Thursday, December 29, 2016

शिक्षक की प्रतिष्ठा की दिशा में भी विचार करें अधिकारी-सियाराम पटेल

सम्मानीय साथियों
सादर वंन्दन।

मध्यप्रदेश शासन द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के नाम पर नित नूतन लोकलुभावन नए प्रयोग किये जा रहे हैं, कभी किसी नाम से और कभी किसी नाम से और उन सभी प्रयोगों में सफलता और असफलता हेतु केवल शासकीय स्कूलों में कार्यरत शिक्षक ही जवाबदेह हैं शायद, इन सब प्रयोगों की सफलता के लिए न तो शासन , न विभाग के आला अधिकारी, न ही पालक और न ही बालक उत्तरदारी होते हैं, ये सभी अनुभव पूर्ववर्ती बहुत से प्रयोगों और उनके क्रियान्वयन को लेकर आये हैं।

इन सब क्रियाकलापों के प्रति उपर्युक्त में से शायद ही कोई जवाबदेह हो सिवाय शिक्षक के। देश की शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक की मुख्य भूमिका होती है किंतु कुछ हद तक बालक, पालक और विभाग की भी कही न कही कुछ भूमिका व उत्तरदायित्व होते हैं, एक ओर व्यवस्था संबंधी किसी आदेश के पालन में यदि शिक्षक से कोई चूक या विरोध होता है तो आला अधिकारी शिक्षक के विरुद्ध उसे दोषी मानते हुए तुरंत कार्यवाही करने उद्यत देखे जाते हैं किंतु जब राष्ट्र निर्माता और देश का भविष्य निर्माण करने वाले इन शिक्षकों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले आदेश और नीतियां बनाने वाले यही अधिकारी दोषपूर्ण आदेश जारी करते हैं और आदेश में व्याप्त दोषपूर्ण विसंगति के चलते जब उस आदेश का फॉलोअप संपूर्ण प्रदेश में कार्यरत शिक्षक के हित में नही होता और शिक्षक द्वारा उसके सम्बन्ध में इन वरिष्ठ आला अधिकारियों और शासन को बार बार अवगत कराया जाता है और उसके बाद भी दोषपूर्ण आदेश जारी करने या जानबूझकर हीला हवाली करने वाले उन नीति निर्धारक अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नही किया जाना शासन और इन आला अधिकारियों की दोषपूर्ण नीति को स्वमेव सिद्ध करता है। उदाहरण स्वरूप शिक्षा विभाग के शासकीय प्राथमिक/माध्यमिक/हाई स्कूल/हायर सेकंडरी स्कूलों में कार्यरत अध्यापक संवर्ग के लोगों को विगत 01 जनवरी 2016 से प्रदत्त छटे वेतन के आदेश को लीजियेे, शासन द्वारा सितम्बर 2015 से दिसम्बर 2016 तक लगभग प्रदेश के अनेकों मंच व बॉम्बे में आयोजित की गयी माननीय मुख्यमंत्री जी की प्रेस वार्ता सहित कुल मिलाकर 10-12 बार घोषणा की गयी और 25 मई 2016 और 15अक्टूबर 2016 को तत्सम्बन्ध में अस्पस्ट और विसंगतिपूर्ण जारी आदेश होना और उन आदेशों के पालन में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन निर्धारण में संपूर्ण प्रदेश में एकरूपता का अभाव होना, कुछ कनिष्ठ साथियों को वरिष्ठ साथियों से अधिक वेतन निर्धारण होना और प्रदेश भर में अनेकों संकुलों में  2 से 3 महीने व्यतीत होने पर भी छटे वेतन का भुगतान न होना और इन सभी परिस्थितियों से शासन व शासन के आला अधिकारियों को संघ के माध्यम से बार बार अवगत कराने और आदेश की प्रतियां जलाते हुए विरोध प्रदर्शन कर मार्गदर्शन हेतु गुहार लगाने के साथ दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करने पर भी अभी तक कोई ठोस परिणाम प्राप्त न होना कही न कही शासन व इन आला अधिकारियों की नीति और नियत में अंतर होना भी सिद्ध स्वमेव सिद्ध करता है।

2-3 से माह व्यतीत होने के उपरान्त भी छटा वेतन अध्यापक संवर्ग को प्राप्त न होने के विरुद्ध शासन ने व इन आला अधिकारियों ने वेतन निर्धारण न होने की स्थिति में फालोअप न करने वाले कितने डी डी ओ व लिपिकीय अमले के विरुद्ध कार्यवाही हेतु निर्णय लिए या ठोस कदम उठाये ?

