Sunday, April 23, 2017

युक्ति युक्तकरण एक अंत की शुरूआत-कृष्णा परमार(रतलाम)

   शिक्षा विभाग को हमारे समाज में हमेशा से एक बहुत बड़े सुरक्षित रोजगार के अवसर के रूप में देखा जाता रहा है , एक प्रतिष्ठित और सुलभ मिल जाने वाले रोजगार के रूप में खासकर महिलाओं की पहली पसंद लेकिन विगत कुछ वर्षों से शासकीय शालाओं में गिरते शिक्षा के स्तर का अब बहुत बड़ा प्रभाव देखने को मिल रहा है | वह समय भी दूर नहीं जब हमें आने वाली पिढ़ी को यह कहना पड़ेगा की कभी सरकारी स्कूल भी हुआ करते थे |
     वर्तमान में जारी हुई मध्य प्रदेश अतिशेष शिक्षकों की संख्या साठ हजार  तक पहुंच गई है जो की शिक्षा विभाग की बदहाल स्थिति को दर्शाता है अभी कुछ दिन पहले सरकार ने घोषणा की थी कि 41 हजार संविदा शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी उस समय बेरोजगार युवाओं में यह आस बंधी थी कि चलो कुछ तो राहत मिलेगी लेकिन अब यह असंभव सा प्रतीत हो रहा है क्योंकि जब 60 हजार शिक्षक पहले से ही अतिशेष है,  तो नई नियुक्ति कहां दी जा सकती हैं खैर जैसे तैसे इस वर्ष तो इन अतिशेष शिक्षकों का समायोजन कर दिया जाएगा |
लेकिन वह स्थिति दूर नहीं जब शिक्षा विभाग का हाल भी मध्य प्रदेश परिवहन विभाग , मध्यप्रदेश तिलहन संघ जैसा हो जाएगा कि अतिशेष शिक्षकों को प्रतिनियुक्ति पर दूसरे विभागों में भेजा जाएगा जैसे राजस्व, पुलिस , पंचायत कर्मचारी आदि और अधिकतर को समय से पूर्व ही सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी जब धीरे धीरे स्कूल ही बंद होते जा रहे हैं तो नई नियुक्ति की आवश्यकता ही कहां पड़ेगी |
      अभी वर्तमान में बेतूल जिले में एक प्रयोग कॉल किया जा रहा है 15 किलोमीटर के दायरे में आने वाली समस्त शालाओं को बंद करके एक ही जगह पर उन सभी छात्रों को बस द्वारा लाया जाएगा | ऐसी स्थिति में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि शायद हम इस पीढ़ी के आखरी सरकारी अध्यापक या शिक्षक हैं , क्योंकि जब विभाग ही नहीं रहेगा तो कर्मचारियों का क्या काम है और शिक्षा विभाग पर हो रहा हर एक प्रयोग ताबूत की कील साबित हो रहा है ऐसा ताबूत जिसमें से शायद शिक्षा विभाग का जिंदा निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा प्रतीत होता है | कृष्णा परमार (सैलाना जिला रतलाम) लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं।

No comments:

Post a Comment

Comments system

Sunday, April 23, 2017

युक्ति युक्तकरण एक अंत की शुरूआत-कृष्णा परमार(रतलाम)

   शिक्षा विभाग को हमारे समाज में हमेशा से एक बहुत बड़े सुरक्षित रोजगार के अवसर के रूप में देखा जाता रहा है , एक प्रतिष्ठित और सुलभ मिल जाने वाले रोजगार के रूप में खासकर महिलाओं की पहली पसंद लेकिन विगत कुछ वर्षों से शासकीय शालाओं में गिरते शिक्षा के स्तर का अब बहुत बड़ा प्रभाव देखने को मिल रहा है | वह समय भी दूर नहीं जब हमें आने वाली पिढ़ी को यह कहना पड़ेगा की कभी सरकारी स्कूल भी हुआ करते थे |
     वर्तमान में जारी हुई मध्य प्रदेश अतिशेष शिक्षकों की संख्या साठ हजार  तक पहुंच गई है जो की शिक्षा विभाग की बदहाल स्थिति को दर्शाता है अभी कुछ दिन पहले सरकार ने घोषणा की थी कि 41 हजार संविदा शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी उस समय बेरोजगार युवाओं में यह आस बंधी थी कि चलो कुछ तो राहत मिलेगी लेकिन अब यह असंभव सा प्रतीत हो रहा है क्योंकि जब 60 हजार शिक्षक पहले से ही अतिशेष है,  तो नई नियुक्ति कहां दी जा सकती हैं खैर जैसे तैसे इस वर्ष तो इन अतिशेष शिक्षकों का समायोजन कर दिया जाएगा |
लेकिन वह स्थिति दूर नहीं जब शिक्षा विभाग का हाल भी मध्य प्रदेश परिवहन विभाग , मध्यप्रदेश तिलहन संघ जैसा हो जाएगा कि अतिशेष शिक्षकों को प्रतिनियुक्ति पर दूसरे विभागों में भेजा जाएगा जैसे राजस्व, पुलिस , पंचायत कर्मचारी आदि और अधिकतर को समय से पूर्व ही सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी जब धीरे धीरे स्कूल ही बंद होते जा रहे हैं तो नई नियुक्ति की आवश्यकता ही कहां पड़ेगी |
      अभी वर्तमान में बेतूल जिले में एक प्रयोग कॉल किया जा रहा है 15 किलोमीटर के दायरे में आने वाली समस्त शालाओं को बंद करके एक ही जगह पर उन सभी छात्रों को बस द्वारा लाया जाएगा | ऐसी स्थिति में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि शायद हम इस पीढ़ी के आखरी सरकारी अध्यापक या शिक्षक हैं , क्योंकि जब विभाग ही नहीं रहेगा तो कर्मचारियों का क्या काम है और शिक्षा विभाग पर हो रहा हर एक प्रयोग ताबूत की कील साबित हो रहा है ऐसा ताबूत जिसमें से शायद शिक्षा विभाग का जिंदा निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा प्रतीत होता है | कृष्णा परमार (सैलाना जिला रतलाम) लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं।

No comments:

Post a Comment