Friday, June 3, 2016

शासन ने अध्यापको को मज़ाक का विषय बना रखा हे - अरविन्द रावल

   अध्यापको के छटे वेतनमान के गणना पत्रक की विसंगति की चर्चा मंत्रालय में जरूर सुनाई दे रही हे किन्तु अधिकारी की कार्य प्रणाली के चलते अभी एक दो महीने इस विसंगति के  सुधरने के आसार नज़र नही आते हे। या यू कहे की बिना मुख्यमंत्रीजी की फटकार से अधिकारी अध्यापको की विसंगति दूर करने वाले नही हे।
    क्योंकि सरकार में बेठे बड़े अधिकारी इस आदेश के बाद चाशनी देखना चाहती हे कि अध्यापको की सरकार प्रति क्या राय बनती हे। शासन को यह तो अच्छी तरह से पता हे की प्रदेश के करीब तीन लाख अध्यापक तेरह से ज्यादा संघो में अलग थलग होकर बिखरे पड़े हे और इस समय कोई भी संघ इस स्थिति में नही हे कि वह अध्यापक हित को लेकर कोई बड़ी और निर्णायक लड़ाई सीधे तोर पर सरकार से लड़ सकता हे। और सरकार के कुछ नुमाइंदे इस समय यह बात भी बड़े वजनदार तरीके से करते हे की ऐसी बिखराव की और एकजुटता के अभाव की स्थिति में यदि कोई एक दो संघ अपने बीस तीस हजार अध्यापको के साथ आंदोलन वगेरह भी करता हे तो उससे सरकार के कान में जू भी रेंगने वाली नही हे। और न ही प्रदेश के अन्य अध्यापक नेता यह चाहेंगे की अध्यापक हित में किसी प्रकार के आंदोलन का हिस्सा बनकर अपनी छवि प्रदेश के  मुखिया के सामने ख़राब की जाये।
    सन्देश साफ हे की टुकड़ो में बिखर कर अध्यापको की स्थिति कमजोर और खण्डित हो चुकी हे। ऐसे में कोई भी अध्यापक संघ का नेता सीधे तोर अध्यापक हित में मुख्यमंत्रीजी की आखो की किरकिरी नही बनना चाहेगा। अध्यापको के सभी प्रमुख भी दिली तोर पर यही चाहते हे कि प्रदेश के मुखिया के वे प्रिय पात्र बने रहे और सीधे संवाद की स्थिति बनी रहे।
   अब यदि छटे वेतनमान की विसंगतियो को वास्तव में दूर करना अध्यापक संघ प्रमुखों का ध्येय हे तो उन्हें व्यक्तिगत श्रेय लेने की होड़ छोड़कर सयुक्त रूप से एकजुट होकर मुख्यमंत्रीजी से शीघ्र मुलाकात करके इस विसंगति को शासन से दूर करवाने का ही एकमात्र विकल्प बचा हे। मुख्यमंत्रीजी से यदि एकजुट होकर अध्यापक नेता बात करते हे तो एक दो महीने में विसंगति दूर हो सकती हे। अन्यथा अलग अलग मुलाकात करके अध्यापको के नेता महीनो इस विसंगति को दूर नही कर सकते हे।
     अध्यापको के सभी संघ प्रमुखों से मेरा विनम्र आग्रह हे की टुकड़ो में बिखरने की ही यही परिणीति हे की आज शासन ने  अध्यापको को मज़ाक का विषय बना रखा हे। हर आंदोलन हर आदेश के बाद हमारे अपने ही लोगो को टुकड़े में बाटना शासन में बेठे लोगो की मंशा हे। यदि सभी अध्यापक संघ प्रमुख अब और  टुकड़े नही चाहते हे और निस्वार्थ भाव से अध्यापक हित चाहते हे तो सभी एकजुट होने ऐलान करे। मुझे उम्मीद हे अब भी एक हो जायेगे तो हम गढ़ जीत जायेगे।
- अरविन्द रावल