शायद यदि जांच भी की जाए तो उत्तर शून्य होगा इसमें कोई अतिश्योक्ति नही।
इसीलिए यदि शासन शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक सुधार और सकारात्मक परिणाम लाना चाहती है तो कुछ इस तरह की नीति निर्धारण होना चाहिये की हम जिन्हें गुरु या राष्ट्र निर्माता कहते हैं उनकी सुख सुविधाओं, उनके हितों से जुडी हुई समस्याओं पर भी उतनी ही जल्दी एक्शन लिया जाये जितना कि किसी व्यवस्था या योजना का फालोअप नही होने पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने हेतु निर्णय ले लिए जाते हैं।

अतएव एकपक्षीय कार्यवाही से सम्बंधित त्वरित आदेश जारी किया जाना कहा तक उचित है?
यह बहुत ही अहम और विचारणीय बिंदु है।
राष्ट्र के भविष्य नन्हे मुन्ने बच्चों के भविष्य से जुडी हुई शिक्षा व्यवस्था सुधार के साथ साथ राष्ट्र निर्माता अध्यापक एवं शिक्षक संवर्ग के भविष्य व उनकी सुविधाओं के सुधार को भी उतनी ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए जितनी की हम शासन की किसी योजना के क्रियान्वयन व उसकी सफलता के लिए उनसे आशा करते हैं।

आप सभी का साथी-

सियाराम पटेल, नरसिंहपुर
प्रदेश मीडिया प्रभारी
राज्य अध्यापक संघ मध्यप्रदेश।

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Thursday, December 29, 2016

शिक्षक की प्रतिष्ठा की दिशा में भी विचार करें अधिकारी-सियाराम पटेल

सम्मानीय साथियों
सादर वंन्दन।

मध्यप्रदेश शासन द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के नाम पर नित नूतन लोकलुभावन नए प्रयोग किये जा रहे हैं, कभी किसी नाम से और कभी किसी नाम से और उन सभी प्रयोगों में सफलता और असफलता हेतु केवल शासकीय स्कूलों में कार्यरत शिक्षक ही जवाबदेह हैं शायद, इन सब प्रयोगों की सफलता के लिए न तो शासन , न विभाग के आला अधिकारी, न ही पालक और न ही बालक उत्तरदारी होते हैं, ये सभी अनुभव पूर्ववर्ती बहुत से प्रयोगों और उनके क्रियान्वयन को लेकर आये हैं।

