Tuesday, July 5, 2016

25 जुलाई को भोपाल रैली में पहुंचिए-जगदीश यादव

शिक्षाकर्मी से अध्यापक बनने के बाद शिक्षक बनने के लिए
शिक्षा विभाग में संविलियन के आंदोलन को ताकतवर बनाएं
25 जुलाई को भोपाल रैली में पहुंचिए
अध्यापक साथियो,
राज्य अध्यापक संघ ने अपने गठन के साथ ही संघर्ष का रास्ता चुना, जिसमें हमें लगातार सफलता मिलती रही है। 500 का शिक्षाकर्मी आज 25000 का अध्यापक हो चुका है, अब उसे शिक्षक का दर्जा दिलाने जैसा महत्वपूर्ण काम करना है, जो शिक्षा विभाग में संविलियन से ही संभव है, इसीलिए हमने प्रदेश भर में संविलियन यात्रा के जरिए आंदोलन शुरू किया, जिसके तहत 25 जुलाई 2016 को भोपाल में हल्लाबोल रैली कर विधानसभा का घेराव किया जाएगा। 25 जुलाई की रैली की तैयारियां उसी दिन से शुरू हो चुकी थीं, जब सरकार ने विसंगतियोंभरा  गणपत्रक जारी किया था। हमारे संगठन ने गणपत्रक की होली जलाकर विरोध शुरू कर दिया था और 10 जून से भोपाल में अनिश्चितकालीन धरना जारी है। हमारे संगठन ने तय किया है कि हम सरकार को अध्यापकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे, इसीलिए हमने निर्णायक संघर्ष का ऐलान किया। हमारा यही संघर्ष हमें शिक्षा विभाग में पहुंचाएगा। इस लड़ाई को लडऩा और जीतना ही हमारा एकमात्र मकसद है, इसीलिए सभी अध्यापक साथियों से अनुरोध है कि वे प्रदेश में चल रही संविलियन यात्रा में शामिल हों और 25 जुलाई को अधिक से अधिक संख्या में भोपाल पहुंचे।
जीतने के लिए जरूरी है लडऩा?
छठवें वेतनमान की लड़ाई राज्य अध्यापक संघ 2013 में जीत चुका था। सरकार  चार किश्तों में छठवें वेतनमान का  समझौता राज्य अध्यापक संघ के पूर्व प्रांताध्यक्ष एवं विधायक मुरलीधर पाटीदार से कर चुकी थी, जिसकी तीन किश्तें मिल भी चुकी हैं, इसीलिए अब अंतिम और निर्णायक संघर्ष शिक्षा का निजीकरण रोकने तथा अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन का होना था, जिसकी रणनीति भी 2013 के छठवें वेतनमान के समझौते के समय ही बनाई जा चुकी थी। शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को लडऩे और जीतने के लिए राज्य अध्यापक संघ ने अपने पदाधिकारियों एवं सदस्यों को तैयार करने का काम उसी वक्त से शुरू कर दिया था। 2013 में हुए इस समझौते के बाद संगठन की  ब्लाक, जिला एवं प्रांतीय बैठकों में शिक्षा के निजीकरण को रोकने, अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन एवं संविदा नीति को समाप्त करने जैसे महत्वपूर्ण सवालों पर विचार-विमर्श होता था। इससे स्पष्ट है कि राज्य अध्यापक संघ शुरू से ही अध्यापकों, संविदा शिक्षकों एवं दूसरे अस्थाई कर्मचारियों के भविष्य के प्रति चिंतित रहा है। राज्य अध्यापक संघ  गंभीर विचार विमर्श के बाद ही संघर्ष के मैदान में उतरता रहा है, जिस कारण उसे आंदोलनों के दौरान जीत भी मिलती रही है।
सरकार कर रही अध्यापकों को कमजोर?
सरकार अपनी खुफिया एजेंसियाों के जरिए हमारे संगठन की तैयारियों की जानकारी जुटाती रहती है, सरकार को डर था कि राज्य अध्यापक संघ छठवें वेतनमान के बाद शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए निर्णायक आंदोलन में जाने वाला है, इसीलिए उसने अपने समर्थकों के जरिए छठवें वेनतमान को लेकर असमय  ही आंदोलन शुरू करवा दिया। इस दौरान सरकार के दो एजेंट जिस तरह सक्रिय दिखाई दिए, उससे स्पष्ट है कि सरकार अध्यापकों की एकता को कमजोर कर उनके अंदर भ्रम की स्थिति पैदा करना चाहती है, जिसमें कुछ समय के लिए वह कुछ हद तक सफल भी हुई। सरकार के इशारे पर चले आंदोलन से अध्यापकों को तो फायदा नहीं हुआ, उल्टे अध्यापकों में भ्रम पैदा हो गया। सरकार के इस षड्यंत्र को समझे बिना ही सोशल मीडिया पर अध्यापक एवं उनके नेता एक-दूसरे पर ही आरोप प्रत्यारोप करने लगे, जिसका फायदा भी सरकार ने उठाया और विसंगितयों भरा गणनापत्रक जारी कर दिया। अध्यापकों के साथ इस तरह का धोखा करने का साहस सरकार को कहां से मिला? कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार ने 2013 के बाद अध्यापकों की एकता को कमजोर करने का एकमात्र काम किया है।  