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Friday, June 3, 2016

शासन ने अध्यापको को मज़ाक का विषय बना रखा हे - अरविन्द रावल

   अध्यापको के छटे वेतनमान के गणना पत्रक की विसंगति की चर्चा मंत्रालय में जरूर सुनाई दे रही हे किन्तु अधिकारी की कार्य प्रणाली के चलते अभी एक दो महीने इस विसंगति के  सुधरने के आसार नज़र नही आते हे। या यू कहे की बिना मुख्यमंत्रीजी की फटकार से अधिकारी अध्यापको की विसंगति दूर करने वाले नही हे।
    क्योंकि सरकार में बेठे बड़े अधिकारी इस आदेश के बाद चाशनी देखना चाहती हे कि अध्यापको की सरकार प्रति क्या राय बनती हे। शासन को यह तो अच्छी तरह से पता हे की प्रदेश के करीब तीन लाख अध्यापक तेरह से ज्यादा संघो में अलग थलग होकर बिखरे पड़े हे और इस समय कोई भी संघ इस स्थिति में नही हे कि वह अध्यापक हित को लेकर कोई बड़ी और निर्णायक लड़ाई सीधे तोर पर सरकार से लड़ सकता हे। और सरकार के कुछ नुमाइंदे इस समय यह बात भी बड़े वजनदार तरीके से करते हे की ऐसी बिखराव की और एकजुटता के अभाव की स्थिति में यदि कोई एक दो संघ अपने बीस तीस हजार अध्यापको के साथ आंदोलन वगेरह भी करता हे तो उससे सरकार के कान में जू भी रेंगने वाली नही हे। और न ही प्रदेश के अन्य अध्यापक नेता यह चाहेंगे की अध्यापक हित में किसी प्रकार के आंदोलन का हिस्सा बनकर अपनी छवि प्रदेश के  मुखिया के सामने ख़राब की जाये।
    सन्देश साफ हे की टुकड़ो में बिखर कर अध्यापको की स्थिति कमजोर और खण्डित हो चुकी हे। ऐसे में कोई भी अध्यापक संघ का नेता सीधे तोर अध्यापक हित में मुख्यमंत्रीजी की आखो की किरकिरी नही बनना चाहेगा। अध्यापको के सभी प्रमुख भी दिली तोर पर यही चाहते हे कि प्रदेश के मुखिया के वे प्रिय पात्र बने रहे और सीधे संवाद की स्थिति बनी रहे।
   अब यदि छटे वेतनमान की विसंगतियो को वास्तव में दूर करना अध्यापक संघ प्रमुखों का ध्येय हे तो उन्हें व्यक्तिगत श्रेय लेने की होड़ छोड़कर सयुक्त रूप से एकजुट होकर मुख्यमंत्रीजी से शीघ्र मुलाकात करके इस विसंगति को शासन से दूर करवाने का ही एकमात्र विकल्प बचा हे। मुख्यमंत्रीजी से यदि एकजुट होकर अध्यापक नेता बात करते हे तो एक दो महीने में विसंगति दूर हो सकती हे। अन्यथा अलग अलग मुलाकात करके अध्यापको के नेता महीनो इस विसंगति को दूर नही कर सकते हे।
     अध्यापको के सभी संघ प्रमुखों से मेरा विनम्र आग्रह हे की टुकड़ो में बिखरने की ही यही परिणीति हे की आज शासन ने  अध्यापको को मज़ाक का विषय बना रखा हे। हर आंदोलन हर आदेश के बाद हमारे अपने ही लोगो को टुकड़े में बाटना शासन में बेठे लोगो की मंशा हे। यदि सभी अध्यापक संघ प्रमुख अब और  टुकड़े नही चाहते हे और निस्वार्थ भाव से अध्यापक हित चाहते हे तो सभी एकजुट होने ऐलान करे। मुझे उम्मीद हे अब भी एक हो जायेगे तो हम गढ़ जीत जायेगे।
- अरविन्द रावल

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