Wednesday, June 8, 2016

शिक्षाकर्मियों अध्यापको को आज तक जो मिला वह राजनैतिक लड़ाई और सत्ताधारियो के वोटरो के एक बड़े वर्ग के छिटकने के भय के फलस्वरूप ही मिला. -रिज़वान खान

 सम्मानीय अध्यापक साथियो
आज माननीय मुख्यमंत्री महोदय के निर्देश पर स्कूल शिक्षा विभाग ने छठे वेतनमान के नियमो का मखौल उडाता तथाकथित गणना पत्रक आदेश निरस्त/स्थगित कर दिया है. यह एक राजनैतिक निर्णय है क्योकि जो प्रशासकीय निर्णय पर भारी पड़ा. मै शुरू से लिखता रहा हू की शिक्षाकर्मियों अध्यापको को आज तक जो मिला वह राजनैतिक लड़ाई और सत्ताधारियो के वोटरो के एक बड़े वर्ग के छिटकने के भय के फलस्वरूप ही मिला.........आगे भी इसी तरह मिलेगा. अध्यापक नेतागण चाहे अपनी अलग खिचड़ी पकाने का प्रयास करे प्रदेश का आम अध्यापक सदैव साथ मिलकर लड़ा है और आगे भी लड़ेगा. रतलाम में बना मोर्चा इसका उदाहरण है. प्रदेश का राजनैतिक ने नेतृत्व अध्यापक के अंदर सुलगती आग को समय रहते ठंडा करने की कोशिश के तहद अपना ही आदेश निरस्त कर दिया है अब फिर गेंद हमारे पाले में है. हम भी रिटर्न गोल कर सकते है क्योकि अध्यापको में अनुभवी वरिष्ठ आंदोलनों में तपे तपाये गुणी लोगो की कमी नही है जो दो दशको पुराने इस आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचाने में पूर्णतः सक्षम है.

आगे होने वाला संघर्ष किसी मांग को मनवाने के लिए नही वरन जनवरी 2016 में पूर्ण हो चुकी छठे वेतनमान की मांग को नियमानुसार लागू कराने एवं वर्षो से लम्बित तबादला नीति की न्यायोचित मांग को पूर्ण करने के लिए होगा. आज 2015 के आंदोलन की सबसे बड़ी पूंजी चार लाइन का छठे वेतन का आदेश हमारे पास है शासन कितना भी विलंब करे कुत्सित प्रयास करे (जो की करके देख चुका आज आदेश निरस्त किया है) अंततः छठे वेतन के नियमानुसार अध्यापको का वेतन निर्धारण उसको करना ही होगा.....मगर कब ? यही यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर शासन नही हमारे पास है. जितनी जल्दी हमारा नेतृत्व एकजुट होकर शासन को चुनौती देगा उतनी ही शीघ्रता से हमारी समस्याओ का अंत हो जाएगा.

अभी कुछ दिन पूर्व लिपिक वर्गीय कर्मचारियों की मांगो के सम्बन्ध में बनी शासकीय अधिकार संपन्न कमेटी में कर्मचारी नेता भी शामिल किये गए है पूर्व में भी अनेक कमेटियो में कर्मचारी नेताओ को सम्मिलित किया जाता रहा है. माननीय सीएम साहब सार्वजनिक मंचो से हमारे प्रति सदाशयता दिखाते है उन्होंने पूर्व में भी लीक से हटकर निर्णय लेकर हमारा हिट किया है अतः एक अधिकार सम्पन्न कमेटी बने जिसमे स्कूल शिक्षा वित्त सहित सम्बंधित विभागों के अधिकारी सहित अध्यापक प्रतिनिधि सम्मिलित हो. उक्त कमेटी अध्यापको से सम्बंधित समस्त समस्याओ पर समय सीमा में रिपोर्ट देवे. अगर शासन पर दबाव बनाकर हम इसी प्रकार समस्या निवारण कमेटी बना सके और अपने नेताओ को उसमे सम्मिलित करा सके तो हमारे नेताओ की भी परीक्षा हो जायेगी क्योकि कमेटी की कार्यवाही रिकार्ड की जाती है. कहने का आशय यह है की आगे जो भी हो निश्चित रूपरेखा बनाकर समन्वयित प्रयासों से किया जाये. इससे अध्यापक भी निश्चिन्त होकर अपना कार्य कर सकेंगे अफवाहों पर विराम लगेगा प्रशासन से रोज रोज की टकराव से बचा जा सकता है. सम्पूर्ण क्रांति के इस आंदोलनकारी माहौल में यह प्रस्ताव बहुतो को अटपटा लग सकता है किन्तु वास्तविकता यही है की हमारी माँगे चरणबद्ध रूप से ही पूर्ण हो सकती है.

2016 लगभग आधा होने को है और छह माह बाद 2017 के शुरुवाती महीनो से प्रदेश में राजनैतिक बिसात बिछने लगेगी जिसमे आगे हर निर्णय राजनैतिक लाभ हानि के दृष्टिकोण से होगा. यदि हम धैर्य रखकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करेंगे हमारी हर मांग पूरी हो सकती है. नियमित वेतनमान लेने के लिए 17 वर्ष प्रतीक्षा की है साल छह महीने और सही........ अगर एकता नही हुई तो विधानसभा चुनावो के पूर्व शासन अलग अलग संघो से समझौते कर दीर्घकालीन नुकसान कर देगा. पूर्व का अनुभव सबको पता है. कोई एक संघ आंदोलन करे इससे आज की परिस्तिथियो में शासन पर कोई दबाव नही बन सकता है.

आपका रिज़वान खान, सामान्य अध्यापक.