इन सब क्रियाकलापों के प्रति उपर्युक्त में से शायद ही कोई जवाबदेह हो सिवाय शिक्षक के। देश की शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक की मुख्य भूमिका होती है किंतु कुछ हद तक बालक, पालक और विभाग की भी कही न कही कुछ भूमिका व उत्तरदायित्व होते हैं, एक ओर व्यवस्था संबंधी किसी आदेश के पालन में यदि शिक्षक से कोई चूक या विरोध होता है तो आला अधिकारी शिक्षक के विरुद्ध उसे दोषी मानते हुए तुरंत कार्यवाही करने उद्यत देखे जाते हैं किंतु जब राष्ट्र निर्माता और देश का भविष्य निर्माण करने वाले इन शिक्षकों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले आदेश और नीतियां बनाने वाले यही अधिकारी दोषपूर्ण आदेश जारी करते हैं और आदेश में व्याप्त दोषपूर्ण विसंगति के चलते जब उस आदेश का फॉलोअप संपूर्ण प्रदेश में कार्यरत शिक्षक के हित में नही होता और शिक्षक द्वारा उसके सम्बन्ध में इन वरिष्ठ आला अधिकारियों और शासन को बार बार अवगत कराया जाता है और उसके बाद भी दोषपूर्ण आदेश जारी करने या जानबूझकर हीला हवाली करने वाले उन नीति निर्धारक अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नही किया जाना शासन और इन आला अधिकारियों की दोषपूर्ण नीति को स्वमेव सिद्ध करता है। उदाहरण स्वरूप शिक्षा विभाग के शासकीय प्राथमिक/माध्यमिक/हाई स्कूल/हायर सेकंडरी स्कूलों में कार्यरत अध्यापक संवर्ग के लोगों को विगत 01 जनवरी 2016 से प्रदत्त छटे वेतन के आदेश को लीजियेे, शासन द्वारा सितम्बर 2015 से दिसम्बर 2016 तक लगभग प्रदेश के अनेकों मंच व बॉम्बे में आयोजित की गयी माननीय मुख्यमंत्री जी की प्रेस वार्ता सहित कुल मिलाकर 10-12 बार घोषणा की गयी और 25 मई 2016 और 15अक्टूबर 2016 को तत्सम्बन्ध में अस्पस्ट और विसंगतिपूर्ण जारी आदेश होना और उन आदेशों के पालन में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन निर्धारण में संपूर्ण प्रदेश में एकरूपता का अभाव होना, कुछ कनिष्ठ साथियों को वरिष्ठ साथियों से अधिक वेतन निर्धारण होना और प्रदेश भर में अनेकों संकुलों में  2 से 3 महीने व्यतीत होने पर भी छटे वेतन का भुगतान न होना और इन सभी परिस्थितियों से शासन व शासन के आला अधिकारियों को संघ के माध्यम से बार बार अवगत कराने और आदेश की प्रतियां जलाते हुए विरोध प्रदर्शन कर मार्गदर्शन हेतु गुहार लगाने के साथ दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करने पर भी अभी तक कोई ठोस परिणाम प्राप्त न होना कही न कही शासन व इन आला अधिकारियों की नीति और नियत में अंतर होना भी सिद्ध स्वमेव सिद्ध करता है।

2-3 से माह व्यतीत होने के उपरान्त भी छटा वेतन अध्यापक संवर्ग को प्राप्त न होने के विरुद्ध शासन ने व इन आला अधिकारियों ने वेतन निर्धारण न होने की स्थिति में फालोअप न करने वाले कितने डी डी ओ व लिपिकीय अमले के विरुद्ध कार्यवाही हेतु निर्णय लिए या ठोस कदम उठाये ?

शायद यदि जांच भी की जाए तो उत्तर शून्य होगा इसमें कोई अतिश्योक्ति नही।
इसीलिए यदि शासन शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक सुधार और सकारात्मक परिणाम लाना चाहती है तो कुछ इस तरह की नीति निर्धारण होना चाहिये की हम जिन्हें गुरु या राष्ट्र निर्माता कहते हैं उनकी सुख सुविधाओं, उनके हितों से जुडी हुई समस्याओं पर भी उतनी ही जल्दी एक्शन लिया जाये जितना कि किसी व्यवस्था या योजना का फालोअप नही होने पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने हेतु निर्णय ले लिए जाते हैं।

अतएव एकपक्षीय कार्यवाही से सम्बंधित त्वरित आदेश जारी किया जाना कहा तक उचित है?
यह बहुत ही अहम और विचारणीय बिंदु है।
राष्ट्र के भविष्य नन्हे मुन्ने बच्चों के भविष्य से जुडी हुई शिक्षा व्यवस्था सुधार के साथ साथ राष्ट्र निर्माता अध्यापक एवं शिक्षक संवर्ग के भविष्य व उनकी सुविधाओं के सुधार को भी उतनी ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए जितनी की हम शासन की किसी योजना के क्रियान्वयन व उसकी सफलता के लिए उनसे आशा करते हैं।

आप सभी का साथी-

सियाराम पटेल, नरसिंहपुर
प्रदेश मीडिया प्रभारी
राज्य अध्यापक संघ मध्यप्रदेश।

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