सरकार ने अध्यापकों से डरना छोड़ दिया है, सरकार ऐसा मानकर चल रही है कि अध्यापक कुछ नहीं कर पाएंगे, वे आपस में ही लड़ झगड़कर घर बैठ जाएंगे। यही वह स्थिति है जिसके चलते सरकार मनमानी कर रही है। अब अध्यापकों को यह साबित करना है कि हम सरकार को मनमानी की इजाजत किसी भी कीमत पर नहीं दे सकते, इसीलिए राज्य अध्यापक संघ संविलियन यात्रा के जरिए सरकार को चेता रहा है कि यदि किए हुए वादे से मुकरने की कोशिश हुई, तब प्रदेश का अध्यापक खामोश नहीं बैठेगा।
क्यों जरूरी है संविलियन के लिए संघर्ष?
500 रुपए महीने का शिक्षाकर्मी यदि आज 25000 रुपए महीने का अध्यापक है तो यह किसी की मेहरबानी से नहीं बल्कि राज्य अध्यापक संघ के नेतृत्व में चले आंदोलनों की बदौलत ही है। 25,000 रुपए महीने के वेतन तक पहुंचने के लिए हम लोगों ने अनगिनत संघर्ष किए हैं। प्रदेश भर में शिक्षा बचाओ यात्राएं निकालीं। सबको शिक्षा सबको काम जैसा नारा देकर आम लोगों को आंदोलनों से जोड़ा। आंदोलन करते हुए जेलों तक गए। दर्जनों पदयात्राएं निकलीं। दिल्ली में संसद मार्ग जाम किया है। शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ प्रदेश भर में जागरुकता अभियान जलाए। राज्य अध्यापक संघ के यह कुछ ऐतिहासिक अभियान थे, जिनके कारण सरकार डरी और शिक्षाकर्मी से अध्यापक बनाया और वेतन भत्ते भी बढ़ाए। उपरोक्त अभियानों के दौरान भी राज्य अध्यापक संघ का स्पष्ट कहना था कि हमारा अंतिम लक्ष्य शिक्षा विभाग में संविलियन   है, इसीलिए अध्यापक इन जीतों से संतुष्ट होकर नहीं बैठा और वह अब तक लड़ रहा है। संघर्ष से ही जीत मिलती है, यह साबित हो चुका है, इसीलिए शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए लडऩा जरूरी है। संविलियन यात्रा इसी निर्णायक एवं अंतिम संघर्ष की तैयारियों के लिए शुरू की गई है, जिसके तहत 25 जुलाई को भोपाल में हल्ला बोल रैली की जाएगी। यही रैली प्रदेश के लाखों अध्यापकों का भविष्य तय करेगी, इसीलिए  सभी अध्यापकों को इस रैली में पहुंचने के लिए अभी से तैयारियां शुरू करनी होंगी।
आंदोलन के अलावा दूसरा रास्ता नहीं?
ऐसा नहीं है कि राज्य अध्यापक संघ ने अध्यापकों की मांगों के लिए सरकार से बातचीत नहीं की। 2013 में हुए छठवें वेतनमान के समझौते के बाद भी हमने लगातार सरकार से बातचीत जारी रखी। लंबित सभी मांगों पर बातचीत की। सरकार ने इस दौरान सिर्फ आश्वासन ही दिए, उसने आश्वासन के जरिए तीन साल निकाल दिए हैं, इसीलिए अब राज्य अध्यापक संघ किसी भी तरह के आश्वासन पर विश्वासन नहीं करेगा। अब हमारा संगठन निर्णायक और अंतिम संघर्ष के रास्ते पर चल पड़ा है, जिसमें जीत अध्यापकों को ही मिलेगी, ऐसा पूरा भरोसा और विश्वास है। सरकार बीसियों साल से अध्यापकों का शोषण करती आ रही है, अध्यापक की पूरी जवानी सरकार का शोषण सहते हुए गुजरी है इसीलिए बुढ़ापे को संभारने के लिए आंदोलन जरूरी है और ऐसा आंदोलन जो हमें शिक्षा विभाग का शिक्षक बनवा सके। राज्य अध्यापक संघ संविलियन यात्रा के जरिए ऐसा ही आंदोलन विकसित कर रहा है। आईए राज्य अध्यापक संघ के इस महत्वपूर्ण और निर्णायक आंदोलन का हिस्सा बनें और 25 जुलाई 2016 को होने वाले विधानसभा के घेराव में अधिक से अधिक संख्या में भोपाल पहुंचे।
लड़े हैं, तभी जीते हैं
लड़ोगे तो ही जीतोगे।