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Wednesday, June 8, 2016

शिक्षाकर्मियों अध्यापको को आज तक जो मिला वह राजनैतिक लड़ाई और सत्ताधारियो के वोटरो के एक बड़े वर्ग के छिटकने के भय के फलस्वरूप ही मिला. -रिज़वान खान

 सम्मानीय अध्यापक साथियो
आज माननीय मुख्यमंत्री महोदय के निर्देश पर स्कूल शिक्षा विभाग ने छठे वेतनमान के नियमो का मखौल उडाता तथाकथित गणना पत्रक आदेश निरस्त/स्थगित कर दिया है. यह एक राजनैतिक निर्णय है क्योकि जो प्रशासकीय निर्णय पर भारी पड़ा. मै शुरू से लिखता रहा हू की शिक्षाकर्मियों अध्यापको को आज तक जो मिला वह राजनैतिक लड़ाई और सत्ताधारियो के वोटरो के एक बड़े वर्ग के छिटकने के भय के फलस्वरूप ही मिला.........आगे भी इसी तरह मिलेगा. अध्यापक नेतागण चाहे अपनी अलग खिचड़ी पकाने का प्रयास करे प्रदेश का आम अध्यापक सदैव साथ मिलकर लड़ा है और आगे भी लड़ेगा. रतलाम में बना मोर्चा इसका उदाहरण है. प्रदेश का राजनैतिक ने नेतृत्व अध्यापक के अंदर सुलगती आग को समय रहते ठंडा करने की कोशिश के तहद अपना ही आदेश निरस्त कर दिया है अब फिर गेंद हमारे पाले में है. हम भी रिटर्न गोल कर सकते है क्योकि अध्यापको में अनुभवी वरिष्ठ आंदोलनों में तपे तपाये गुणी लोगो की कमी नही है जो दो दशको पुराने इस आंदोलन को तार्किक परिणीति तक पहुंचाने में पूर्णतः सक्षम है.

आगे होने वाला संघर्ष किसी मांग को मनवाने के लिए नही वरन जनवरी 2016 में पूर्ण हो चुकी छठे वेतनमान की मांग को नियमानुसार लागू कराने एवं वर्षो से लम्बित तबादला नीति की न्यायोचित मांग को पूर्ण करने के लिए होगा. आज 2015 के आंदोलन की सबसे बड़ी पूंजी चार लाइन का छठे वेतन का आदेश हमारे पास है शासन कितना भी विलंब करे कुत्सित प्रयास करे (जो की करके देख चुका आज आदेश निरस्त किया है) अंततः छठे वेतन के नियमानुसार अध्यापको का वेतन निर्धारण उसको करना ही होगा.....मगर कब ? यही यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर शासन नही हमारे पास है. जितनी जल्दी हमारा नेतृत्व एकजुट होकर शासन को चुनौती देगा उतनी ही शीघ्रता से हमारी समस्याओ का अंत हो जाएगा.

अभी कुछ दिन पूर्व लिपिक वर्गीय कर्मचारियों की मांगो के सम्बन्ध में बनी शासकीय अधिकार संपन्न कमेटी में कर्मचारी नेता भी शामिल किये गए है पूर्व में भी अनेक कमेटियो में कर्मचारी नेताओ को सम्मिलित किया जाता रहा है. माननीय सीएम साहब सार्वजनिक मंचो से हमारे प्रति सदाशयता दिखाते है उन्होंने पूर्व में भी लीक से हटकर निर्णय लेकर हमारा हिट किया है अतः एक अधिकार सम्पन्न कमेटी बने जिसमे स्कूल शिक्षा वित्त सहित सम्बंधित विभागों के अधिकारी सहित अध्यापक प्रतिनिधि सम्मिलित हो. उक्त कमेटी अध्यापको से सम्बंधित समस्त समस्याओ पर समय सीमा में रिपोर्ट देवे. अगर शासन पर दबाव बनाकर हम इसी प्रकार समस्या निवारण कमेटी बना सके और अपने नेताओ को उसमे सम्मिलित करा सके तो हमारे नेताओ की भी परीक्षा हो जायेगी क्योकि कमेटी की कार्यवाही रिकार्ड की जाती है. कहने का आशय यह है की आगे जो भी हो निश्चित रूपरेखा बनाकर समन्वयित प्रयासों से किया जाये. इससे अध्यापक भी निश्चिन्त होकर अपना कार्य कर सकेंगे अफवाहों पर विराम लगेगा प्रशासन से रोज रोज की टकराव से बचा जा सकता है. सम्पूर्ण क्रांति के इस आंदोलनकारी माहौल में यह प्रस्ताव बहुतो को अटपटा लग सकता है किन्तु वास्तविकता यही है की हमारी माँगे चरणबद्ध रूप से ही पूर्ण हो सकती है.

2016 लगभग आधा होने को है और छह माह बाद 2017 के शुरुवाती महीनो से प्रदेश में राजनैतिक बिसात बिछने लगेगी जिसमे आगे हर निर्णय राजनैतिक लाभ हानि के दृष्टिकोण से होगा. यदि हम धैर्य रखकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करेंगे हमारी हर मांग पूरी हो सकती है. नियमित वेतनमान लेने के लिए 17 वर्ष प्रतीक्षा की है साल छह महीने और सही........ अगर एकता नही हुई तो विधानसभा चुनावो के पूर्व शासन अलग अलग संघो से समझौते कर दीर्घकालीन नुकसान कर देगा. पूर्व का अनुभव सबको पता है. कोई एक संघ आंदोलन करे इससे आज की परिस्तिथियो में शासन पर कोई दबाव नही बन सकता है.

आपका रिज़वान खान, सामान्य अध्यापक.

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