Wednesday, December 7, 2016

सबसे पहले छटे वेतनमान की विसंगति पर चिंतन होना चाहिए -अरविन्द रावल


मध्यप्रदेश सरकार ने छटे वेतनमान का दूसरी बार भी क्या विसङ्गतिपूर्वक गणना पत्रक जारी किया प्रदेश के अध्यापक विशेष रूप से 1998 से 2003 तक के अध्यापको को एक बार फिर वेतन की उलझन में डाल दिया हे। अध्यापको के सभी तेरह ही संगठनो के मुखियाओं में से कुछ को तो आज आदेश जारी होने के 60 दिन बाद भी कोई विसंगति नज़र नही आती हे तो कुछ को विसंगति नज़र आती भी हे तो वे सिवाय एक ज्ञापन देने से ज्यादा कुछ करते हुए नज़र आते ही नही हे। हमारे अध्यापक हितेषी प्रांतीय नेता यदि इस गुमान में हे कि उनकी वजह से सरकार ने छठा वेतनमान दिया हे तो इस भ्रम को वे दूर कर ले। सरकार ने यदि किसी अध्यापक नेता के डर से  छठा वेतनमान दिया होता तो दूसरी बार कतई आदेश विसङ्गतिपूर्वक नही निकलता। सरकार ने साढे तीन लाख अध्यापको के बढ़ते आक्रोश को कम करने के लिए छटे वेतनमान का आदेश सिर्फ जारी किये हे न की किसी अध्यापक नेता की धमक से।
छटे वेतनमान के विसंगतिपूर्ण आदेश से प्रदेश के 1998 से 2003 तक के करीब दो लाख अध्यापको का वेतन इस छटे वेतनमान के आदेश से कम हो रहा हे जिससे अध्यापको में शासन के प्रति आक्रोश व्याप्त तो हे ही लेकिन उनका आक्रोश अपने नेताओ पर ज्यादा हे जो आदेश जारी के 60 दिन बाद भी विसंगति को दूर करवाने का एक भी संशोधन आदेश तक नही करवा नही पाये हे। वेतन विसंगति को लेकर प्रदेशभर के डीडीओ आदेश के बिन्दुओ की मनगढंत व्याख्या कर वेतन निर्धारण कर वेतन बिल बना रहे हे जिससे वेतन बढ़ने की बजाय कम हो रहा हे। अध्यापक नेताओ के हाल यह हे की उन्हें अध्यापको के वेतन कम होने का अफ़सोस करने के सब अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग अलाप रहे हे। रही बात अध्यापक संघर्ष समिति की तो वह अध्यापको के लिए संघर्ष की बजाय खुद के लोगो से इस वक्त ज्यादा संघर्ष करते हुए नज़र आ रही हे।
छटे वेतनमान के आदेश जारी हुए 60 दिन होने को आये हे और अब तक अध्यापको का सही वेतन निर्धारण नही हो पाना बड़े ही दुर्भाग्य की बात हे। आदेश की विसंगति को लेकर  मध्यप्रदेश शासन की जिम्मेदार अफसरशाही यदि इतने दिनों बाद भी कोई सन्तोषजनक हल नही निकाल पाई हे तो फिर हमारे नेता मुख्यमंत्रीजी से सीधे मिलकर क्यों नही विसंगति तत्काल दूर करवाने का प्रयास कर रहे हे ? क्यों अब तक हमारे प्रांतीय नेता मुख्यमंत्रीजी की संज्ञान में छटे वेतनमान की विसंगति की बात को नही लाये हे ? मै अपने समस्त प्रांतीय नेताओ से अध्यापक हित में एक बार पुनः निवेदन करता हु कि यदि सही मायने में प्रदेश के अध्यापको को छटे वेतनमान का लाभ दिलाना चाहते हे तो भोपाल में एकजुट होकर मुख्यमंत्रीजी से छटे वेतनमान के नाम पर अध्यापको के साथ हो रहे घिनोने मजाक को बताये और और मुख्यमंत्रीजी से अनुरोध करे की प्रदेश के अध्यापको को छटा वेतनमान प्रदेश के नियमित शिक्षको की भाति प्रदान करवाये।
अध्यापक के प्रांतीय नेताओ को जब तक प्रदेश के अध्यापको का छटे वेतनमान का सही सही तरीके से निर्धारण नही हो जाता तब तक अपने अपने संगठनो की समस्त गतिविधियों बन्द करके भोपाल में ही प्रांतीय स्तर पर सयुक्त रूप से चिंतन कर प्रयास करना चाहिए तभी मध्यप्रदेश शासन से आदेश जारी होने की उम्मीद हे अन्यथा अध्यापक छटे वेतनमान के नाम पर यु ही छलते जायेगे । (यह लेखक के निजी विचार हैं )