आपका
जगदीश यादव
प्रांताध्यक्ष
राज्य अध्यापक संघ, मध्यप्रदेश।

1 comment:

Comments system

Tuesday, July 5, 2016

25 जुलाई को भोपाल रैली में पहुंचिए-जगदीश यादव

शिक्षाकर्मी से अध्यापक बनने के बाद शिक्षक बनने के लिए
शिक्षा विभाग में संविलियन के आंदोलन को ताकतवर बनाएं
25 जुलाई को भोपाल रैली में पहुंचिए
अध्यापक साथियो,
राज्य अध्यापक संघ ने अपने गठन के साथ ही संघर्ष का रास्ता चुना, जिसमें हमें लगातार सफलता मिलती रही है। 500 का शिक्षाकर्मी आज 25000 का अध्यापक हो चुका है, अब उसे शिक्षक का दर्जा दिलाने जैसा महत्वपूर्ण काम करना है, जो शिक्षा विभाग में संविलियन से ही संभव है, इसीलिए हमने प्रदेश भर में संविलियन यात्रा के जरिए आंदोलन शुरू किया, जिसके तहत 25 जुलाई 2016 को भोपाल में हल्लाबोल रैली कर विधानसभा का घेराव किया जाएगा। 25 जुलाई की रैली की तैयारियां उसी दिन से शुरू हो चुकी थीं, जब सरकार ने विसंगतियोंभरा  गणपत्रक जारी किया था। हमारे संगठन ने गणपत्रक की होली जलाकर विरोध शुरू कर दिया था और 10 जून से भोपाल में अनिश्चितकालीन धरना जारी है। हमारे संगठन ने तय किया है कि हम सरकार को अध्यापकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे, इसीलिए हमने निर्णायक संघर्ष का ऐलान किया। हमारा यही संघर्ष हमें शिक्षा विभाग में पहुंचाएगा। इस लड़ाई को लडऩा और जीतना ही हमारा एकमात्र मकसद है, इसीलिए सभी अध्यापक साथियों से अनुरोध है कि वे प्रदेश में चल रही संविलियन यात्रा में शामिल हों और 25 जुलाई को अधिक से अधिक संख्या में भोपाल पहुंचे।
जीतने के लिए जरूरी है लडऩा?
छठवें वेतनमान की लड़ाई राज्य अध्यापक संघ 2013 में जीत चुका था। सरकार  चार किश्तों में छठवें वेतनमान का  समझौता राज्य अध्यापक संघ के पूर्व प्रांताध्यक्ष एवं विधायक मुरलीधर पाटीदार से कर चुकी थी, जिसकी तीन किश्तें मिल भी चुकी हैं, इसीलिए अब अंतिम और निर्णायक संघर्ष शिक्षा का निजीकरण रोकने तथा अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन का होना था, जिसकी रणनीति भी 2013 के छठवें वेतनमान के समझौते के समय ही बनाई जा चुकी थी। शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को लडऩे और जीतने के लिए राज्य अध्यापक संघ ने अपने पदाधिकारियों एवं सदस्यों को तैयार करने का काम उसी वक्त से शुरू कर दिया था। 