Friday, June 24, 2016

मप्र में शांतिपूर्ण विद्रोह जैसे हालात ? - वसुदेव शर्मा छिंदवाड़ा


वसुदेव शर्मा छिंदवाड़ा - स्कूलों में प्रवेसोत्सव मन चुका है, लेकिन शिक्षकों की उपस्थिति सामान्य से भी कम है। स्कूल जाने वाले शिक्षक भी बेमन से ही जा रहे हैं। सभी 51 जिलों में अध्यापकों के टेंट लगे हुए हैं। अध्यापकों के नेता जिलों में सभाएं कर शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई के लिए अध्यापकों को तैयार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की बार-बार की वादाखिलाफी से तंग अध्यापक इस बार आर-पार की मानसिकता बना चुके हैं, वे लगभग शांतिपूर्ण विद्रोह की मुद्रा में हैं। उन्हें शिक्षा मंत्री पर भरोसा नहीं हैं, मुख्यमंत्री भी उनका भरोसा तोड़ चुके हैं, इसीलिए इस बार सिर्फ आदेश पर ही बात बनेगी,  ऐसा नहीं होने पर स्कूल तो नहीं ही खुलेंगे।

विद्रोह की मुद्रा में सिर्फ अध्यापक ही नहीं है, जिन स्कूलों में अध्यापक हैं, उन्हीं स्कूलों के अतिथि शिक्षकों ने भी आंखें तरेर दी हैं, इनकी संख्या भी एक लाख के आस-पास है। 24 को सुबह भोपाल पहुंचने वाली ट्रेनों से अतिथियों की भीड़ उतरेगी और शहाजहांनीपार्क से सरकार को चुनौती देंगे, ये भोपाल में तब तक रहेंगे, जब तक सरकार इनके भविष्य का फैसला नहीं कर देती।
विद्रोह की स्थिति सिर्फ स्कूलों में नहीं हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के संविदाकर्मी भी विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान अपनी ताकत  का अहसास कराने के लिए भोपाल में डेरा डालने वाले हैं। इनकी संख्या भी दो लाख से ऊपर पहुंचती है।

सरकारों की लोकप्रिय ठेका प्रणाली के सताए यह कर्मचारी भले ही टुकड़ों टुकड़ों में लड़ रहे हों, लेकिन इनकी लड़ाई का मकसद एक ही है कि उस विनाशकारी ठेका प्रणाली को तत्काल बंद किया जाए, जिसने उन्हें जवानी में भुखमरी जैसे हालात में जीने को मजबूर कर दिया है। अध्यापक शिक्षा विभाग में संविलियन चाहते हैं। अतिथि शिक्षक स्कूलों मे स्थाई नौकरी चाहते हैं। अतिथि विद्वान कालेजों के प्राध्यापक बनना चाहते हैं। संविदा कर्मचारी स्थाई कर्मचारी बनना चाहते हैं।

मप्र में 10-15 साल से चल रहे यह कर्मचारी इस बार पहले से ज्यादा गुस्से में हैं और वे लगभग सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण विद्रोह कर चुके हैं, जब तक सरकार इनकी नौकरी में निश्चिंतता नहीं ला देती, तब तक यह लोग शायद ही मन लगाकर काम कर सकें, यह स्थिति भी तो विद्रोह जैसी ही है और इसके लिए वही नीतियां जिम्मेदार हैं, जिनसे कांग्रेस को भी प्यार है और मोदीजी की भाजपा को भी।

लेखक पत्रकार है और यह उनकी निजी रिपोर्ट है ।

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Friday, June 24, 2016

मप्र में शांतिपूर्ण विद्रोह जैसे हालात ? - वसुदेव शर्मा छिंदवाड़ा


वसुदेव शर्मा छिंदवाड़ा - स्कूलों में प्रवेसोत्सव मन चुका है, लेकिन शिक्षकों की उपस्थिति सामान्य से भी कम है। स्कूल जाने वाले शिक्षक भी बेमन से ही जा रहे हैं। सभी 51 जिलों में अध्यापकों के टेंट लगे हुए हैं। अध्यापकों के नेता जिलों में सभाएं कर शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई के लिए अध्यापकों को तैयार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की बार-बार की वादाखिलाफी से तंग अध्यापक इस बार आर-पार की मानसिकता बना चुके हैं, वे लगभग शांतिपूर्ण विद्रोह की मुद्रा में हैं। उन्हें शिक्षा मंत्री पर भरोसा नहीं हैं, मुख्यमंत्री भी उनका भरोसा तोड़ चुके हैं, इसीलिए इस बार सिर्फ आदेश पर ही बात बनेगी,  ऐसा नहीं होने पर स्कूल तो नहीं ही खुलेंगे।

विद्रोह की मुद्रा में सिर्फ अध्यापक ही नहीं है, जिन स्कूलों में अध्यापक हैं, उन्हीं स्कूलों के अतिथि शिक्षकों ने भी आंखें तरेर दी हैं, इनकी संख्या भी एक लाख के आस-पास है। 24 को सुबह भोपाल पहुंचने वाली ट्रेनों से अतिथियों की भीड़ उतरेगी और शहाजहांनीपार्क से सरकार को चुनौती देंगे, ये भोपाल में तब तक रहेंगे, जब तक सरकार इनके भविष्य का फैसला नहीं कर देती।
विद्रोह की स्थिति सिर्फ स्कूलों में नहीं हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के संविदाकर्मी भी विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान अपनी ताकत  का अहसास कराने के लिए भोपाल में डेरा डालने वाले हैं। इनकी संख्या भी दो लाख से ऊपर पहुंचती है।

सरकारों की लोकप्रिय ठेका प्रणाली के सताए यह कर्मचारी भले ही टुकड़ों टुकड़ों में लड़ रहे हों, लेकिन इनकी लड़ाई का मकसद एक ही है कि उस विनाशकारी ठेका प्रणाली को तत्काल बंद किया जाए, जिसने उन्हें जवानी में भुखमरी जैसे हालात में जीने को मजबूर कर दिया है। अध्यापक शिक्षा विभाग में संविलियन चाहते हैं। अतिथि शिक्षक स्कूलों मे स्थाई नौकरी चाहते हैं। अतिथि विद्वान कालेजों के प्राध्यापक बनना चाहते हैं। संविदा कर्मचारी स्थाई कर्मचारी बनना चाहते हैं।

मप्र में 10-15 साल से चल रहे यह कर्मचारी इस बार पहले से ज्यादा गुस्से में हैं और वे लगभग सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण विद्रोह कर चुके हैं, जब तक सरकार इनकी नौकरी में निश्चिंतता नहीं ला देती, तब तक यह लोग शायद ही मन लगाकर काम कर सकें, यह स्थिति भी तो विद्रोह जैसी ही है और इसके लिए वही नीतियां जिम्मेदार हैं, जिनसे कांग्रेस को भी प्यार है और मोदीजी की भाजपा को भी।

लेखक पत्रकार है और यह उनकी निजी रिपोर्ट है ।

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