Wednesday, July 6, 2016

एम शिक्षा मित्र पर अध्यापको का बवाल कितना जायज ?- राशी राठौर देवास


राशी राठौर देवास-हर छोटे से छोटे गांव मै घंटी बजा के अपने कर्तव्य पर उपस्थित होने का पुख्ता प्रमाण देने वाला एक मात्र शासकीय सेवक अध्यापक/शिक्षक  ही है। हर विभाग के कार्यो का बोझ ढोते हुऐ ,सेकडो गैर शैक्षणिक कार्यो मै उलझाये रखने के बाद भी अध्यापको/शिक्षको  से कर्तव्य निष्ठा का प्रमाण मांगा जा रहा है।निश्चित ही एम शिक्षा मित्र एक उम्दा पहल है क्योंकि इसके माध्यम से जमीनी स्तर तक के शासकीय सेवक को जवाबदेह बनाया जाता है। अध्यापको की सालो लंबित मुख्य मांग यही है की पहले हमे शिक्षको के समान सुविधाएं दी जाये फिर हमसे एम मित्र उपस्थित ली जाये।देखा जाये तो ये कोई तर्क नही बनता है की अन्य कर्मचारी के समान सुविधा नही मिलने की वजह से अध्यापको को अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही या लेटलतीफी के अधिकार मिलना चाहिए। किन्तु एक विभाग के दो शासकीय सेवक को समान कार्य के लिऐ भिन्न भिन्न वेतनमान एवं समान नियम व अनुशासन लागू होना किसी भी मानवीय हृदय  को झकझोर देने और विरोध से भर देने के लिऐ पर्याप्त है।शासन के इस भेदभाव भरे नियमों का समर्थन हमारे देश का संविधान भी नही करता। इन्टरनेट कन्क्टीवीटी के मामले भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के हालात बद से बदतर है।समस्याओ से भरे एम मित्र के समक्ष कई रूकावटे है। उदाहरण के तौर पर देखे तो मई माह मै हुऐ ग्रामीण क्षेत्रों  के राजस्व विभाग के सर्वे को अंजाम देने वाले अध्यापक आज भी विद्यालय छोडकर कभी सरकारी कम्प्यूटर कक्ष के तो कभी निजी कियोस्क के चक्कर लगा रहै है। इन्टरनेट कन्क्टीवीटी तो बदतर है ही किन्तु अक्सर मोबाइल से सिग्नल ही गायब हो जाते है। कई बार शाला प्रभारी को विभिन्न कार्यों हेतु बहार जाना होता। चने फुटाने खाने वालो पर मंहगे एन्डराइड मोबाइल का बोझ क्यू। तकनीकी समस्या से शिक्षक गैर हाजिर दर्शाये जाने पर जवाबदेह कौन। विभिन्न निजी संस्थानों मै भी कर्मचारी की उपस्थिति सुनिश्चित करवाने हेतू उपकरण गेट पास संस्थान के द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है। इन कुछ कमियों को हटाने से शासन की यह योजना शिक्षा को गुणवत्ता पूर्ण बनाने मै सहायक सिध्द हो सकती है।किन्तु सरकार को यह समझना चाहिए की अशांत और विरोध से भरे सेवक से बेहतर परिणाम की नही ब्लकि क्रान्ति की ही उम्मीद की सकती है। क्योकी बल से व्यवहार बदला जा सकता है , विचार नही ।
लेखिका  स्वयं अध्यापक हैं।

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Wednesday, July 6, 2016

एम शिक्षा मित्र पर अध्यापको का बवाल कितना जायज ?- राशी राठौर देवास


राशी राठौर देवास-हर छोटे से छोटे गांव मै घंटी बजा के अपने कर्तव्य पर उपस्थित होने का पुख्ता प्रमाण देने वाला एक मात्र शासकीय सेवक अध्यापक/शिक्षक  ही है। हर विभाग के कार्यो का बोझ ढोते हुऐ ,सेकडो गैर शैक्षणिक कार्यो मै उलझाये रखने के बाद भी अध्यापको/शिक्षको  से कर्तव्य निष्ठा का प्रमाण मांगा जा रहा है।निश्चित ही एम शिक्षा मित्र एक उम्दा पहल है क्योंकि इसके माध्यम से जमीनी स्तर तक के शासकीय सेवक को जवाबदेह बनाया जाता है। अध्यापको की सालो लंबित मुख्य मांग यही है की पहले हमे शिक्षको के समान सुविधाएं दी जाये फिर हमसे एम मित्र उपस्थित ली जाये।देखा जाये तो ये कोई तर्क नही बनता है की अन्य कर्मचारी के समान सुविधा नही मिलने की वजह से अध्यापको को अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही या लेटलतीफी के अधिकार मिलना चाहिए। किन्तु एक विभाग के दो शासकीय सेवक को समान कार्य के लिऐ भिन्न भिन्न वेतनमान एवं समान नियम व अनुशासन लागू होना किसी भी मानवीय हृदय  को झकझोर देने और विरोध से भर देने के लिऐ पर्याप्त है।शासन के इस भेदभाव भरे नियमों का समर्थन हमारे देश का संविधान भी नही करता। इन्टरनेट कन्क्टीवीटी के मामले भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के हालात बद से बदतर है।समस्याओ से भरे एम मित्र के समक्ष कई रूकावटे है। उदाहरण के तौर पर देखे तो मई माह मै हुऐ ग्रामीण क्षेत्रों  के राजस्व विभाग के सर्वे को अंजाम देने वाले अध्यापक आज भी विद्यालय छोडकर कभी सरकारी कम्प्यूटर कक्ष के तो कभी निजी कियोस्क के चक्कर लगा रहै है। इन्टरनेट कन्क्टीवीटी तो बदतर है ही किन्तु अक्सर मोबाइल से सिग्नल ही गायब हो जाते है। कई बार शाला प्रभारी को विभिन्न कार्यों हेतु बहार जाना होता। चने फुटाने खाने वालो पर मंहगे एन्डराइड मोबाइल का बोझ क्यू। तकनीकी समस्या से शिक्षक गैर हाजिर दर्शाये जाने पर जवाबदेह कौन। विभिन्न निजी संस्थानों मै भी कर्मचारी की उपस्थिति सुनिश्चित करवाने हेतू उपकरण गेट पास संस्थान के द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है। इन कुछ कमियों को हटाने से शासन की यह योजना शिक्षा को गुणवत्ता पूर्ण बनाने मै सहायक सिध्द हो सकती है।किन्तु सरकार को यह समझना चाहिए की अशांत और विरोध से भरे सेवक से बेहतर परिणाम की नही ब्लकि क्रान्ति की ही उम्मीद की सकती है। क्योकी बल से व्यवहार बदला जा सकता है , विचार नही ।
लेखिका  स्वयं अध्यापक हैं।

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