2013 में हुए इस समझौते के बाद संगठन की  ब्लाक, जिला एवं प्रांतीय बैठकों में शिक्षा के निजीकरण को रोकने, अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन एवं संविदा नीति को समाप्त करने जैसे महत्वपूर्ण सवालों पर विचार-विमर्श होता था। इससे स्पष्ट है कि राज्य अध्यापक संघ शुरू से ही अध्यापकों, संविदा शिक्षकों एवं दूसरे अस्थाई कर्मचारियों के भविष्य के प्रति चिंतित रहा है। राज्य अध्यापक संघ  गंभीर विचार विमर्श के बाद ही संघर्ष के मैदान में उतरता रहा है, जिस कारण उसे आंदोलनों के दौरान जीत भी मिलती रही है।
सरकार कर रही अध्यापकों को कमजोर?
सरकार अपनी खुफिया एजेंसियाों के जरिए हमारे संगठन की तैयारियों की जानकारी जुटाती रहती है, सरकार को डर था कि राज्य अध्यापक संघ छठवें वेतनमान के बाद शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए निर्णायक आंदोलन में जाने वाला है, इसीलिए उसने अपने समर्थकों के जरिए छठवें वेनतमान को लेकर असमय  ही आंदोलन शुरू करवा दिया। इस दौरान सरकार के दो एजेंट जिस तरह सक्रिय दिखाई दिए, उससे स्पष्ट है कि सरकार अध्यापकों की एकता को कमजोर कर उनके अंदर भ्रम की स्थिति पैदा करना चाहती है, जिसमें कुछ समय के लिए वह कुछ हद तक सफल भी हुई। सरकार के इशारे पर चले आंदोलन से अध्यापकों को तो फायदा नहीं हुआ, उल्टे अध्यापकों में भ्रम पैदा हो गया। सरकार के इस षड्यंत्र को समझे बिना ही सोशल मीडिया पर अध्यापक एवं उनके नेता एक-दूसरे पर ही आरोप प्रत्यारोप करने लगे, जिसका फायदा भी सरकार ने उठाया और विसंगितयों भरा गणनापत्रक जारी कर दिया। अध्यापकों के साथ इस तरह का धोखा करने का साहस सरकार को कहां से मिला? कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार ने 2013 के बाद अध्यापकों की एकता को कमजोर करने का एकमात्र काम किया है।  सरकार ने अध्यापकों से डरना छोड़ दिया है, सरकार ऐसा मानकर चल रही है कि अध्यापक कुछ नहीं कर पाएंगे, वे आपस में ही लड़ झगड़कर घर बैठ जाएंगे। यही वह स्थिति है जिसके चलते सरकार मनमानी कर रही है। अब अध्यापकों को यह साबित करना है कि हम सरकार को मनमानी की इजाजत किसी भी कीमत पर नहीं दे सकते, इसीलिए राज्य अध्यापक संघ संविलियन यात्रा के जरिए सरकार को चेता रहा है कि यदि किए हुए वादे से मुकरने की कोशिश हुई, तब प्रदेश का अध्यापक खामोश नहीं बैठेगा।
क्यों जरूरी है संविलियन के लिए संघर्ष?
