विष्णु पाटीदार खरगोन - आज का विषय माननीय ईलाहाबाद उच्च न्यायलय का आदेश जिसमें प्रत्येक लोकसेवक अफसर, कर्मचारी, विधायक और सांसद को अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों में पढ़ाने का आदेश है तो मेरे विचार से तो आज के परिवेश में अशासकीय शालाओं में अंग्रेजी माध्यम के कारण हीं आकर्षण बढ़ा है वरना हिन्दी माध्यम की स्कूलों से तुलना की जाय तो शासकीय शालाओं का परीक्षा परिणाम अशासकीय शालाओं के परीक्षा परिणाम से हमेशा 20 हीं रहा है । वैसे भी शासकीय शालाओं में स्टाॅफ अशासकीय शालाओं की तुलना में अधिक योग्यता वाले हैं । खासकर हाईस्कूल तथा हायरसेकेण्डरी में, जिन बच्चों को शासकीय शालाओं के शिक्षकों ने पढ़ाया है वेही अशासकीय शालाओं में पढ़ा रहे हैं । अगर शासकीय शालाओं में भी सरकार अंग्रेजी माध्यम की शालाऐं खोल दे तो न्यायालय के बगैर आदेश के हीं सभी लोकसेवक क्या सभी उद्योगपति, करोड़पति, उच्च वर्ग, निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग सारे शासकीय शालाओं में दर्ज हो जायेंगे और अशासकीय शालाऐं खुदबखुद बंद हो जाएगी । लेकिन शायद सरकार हीं नहीं चाहती की अशासकीय शालाऐं बंद हो सरकार की मंशा तो नीजीकरण करने की हीं है इसलिए तो अभी तक भी शासकीय अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की कमी है अशासकीय शालाओं में तो बस बाहरी चमक धमक और दिखावा है वे बच्चों को रट्टू तोता बना देते हैं जो आगे जा के प्रतियोगी परीक्षाओं में फैल हो जाते हैं । अशासकीय शालाओं के पास अगर शासकीय शालाओं के कमजोर वर्ग के बच्चे हो तो उनका परिणाम और भी घट जायेगा । इसलिए मैं चाहता हूँ कि सरकार अंग्रेजी माध्यम के भी सभी शासकीय स्कूल प्रारंभ कर दे तो माननीय न्यायालय के आदेश की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी और सभी लोकसेवक अफसर, कर्मचारी, विधायक, सांसद, निम्न वर्ग ,उच्च वर्ग ,व्यापारी, उद्योगपति, आदि सभी के बच्चे शासकीय शालाओं में हीं पढ़ेगे!
लेखक सवयं अध्यापक है और यह इनके निजी विचार है -यह लेख बुधवार और गुरूवार को शिक्षा विमर्श में चर्चा के विषय
' माननीय ईलाहबाद उच्च न्यायालय का आदेश जिसमे प्रत्येक लोकसेवक "अफसर ,कर्मचारी ,विधायक और सांसद " को अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों में पढ़ाने का आदेश ' में संयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर चुना गया है '
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