्य है ,और नरसिहपुर जिले में कार्यरत है ।यह लेखक के निजी विचार है ।
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