500 रुपए महीने का शिक्षाकर्मी यदि आज 25000 रुपए महीने का अध्यापक है तो यह किसी की मेहरबानी से नहीं बल्कि राज्य अध्यापक संघ के नेतृत्व में चले आंदोलनों की बदौलत ही है। 25,000 रुपए महीने के वेतन तक पहुंचने के लिए हम लोगों ने अनगिनत संघर्ष किए हैं। प्रदेश भर में शिक्षा बचाओ यात्राएं निकालीं। सबको शिक्षा सबको काम जैसा नारा देकर आम लोगों को आंदोलनों से जोड़ा। आंदोलन करते हुए जेलों तक गए। दर्जनों पदयात्राएं निकलीं। दिल्ली में संसद मार्ग जाम किया है। शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ प्रदेश भर में जागरुकता अभियान जलाए। राज्य अध्यापक संघ के यह कुछ ऐतिहासिक अभियान थे, जिनके कारण सरकार डरी और शिक्षाकर्मी से अध्यापक बनाया और वेतन भत्ते भी बढ़ाए। उपरोक्त अभियानों के दौरान भी राज्य अध्यापक संघ का स्पष्ट कहना था कि हमारा अंतिम लक्ष्य शिक्षा विभाग में संविलियन   है, इसीलिए अध्यापक इन जीतों से संतुष्ट होकर नहीं बैठा और वह अब तक लड़ रहा है। संघर्ष से ही जीत मिलती है, यह साबित हो चुका है, इसीलिए शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए लडऩा जरूरी है। संविलियन यात्रा इसी निर्णायक एवं अंतिम संघर्ष की तैयारियों के लिए शुरू की गई है, जिसके तहत 25 जुलाई को भोपाल में हल्ला बोल रैली की जाएगी। यही रैली प्रदेश के लाखों अध्यापकों का भविष्य तय करेगी, इसीलिए  सभी अध्यापकों को इस रैली में पहुंचने के लिए अभी से तैयारियां शुरू करनी होंगी।
आंदोलन के अलावा दूसरा रास्ता नहीं?
ऐसा नहीं है कि राज्य अध्यापक संघ ने अध्यापकों की मांगों के लिए सरकार से बातचीत नहीं की। 2013 में हुए छठवें वेतनमान के समझौते के बाद भी हमने लगातार सरकार से बातचीत जारी रखी। लंबित सभी मांगों पर बातचीत की। सरकार ने इस दौरान सिर्फ आश्वासन ही दिए, उसने आश्वासन के जरिए तीन साल निकाल दिए हैं, इसीलिए अब राज्य अध्यापक संघ किसी भी तरह के आश्वासन पर विश्वासन नहीं करेगा। अब हमारा संगठन निर्णायक और अंतिम संघर्ष के रास्ते पर चल पड़ा है, जिसमें जीत अध्यापकों को ही मिलेगी, ऐसा पूरा भरोसा और विश्वास है। सरकार बीसियों साल से अध्यापकों का शोषण करती आ रही है, अध्यापक की पूरी जवानी सरकार का शोषण सहते हुए गुजरी है इसीलिए बुढ़ापे को संभारने के लिए आंदोलन जरूरी है और ऐसा आंदोलन जो हमें शिक्षा विभाग का शिक्षक बनवा सके। राज्य अध्यापक संघ संविलियन यात्रा के जरिए ऐसा ही आंदोलन विकसित कर रहा है। आईए राज्य अध्यापक संघ के इस महत्वपूर्ण और निर्णायक आंदोलन का हिस्सा बनें और 25 जुलाई 2016 को होने वाले विधानसभा के घेराव में अधिक से अधिक संख्या में भोपाल पहुंचे।
लड़े हैं, तभी जीते हैं
लड़ोगे तो ही जीतोगे।

आपका
जगदीश यादव
प्रांताध्यक्ष
राज्य अध्यापक संघ, मध्यप्रदेश।

1 comment: