मप्र शासन द्वारा कर्मचारियों के लिये सप्ताह मे एक दिन स्वैच्छिक खादी वस्त्र पहनने संबंधी आदेश स्वागत योग्य है, खादी हमारी राष्ट्रीय पहचान है, खादी हमारी सांस्कृतिक चेतना को जाग्रत करती है, खादी स्वदेशी को परिपूर्णता प्रदान करती है.... "खादी फाॅर फैशन ही नही, खादी फाॅर नेशन भी है... खादी केवल वस्त्र ही नही, अपितु विचार भी है, संस्कार भी है..."
राष्ट्रनायक महात्मा गाँधीजी ने खादी को जन आस्था का केंद्र बना दिया.. जब आजादी का आंदोलन अपने चरम पर था, तब गाँधीजी अंग्रेजो से आजादी के साथ साथ सामाजिक, आर्थिक,राजनैतिक एवम् सांस्कृतिक आजादी के पक्षधर थे...वे खादी के माध्यम से हमारे कृषक वर्ग को समृद्ध करना चाहते थे.... इसलिये उन्होने खादी को भरपूर बढ़ावा दिया....उनके एक आह्वान पर सूत,चरखा और खादी आंदोलन की पहचान बन चुके थे.. चरखे की प्रवाहमान गति अहिंसक क्रांति को गतिमान कर रही थी,गाँधीजी चरखे के माध्यम से साधारण जन मानस की चेतना उद्वेलित करने मे सफल रहे..लोगो ने खादी के विचार को अपनाकर स्वदेशी को अपना समर्थन दिया...चरखा अहिंसक क्रांति की पहचान बन गया.. इस तरह खादी साधारण जनमानस के साथ साथ भारत की पहचान बन गई... कृषि कार्य मे बचे समय मे कृषक वर्ग सूत कातते.....और इस तरह खादी हमारे जीवन मे रच बस गई..
राष्ट्रनायक महात्मा गाँधीजी ने खादी को जन आस्था का केंद्र बना दिया.. जब आजादी का आंदोलन अपने चरम पर था, तब गाँधीजी अंग्रेजो से आजादी के साथ साथ सामाजिक, आर्थिक,राजनैतिक एवम् सांस्कृतिक आजादी के पक्षधर थे...वे खादी के माध्यम से हमारे कृषक वर्ग को समृद्ध करना चाहते थे.... इसलिये उन्होने खादी को भरपूर बढ़ावा दिया....उनके एक आह्वान पर सूत,चरखा और खादी आंदोलन की पहचान बन चुके थे.. चरखे की प्रवाहमान गति अहिंसक क्रांति को गतिमान कर रही थी,गाँधीजी चरखे के माध्यम से साधारण जन मानस की चेतना उद्वेलित करने मे सफल रहे..लोगो ने खादी के विचार को अपनाकर स्वदेशी को अपना समर्थन दिया...चरखा अहिंसक क्रांति की पहचान बन गया.. इस तरह खादी साधारण जनमानस के साथ साथ भारत की पहचान बन गई... कृषि कार्य मे बचे समय मे कृषक वर्ग सूत कातते.....और इस तरह खादी हमारे जीवन मे रच बस गई..
खादी, राष्ट्रप्रेम की ज्योति जलाती है,
खादी, ह्रदय को पवित्र कर हर्षाती है ।
तीन रंग की खादी चूनर ओढ़े, देखो,
आजादी की दुल्हिनयाँ मुस्काती है ।
किंतु शनैः शनैः खादी, आउट आॅफ फैशन समझा जाने लगा, आर्थिक उदारीकरण और बढ़ते वैश्विक बाजारीकरण ने खादी उद्योग को समाप्ति की कगा़र पर पँहुचाने मे कोई कसर नही छोड़ी...जबसे मेक इन इंडिया प्रभावी हुआ तभी से खादी को समृद्ध बनाने की योजनाएं कागज़ो से बाहर निकलकर क्रियान्वित होने लगी... एसे मे राज्य शासन का अपने कर्मचारियों को खादी को सप्ताह मे एक दिवस स्वैच्छिक करने के निर्णय का भरपूर समर्थन करना चाहिये.. मेरा तो मानना है कि खादी पहनने संबंधी आदेश को अनिवार्य करना चाहिये.. कम से कम सप्ताह मे एक दिन खादी का उपयोग अवश्य करे ...
खादी, ह्रदय को पवित्र कर हर्षाती है ।
तीन रंग की खादी चूनर ओढ़े, देखो,
आजादी की दुल्हिनयाँ मुस्काती है ।
किंतु शनैः शनैः खादी, आउट आॅफ फैशन समझा जाने लगा, आर्थिक उदारीकरण और बढ़ते वैश्विक बाजारीकरण ने खादी उद्योग को समाप्ति की कगा़र पर पँहुचाने मे कोई कसर नही छोड़ी...जबसे मेक इन इंडिया प्रभावी हुआ तभी से खादी को समृद्ध बनाने की योजनाएं कागज़ो से बाहर निकलकर क्रियान्वित होने लगी... एसे मे राज्य शासन का अपने कर्मचारियों को खादी को सप्ताह मे एक दिवस स्वैच्छिक करने के निर्णय का भरपूर समर्थन करना चाहिये.. मेरा तो मानना है कि खादी पहनने संबंधी आदेश को अनिवार्य करना चाहिये.. कम से कम सप्ताह मे एक दिन खादी का उपयोग अवश्य करे ...
सुनिल भारी
कन्नौद, जिला देवास (मप्र)
कन्नौद, जिला देवास (मप्र)
(लेखक स्वयं अध्यापक है, लेख मे प्रस्तुत विचार लेखक के निजी विचार है)
No comments:
Post a Comment