Sunday, June 5, 2016

अशासकीय विद्यालयों के धंधे लिप्त शासकीय शिक्षक - एक अध्यापक

अशासकीय विद्यालयों के धंधे लिप्त शासकीय शिक्षक
--------------------------------------------------------------------
पिछला सत्र सभी शासकीय विद्यालय मै गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा वर्ष के रूप मै मनाया गया है। सरकार भी मुक्त हाथों से धनराशी प्रदान कर गुणवत्ता सुधारने के लिए  पुरजोर प्रयास कर रही है। प्रत्येक छात्र को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। किन्तु शासन के इन मन्सूबो पर शासन के द्वारा ही नियुक्त शिक्षक, अध्यापक, संविदाशिक्षक ही पानी फेर रहै है। ये शिक्षक पदस्थापना वाले विद्यालय की अपेक्षा स्वयं के विद्यालय को अधिक समय देते है। अपने निजीविद्यालय का संचालन ये स्वयं ही करते है। पदस्थापना वाली शाला का समय चुराकर स्वयं की निजीशाला के शिक्षण से लेकर प्रबन्धन तक के सभी कार्यों को अन्जाम ये शासकीय शिक्षक ही देते है।यही नही ये सब शिक्षा विभाग के नाक के नीचे ही चल रहा है। हद तो तब हो जाती है जब समय समय पर होने वाली बैठक जिसमै अशाशकीय शालाओ के लिऐ शासकीय अमले समय समय पर दिशा निर्देश जारी करने हेतु बैठक लेते है।, ये बैठक शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा ली जाती है। ऐसी बैठको मै भी स्वयं के निजी शाला के संचालक के रूप मै ये शासकीय शिक्षक बडी शान से शिरकत करते है और आला अधिकारी चुप रहते है। यही नही इनकी निजी शाला के विज्ञापन तक मै ये अपना नाम गर्व से अंकित करवा शासन के नियमो को अंगूठा तक दिखाते है। शासन को ऐसे शिक्षको को चिन्हित कर इनकी पदस्थापना इनके अशासकीय विद्यालय से दूर करनी चाहिए व इस दिशा मै उचित कदम उठा देश के गरीब नोनिहालो का भविष्य सुरक्षित करना चाहिए।
लेखक के कहने पर नाम सार्वजानिक नहीं किया जा रहा है ।लेखक एक अध्यापक हैं।

No comments:

Post a Comment

Comments system

Sunday, June 5, 2016

अशासकीय विद्यालयों के धंधे लिप्त शासकीय शिक्षक - एक अध्यापक

अशासकीय विद्यालयों के धंधे लिप्त शासकीय शिक्षक
--------------------------------------------------------------------
पिछला सत्र सभी शासकीय विद्यालय मै गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा वर्ष के रूप मै मनाया गया है। सरकार भी मुक्त हाथों से धनराशी प्रदान कर गुणवत्ता सुधारने के लिए  पुरजोर प्रयास कर रही है। प्रत्येक छात्र को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। किन्तु शासन के इन मन्सूबो पर शासन के द्वारा ही नियुक्त शिक्षक, अध्यापक, संविदाशिक्षक ही पानी फेर रहै है। ये शिक्षक पदस्थापना वाले विद्यालय की अपेक्षा स्वयं के विद्यालय को अधिक समय देते है। अपने निजीविद्यालय का संचालन ये स्वयं ही करते है। पदस्थापना वाली शाला का समय चुराकर स्वयं की निजीशाला के शिक्षण से लेकर प्रबन्धन तक के सभी कार्यों को अन्जाम ये शासकीय शिक्षक ही देते है।यही नही ये सब शिक्षा विभाग के नाक के नीचे ही चल रहा है। हद तो तब हो जाती है जब समय समय पर होने वाली बैठक जिसमै अशाशकीय शालाओ के लिऐ शासकीय अमले समय समय पर दिशा निर्देश जारी करने हेतु बैठक लेते है।, ये बैठक शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा ली जाती है। ऐसी बैठको मै भी स्वयं के निजी शाला के संचालक के रूप मै ये शासकीय शिक्षक बडी शान से शिरकत करते है और आला अधिकारी चुप रहते है। यही नही इनकी निजी शाला के विज्ञापन तक मै ये अपना नाम गर्व से अंकित करवा शासन के नियमो को अंगूठा तक दिखाते है। शासन को ऐसे शिक्षको को चिन्हित कर इनकी पदस्थापना इनके अशासकीय विद्यालय से दूर करनी चाहिए व इस दिशा मै उचित कदम उठा देश के गरीब नोनिहालो का भविष्य सुरक्षित करना चाहिए।
लेखक के कहने पर नाम सार्वजानिक नहीं किया जा रहा है ।लेखक एक अध्यापक हैं।

No comments:

Post a Comment