Thursday, June 9, 2016

वर्तमान अध्यापक संवर्ग के परिवेश का चित्रण एक नजर में करता दृष्टान्त-सियाराम पटेल, नरसिंहपुर।

वर्तमान अध्यापक संवर्ग के परिवेश का चित्रण एक नजर में  करता दृष्टान्त
 "एक औरत थी,
जो अंधी थी,
जिसके कारण उसके बेटे को स्कूल
में बच्चे चिढाते थे,
कि अंधी का बेटा आ गया,
हर बात पर उसे ये शब्द सुनने
को मिलता था कि “अन्धी का बेटा” .इसलिए वो अपनी माँ से चिडता था . उसे कही भी अपने
साथ लेकर जाने में हिचकता था
उसे नापसंद करता था..
उसकी माँ ने उसे पढ़ाया..
और उसे इस लायक बना दिया कि वो अपने पैरो पर खड़ा हो सके..
लेकिन जब वो बड़ा आदमी बन
गया तो अपनी माँ को छोड़
अलग रहने लगा..
एक दिन एक बूढी औरत उसके घर आई और गार्ड से बोली..
मुझे तुम्हारे साहब से मिलना है जब गार्ड ने अपने मालिक से
बोल तो मालिक ने कहा कि बोल
दो मै अभी घर पर नही हूँ.
गार्ड ने जब बुढिया से
बोला कि वो अभी नही है..
तो वो वहा से चली गयी..!!
थोड़ी देर बाद जब लड़का अपनी कार से ऑफिस के लिए जा रहा होता है.., तो देखता है कि सामने बहुत भीड़ लगी है.. और जानने के लिए कि वहा क्यों भीड़ लगी है वह
वहा गया तो देखा उसकी माँ वहा मरी पड़ी थी.., उसने
देखा की उसकी मुट्ठी में कुछ है उसने जब मुट्ठी खोली तो देखा की एक लेटर जिसमे यह लिखा था कि बेटा जब तू छोटा था तो खेलते वक़्त तेरी आँख में सरिया धंस
गयी थी और तू अँधा हो गया था तो मैंने तुम्हे अपनी आँखे दे दी थी.., इतना पढ़ कर लड़का जोर-जोर से रोने लगा..
उसकी माँ उसके पास नही आ
सकती थी..
दोस्तों वक़्त रहते ही लोगो की वैल्यू करना सीखो..
माँ-बाप का कर्ज हम
कभी नही चूका सकते..
हमारी प्यास का अंदाज़ भी अलग है दोस्तों-
"कभी समंदर को ठुकरा देते है,
तो कभी आंसू तक पी जाते है..!!!
“बैठना भाइयों के बीच,
चाहे “बैर” ही क्यों ना हो..
और खाना माँ के हाथो का,
चाहे “ज़हर” ही क्यों ना हो..!!…
 उक्त दृष्टान्त वर्तमान में अध्यापक संवर्ग में व्याप्त माहौल पर  बिलकुल फिट बैठता है।राज्य अध्यापक संघ म.प्र. ठीक उसी माँ के समान मातृ संघ हैं और इसी की कोख से जन्मे कुछ नवोदित संघ ठीक उसी बेटे के समान हैं जो अपने अस्तित्व के लिए अपनी माँ से ठीक उसी तरह ईर्ष्या करते हैं जैसे उस बेटे ने  जिसके सुनहरे भविष्य की नींव में संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व न्योछावर करते हुए जीवन के अंतिम पड़ाव  को प्राप्त किया और वह बेटा अपनी नासमझी के चलते माँ को ईर्ष्या करता रहा और ईर्ष्या भी इतनी क़ि शिष्टाचार को भूलते हुए आपसी प्रेम, व्यवहार व पारिवारिक भाव व मर्यादाएं भी दांव पर लगाते हुए सभी सीमायें पार कर दी हैं। आज भी लगभग हमारी भी यही स्थिति है,  जो एक माँ (राज्य अध्यापक संघ) के द्वारा अपने बेटे (अध्यापक संवर्ग) के सुनहरे भविष्य के लिए किये गए संघर्ष व प्रयास को बेटे ( नवोदित संघों) के द्वारा नजर अंदाज करने के समान ही है। जैसा कि हम विगत सितम्बर 2015 से जहा से चले और आज  भी वही के वही खड़े हैं...., जागो अध्यापक ....जागो............ हम इस आधुनिकता और प्रतिस्पर्धी युग में अपने नैतिक एवं   चारित्रिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए आपसी मान मर्यादाओं का ध्यान रखकर ही कार्य करें, तब   ही हम सही मायने में अपने मूल लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकेंगें.....।।। अध्यापक हित में जारी..,अगर आप अपने मातृ संघ को।     बेहद प्यार करते है तो इस मैसेज को इतना फैलाओ जितना तुम अपनी माँ को चाहतें हो…                  
 आपका अपना भाई-
सियाराम पटेल, नरसिंहपुर।  