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Wednesday, December 7, 2016

सबसे पहले छटे वेतनमान की विसंगति पर चिंतन होना चाहिए -अरविन्द रावल


मध्यप्रदेश सरकार ने छटे वेतनमान का दूसरी बार भी क्या विसङ्गतिपूर्वक गणना पत्रक जारी किया प्रदेश के अध्यापक विशेष रूप से 1998 से 2003 तक के अध्यापको को एक बार फिर वेतन की उलझन में डाल दिया हे। अध्यापको के सभी तेरह ही संगठनो के मुखियाओं में से कुछ को तो आज आदेश जारी होने के 60 दिन बाद भी कोई विसंगति नज़र नही आती हे तो कुछ को विसंगति नज़र आती भी हे तो वे सिवाय एक ज्ञापन देने से ज्यादा कुछ करते हुए नज़र आते ही नही हे। हमारे अध्यापक हितेषी प्रांतीय नेता यदि इस गुमान में हे कि उनकी वजह से सरकार ने छठा वेतनमान दिया हे तो इस भ्रम को वे दूर कर ले। सरकार ने यदि किसी अध्यापक नेता के डर से  छठा वेतनमान दिया होता तो दूसरी बार कतई आदेश विसङ्गतिपूर्वक नही निकलता। सरकार ने साढे तीन लाख अध्यापको के बढ़ते आक्रोश को कम करने के लिए छटे वेतनमान का आदेश सिर्फ जारी किये हे न की किसी अध्यापक नेता की धमक से।
छटे वेतनमान के विसंगतिपूर्ण आदेश से प्रदेश के 1998 से 2003 तक के करीब दो लाख अध्यापको का वेतन इस छटे वेतनमान के आदेश से कम हो रहा हे जिससे अध्यापको में शासन के प्रति आक्रोश व्याप्त तो हे ही लेकिन उनका आक्रोश अपने नेताओ पर ज्यादा हे जो आदेश जारी के 60 दिन बाद भी विसंगति को दूर करवाने का एक भी संशोधन आदेश तक नही करवा नही पाये हे। वेतन विसंगति को लेकर प्रदेशभर के डीडीओ आदेश के बिन्दुओ की मनगढंत व्याख्या कर वेतन निर्धारण कर वेतन बिल बना रहे हे जिससे वेतन बढ़ने की बजाय कम हो रहा हे। अध्यापक नेताओ के हाल यह हे की उन्हें अध्यापको के वेतन कम होने का अफ़सोस करने के सब अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग अलाप रहे हे। रही बात अध्यापक संघर्ष समिति की तो वह अध्यापको के लिए संघर्ष की बजाय खुद के लोगो से इस वक्त ज्यादा संघर्ष करते हुए नज़र आ रही हे।
छटे वेतनमान के आदेश जारी हुए 60 दिन होने को आये हे और अब तक अध्यापको का सही वेतन निर्धारण नही हो पाना बड़े ही दुर्भाग्य की बात हे। आदेश की विसंगति को लेकर  मध्यप्रदेश शासन की जिम्मेदार अफसरशाही यदि इतने दिनों बाद भी कोई सन्तोषजनक हल नही निकाल पाई हे तो फिर हमारे नेता मुख्यमंत्रीजी से सीधे मिलकर क्यों नही विसंगति तत्काल दूर करवाने का प्रयास कर रहे हे ? क्यों अब तक हमारे प्रांतीय नेता मुख्यमंत्रीजी की संज्ञान में छटे वेतनमान की विसंगति की बात को नही लाये हे ? मै अपने समस्त प्रांतीय नेताओ से अध्यापक हित में एक बार पुनः निवेदन करता हु कि यदि सही मायने में प्रदेश के अध्यापको को छटे वेतनमान का लाभ दिलाना चाहते हे तो भोपाल में एकजुट होकर मुख्यमंत्रीजी से छटे वेतनमान के नाम पर अध्यापको के साथ हो रहे घिनोने मजाक को बताये और और मुख्यमंत्रीजी से अनुरोध करे की प्रदेश के अध्यापको को छटा वेतनमान प्रदेश के नियमित शिक्षको की भाति प्रदान करवाये।
अध्यापक के प्रांतीय नेताओ को जब तक प्रदेश के अध्यापको का छटे वेतनमान का सही सही तरीके से निर्धारण नही हो जाता तब तक अपने अपने संगठनो की समस्त गतिविधियों बन्द करके भोपाल में ही प्रांतीय स्तर पर सयुक्त रूप से चिंतन कर प्रयास करना चाहिए तभी मध्यप्रदेश शासन से आदेश जारी होने की उम्मीद हे अन्यथा अध्यापक छटे वेतनमान के नाम पर यु ही छलते जायेगे । (यह लेखक के निजी विचार हैं )

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