Saturday, May 14, 2016

पदोन्नति में आरक्षण रद्द इसका अध्यापक संवर्ग पर प्रभाव , ? सुरेश यादव रतलाम


        मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय की संविधान पीठ (जस्टिस खानविलकर और जस्टिस संजय यादव ) ने असंवैधानिक घोषित कर दिया है। साथ ही 2002 से 31 मार्च 2016 तक अनुसुचित जाती और जनजाति के लोकसेवकों को पदावनत करने का भी आदेश दिया है । विदित रहे  यह आदेश  सर्वोच्च न्ययालय की  संविधान पीठ द्वारा  एम.नागराज और सूरजभान मीणा विरुद्ध उत्तर प्रदेश शासन  के प्रकरण में दिए गए निर्णय के सदंर्भ में  था । इस निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 16 (4) ए को भी अवैध घोषित कर दिया गया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश ,बिहार और तमिलनाडु में लाखो कर्मचारी पदावनत किये गए है। मध्य प्रदेश शासन 2002 के नियम  के पक्ष में सर्वोच्च  न्यायालय गया और विशेष अनुमति याचिका दायर की ,शासन के अतिरिक्त  अन्य पक्ष भी सर्वोच्च न्ययालय में अपना पक्ष रखने को उपस्थित हुए हैं।
         इस मामले में साथीयो द्वारा  अलग अलग अनुमान लगाए जा कह रहे हैं।  वास्तविकता यह है की सर्वोच्च न्यायलय के आदेश को दो भाग  में देखना चाहिए ,पहला 2002 से 2016 तक और दूसरा अब आगे क्या होगा ? सर्वोच्च न्यायलय ने 2002 से  2016 तक पदोन्नत  किये गए लोकसेवकों को पदावनत  करने के आदेश पर सर्वोच्च  न्यायलय के अंतिम निर्णय तक रोक लगा दी गयी है मतलब अभी पदावनत  नहीं होंगे  । परन्तु 2002 के नियम को भी आगे जारी रखने से सर्वोच्च न्ययालय ने इंकार कर दिया है। अर्थात अब भविष्य में प्रदेश में पदोन्नति  में अनुसुचित जाती और जनजाति के लोकसेवकों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा ।पदोन्नति में अनारक्षित वर्ग पूर्व की भाँती  लाभ लेता रहेगा
        इसका अध्यापक संवर्ग की पदोन्नतियों पर भी व्यापक असर होगा ,यही नहीं अब AEO भर्ती पर भी इसका असर नजर आएगा क्योकि यह भी विभागीय परीक्षा के माध्यम से पदोन्नति की प्रतिक्रिया थी । साथियो भविष्य में पदोन्नति किस प्रकार होंगी इसके लिए हमें थोड़ी प्रतीक्षा करनी होगी। धन्यवाद
   सुरेश यादव  (सम सामयिक विषय पर यह लेखक की समीक्षा है एवं निजी विचार हैं )



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Saturday, May 14, 2016

पदोन्नति में आरक्षण रद्द इसका अध्यापक संवर्ग पर प्रभाव , ? सुरेश यादव रतलाम


        मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय की संविधान पीठ (जस्टिस खानविलकर और जस्टिस संजय यादव ) ने असंवैधानिक घोषित कर दिया है। साथ ही 2002 से 31 मार्च 2016 तक अनुसुचित जाती और जनजाति के लोकसेवकों को पदावनत करने का भी आदेश दिया है । विदित रहे  यह आदेश  सर्वोच्च न्ययालय की  संविधान पीठ द्वारा  एम.नागराज और सूरजभान मीणा विरुद्ध उत्तर प्रदेश शासन  के प्रकरण में दिए गए निर्णय के सदंर्भ में  था । इस निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 16 (4) ए को भी अवैध घोषित कर दिया गया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश ,बिहार और तमिलनाडु में लाखो कर्मचारी पदावनत किये गए है। मध्य प्रदेश शासन 2002 के नियम  के पक्ष में सर्वोच्च  न्यायालय गया और विशेष अनुमति याचिका दायर की ,शासन के अतिरिक्त  अन्य पक्ष भी सर्वोच्च न्ययालय में अपना पक्ष रखने को उपस्थित हुए हैं।
         इस मामले में साथीयो द्वारा  अलग अलग अनुमान लगाए जा कह रहे हैं।  वास्तविकता यह है की सर्वोच्च न्यायलय के आदेश को दो भाग  में देखना चाहिए ,पहला 2002 से 2016 तक और दूसरा अब आगे क्या होगा ? सर्वोच्च न्यायलय ने 2002 से  2016 तक पदोन्नत  किये गए लोकसेवकों को पदावनत  करने के आदेश पर सर्वोच्च  न्यायलय के अंतिम निर्णय तक रोक लगा दी गयी है मतलब अभी पदावनत  नहीं होंगे  । परन्तु 2002 के नियम को भी आगे जारी रखने से सर्वोच्च न्ययालय ने इंकार कर दिया है। अर्थात अब भविष्य में प्रदेश में पदोन्नति  में अनुसुचित जाती और जनजाति के लोकसेवकों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा ।पदोन्नति में अनारक्षित वर्ग पूर्व की भाँती  लाभ लेता रहेगा
        इसका अध्यापक संवर्ग की पदोन्नतियों पर भी व्यापक असर होगा ,यही नहीं अब AEO भर्ती पर भी इसका असर नजर आएगा क्योकि यह भी विभागीय परीक्षा के माध्यम से पदोन्नति की प्रतिक्रिया थी । साथियो भविष्य में पदोन्नति किस प्रकार होंगी इसके लिए हमें थोड़ी प्रतीक्षा करनी होगी। धन्यवाद
   सुरेश यादव  (सम सामयिक विषय पर यह लेखक की समीक्षा है एवं निजी विचार हैं )



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