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वर्तमान अध्यापक संवर्ग के परिवेश का चित्रण एक नजर में करता दृष्टान्त-सियाराम पटेल, नरसिंहपुर।

वर्तमान अध्यापक संवर्ग के परिवेश का चित्रण एक नजर में  करता दृष्टान्त
 "एक औरत थी,
जो अंधी थी,
जिसके कारण उसके बेटे को स्कूल
में बच्चे चिढाते थे,
कि अंधी का बेटा आ गया,
हर बात पर उसे ये शब्द सुनने
को मिलता था कि “अन्धी का बेटा” .इसलिए वो अपनी माँ से चिडता था . उसे कही भी अपने
साथ लेकर जाने में हिचकता था
उसे नापसंद करता था..
उसकी माँ ने उसे पढ़ाया..
और उसे इस लायक बना दिया कि वो अपने पैरो पर खड़ा हो सके..
लेकिन जब वो बड़ा आदमी बन
गया तो अपनी माँ को छोड़
अलग रहने लगा..
एक दिन एक बूढी औरत उसके घर आई और गार्ड से बोली..
मुझे तुम्हारे साहब से मिलना है जब गार्ड ने अपने मालिक से
बोल तो मालिक ने कहा कि बोल
दो मै अभी घर पर नही हूँ.
गार्ड ने जब बुढिया से
बोला कि वो अभी नही है..
तो वो वहा से चली गयी..!!
थोड़ी देर बाद जब लड़का अपनी कार से ऑफिस के लिए जा रहा होता है.., तो देखता है कि सामने बहुत भीड़ लगी है.. और जानने के लिए कि वहा क्यों भीड़ लगी है वह
वहा गया तो देखा उसकी माँ वहा मरी पड़ी थी.., उसने
देखा की उसकी मुट्ठी में कुछ है उसने जब मुट्ठी खोली तो देखा की एक लेटर जिसमे यह लिखा था कि बेटा जब तू छोटा था तो खेलते वक़्त तेरी आँख में सरिया धंस
गयी थी और तू अँधा हो गया था तो मैंने तुम्हे अपनी आँखे दे दी थी.., इतना पढ़ कर लड़का जोर-जोर से रोने लगा..
उसकी माँ उसके पास नही आ
सकती थी..
दोस्तों वक़्त रहते ही लोगो की वैल्यू करना सीखो..
माँ-बाप का कर्ज हम
कभी नही चूका सकते..
हमारी प्यास का अंदाज़ भी अलग है दोस्तों-
"कभी समंदर को ठुकरा देते है,
तो कभी आंसू तक पी जाते है..!!!
“बैठना भाइयों के बीच,
चाहे “बैर” ही क्यों ना हो..
और खाना माँ के हाथो का,
चाहे “ज़हर” ही क्यों ना हो..!!…
 उक्त दृष्टान्त वर्तमान में अध्यापक संवर्ग में व्याप्त माहौल पर  बिलकुल फिट बैठता है।राज्य अध्यापक संघ म.प्र. ठीक उसी माँ के समान मातृ संघ हैं और इसी की कोख से जन्मे कुछ नवोदित संघ ठीक उसी बेटे के समान हैं जो अपने अस्तित्व के लिए अपनी माँ से ठीक उसी तरह ईर्ष्या करते हैं जैसे उस बेटे ने  जिसके सुनहरे भविष्य की नींव में संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व न्योछावर करते हुए जीवन के अंतिम पड़ाव  को प्राप्त किया और वह बेटा अपनी नासमझी के चलते माँ को ईर्ष्या करता रहा और ईर्ष्या भी इतनी क़ि शिष्टाचार को भूलते हुए आपसी प्रेम, व्यवहार व पारिवारिक भाव व मर्यादाएं भी दांव पर लगाते हुए सभी सीमायें पार कर दी हैं। आज भी लगभग हमारी भी यही स्थिति है,  जो एक माँ (राज्य अध्यापक संघ) के द्वारा अपने बेटे (अध्यापक संवर्ग) के सुनहरे भविष्य के लिए किये गए संघर्ष व प्रयास को बेटे ( नवोदित संघों) के द्वारा नजर अंदाज करने के समान ही है। जैसा कि हम विगत सितम्बर 2015 से जहा से चले और आज  भी वही के वही खड़े हैं...., जागो अध्यापक ....जागो............ हम इस आधुनिकता और प्रतिस्पर्धी युग में अपने नैतिक एवं   चारित्रिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए आपसी मान मर्यादाओं का ध्यान रखकर ही कार्य करें, तब   ही हम सही मायने में अपने मूल लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकेंगें.....।।। अध्यापक हित में जारी..,अगर आप अपने मातृ संघ को।     बेहद प्यार करते है तो इस मैसेज को इतना फैलाओ जितना तुम अपनी माँ को चाहतें हो…                  
 आपका अपना भाई-
सियाराम पटेल, नरसिंहपुर।  


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