शिक्षा और उस से जुड़े संवर्ग की सेवाओं से जुडी जानकारीयां ,आप तक आसानी से पहुंचाने का एक प्रयास है अध्यापक जगत
Sunday, June 5, 2016
एक दुसरे के आंदोलनों की निंदा की बजाय प्रसंशा करके भी एका कायम रखी जा सकती है - डी के सिंगौर
डी के सिंगौर - चाहे आप और लड़कर 6th pay पूरा ले लें....7th pay ले लें और शिक्षा विभाग में सम्विलियन भी करा ले पर इतना तो समझ आ गया होगा कि सरकार से लड़ना क्या होता है और राज्य अध्यापक संघ 21 सालों से सरकार से लड़ता रहा है और आज तक जो भी पाया है वह कैसे मिला होगा ,समझा जा सकता है। खाली झोली लेकर लड़ना और बात है और झोली में कुछ आ जाता है तो फिर लड़ना और बात है शुक्र है शिवराज जैसे CM से ही पाला पड़ा दिग्गी राजा से लड़ते तो और समझ आता। पाटीदार जी के MLA बनने से हमें आपत्ति इसलिये नहीं है कि हमने उन्हे बहुत शुरू से शिक्षा कर्मियों के लिये लड़ते देखा है और लड़ना सीखा है उनके परिश्रम का सुफल उन्हें मिला अब उनके बगैर लड़ना हमे सीखना पड़ेगा। सरकार ने पिछले 9 महीनों में जिस तरह से अध्यापकों को छकाया,नचाया,घुमाया,सताया,तरसाया.......उससे ;यही सिद्ध होता है कि मुख्यमंत्री छल और प्रपंच में माहिर हैं और यह व्यवहार शिक्षा जैसे उत्कृष्ट कार्य में लगे कर्मचारियों के साथ किया जाना उनकी संवेदनशीलता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है , अब एक बार फिर इस छल और प्रपंच के विरोध में अध्यापक सड़कों पर आ रहे हैं अध्यापक संगठनों के एका की बात आम अध्यापक कर रहा है एक होना उतनी बड़ी बात नही है जितनी मांग पूरी होते तक एक बने रहना। क्योकि इसका अनुभव बहुत अच्छा नही रहा है उन अनुभवों से सबक लेकर के साथ चलने की कोशिश करनी पड़ेगी एक न हो सके तो मांगपत्र (विस्तृत) तो बैठकर एक बनाया जा सकता है जब मांगपत्र एक होगा तो धीरे धीरे एका भी होने लगेगा एक दुसरे के आंदोलनों की निंदा की बजाय प्रसंशा करके भी एका कायम रखी जा सकती है। एका को लेकर आम अध्यापक बहुत चिंतित दिखाई दे रहा है उसकी चिंता दूर करना अध्यापक नेताओं का काम है हालाकि एका की बाते अभी मात्र ओपचारिकता ही समझ आ रही है क्योकि लोगो को दिखाने मात्र के लिये सोशल मीडिया में एका की बाते की जा रही है सीधे संवाद स्थापित नही किया जा रहा है अंत में सार की बात लड़ाई लड़ी जाये तो सही रणनीति के साथ। आन्दोलन में कई बड़ी कमियाँ रही है जिसका नतीजा सामने है। अब तक श्रेय के लिये लड़े पर कुछ भी श्रेय नही मिला अब एक बार श्रेय की होड़ छोड़ के लड़कर देखे जरुर श्रेय मिलेगा
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Sunday, June 5, 2016
एक दुसरे के आंदोलनों की निंदा की बजाय प्रसंशा करके भी एका कायम रखी जा सकती है - डी के सिंगौर
डी के सिंगौर - चाहे आप और लड़कर 6th pay पूरा ले लें....7th pay ले लें और शिक्षा विभाग में सम्विलियन भी करा ले पर इतना तो समझ आ गया होगा कि सरकार से लड़ना क्या होता है और राज्य अध्यापक संघ 21 सालों से सरकार से लड़ता रहा है और आज तक जो भी पाया है वह कैसे मिला होगा ,समझा जा सकता है। खाली झोली लेकर लड़ना और बात है और
झोली में कुछ आ जाता है तो फिर लड़ना और बात है शुक्र है शिवराज जैसे CM से ही पाला पड़ा दिग्गी राजा से लड़ते तो और समझ आता। पाटीदार जी के MLA बनने से हमें आपत्ति इसलिये नहीं है कि हमने उन्हे बहुत शुरू से शिक्षा कर्मियों के लिये लड़ते देखा है और लड़ना सीखा है उनके परिश्रम का सुफल उन्हें मिला अब उनके बगैर लड़ना हमे सीखना पड़ेगा। सरकार ने पिछले 9 महीनों में जिस तरह से अध्यापकों को छकाया,नचाया,घुमाया,सताया,तरसाया.......उससे ;यही सिद्ध होता है कि मुख्यमंत्री छल और प्रपंच में माहिर हैं और यह व्यवहार शिक्षा जैसे उत्कृष्ट कार्य में लगे कर्मचारियों के साथ किया जाना उनकी संवेदनशीलता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है , अब एक बार फिर इस छल और प्रपंच के विरोध में अध्यापक सड़कों पर आ रहे हैं अध्यापक संगठनों के एका की बात आम अध्यापक कर रहा है एक होना उतनी बड़ी बात नही है जितनी मांग पूरी होते तक एक बने रहना। क्योकि इसका अनुभव बहुत अच्छा नही रहा है उन अनुभवों से सबक लेकर के साथ चलने की कोशिश करनी पड़ेगी एक न हो सके तो मांगपत्र (विस्तृत) तो बैठकर एक बनाया जा सकता है जब मांगपत्र एक होगा तो धीरे धीरे एका भी होने लगेगा एक दुसरे के आंदोलनों की निंदा की बजाय प्रसंशा करके भी एका कायम रखी जा सकती है। एका को लेकर आम अध्यापक बहुत चिंतित दिखाई दे रहा है उसकी चिंता दूर करना अध्यापक नेताओं का काम है हालाकि एका की बाते अभी मात्र ओपचारिकता ही समझ आ रही है क्योकि लोगो को दिखाने मात्र के लिये सोशल मीडिया में एका की बाते की जा रही है सीधे संवाद स्थापित नही किया जा रहा है अंत में सार की बात लड़ाई लड़ी जाये तो सही रणनीति के साथ। आन्दोलन में कई बड़ी कमियाँ रही है जिसका नतीजा सामने है। अब तक श्रेय के लिये लड़े पर कुछ भी श्रेय नही मिला अब एक बार श्रेय की होड़ छोड़ के लड़कर देखे जरुर श्रेय मिलेगा
लेखक मंडला में वरिष्ठ अध्यापक है और उनके निजी विचार है।
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