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Saturday, April 2, 2016
विधायक और सांसद भी लोकसेवक है
विधायक और सांसद भी लोकसेवक है ,उनका भी वेतन आयोग बने
मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्यों ,पूर्व सदस्यों ,मंत्री,मुख्यमंत्री का वेतन व पेंशन बढ़ाने का प्रस्ताव केबिनेट में सर्वसम्मति से पारित हो गया ,जल्द ही इस संबन्ध में एक प्रस्ताव विधानसभा में लाकर इसे इसे अमलीजामा पहनाया जाएगा । वह कार्यवाही अब मात्र औपचारिकता भर है,विधानसभा में कुछ लाइन के प्रस्ताव को सभी दलों का समर्थन रहेगा और मत विभाजन के बिना प्रस्ताव पारित हो जाएगा ।
जहाँ तक मुझे याद है ऐसे प्रस्तावों का विरोध वामपंथी सांसद लोकसभा और राज्य सभा में करते हैं,लेकिन वामपंथी सांसदों की यह आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह ही रहती है । यही नहीं वामपंथी दलो द्वारा 30 वर्ष तक शासित पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में विधायको के वेतन में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं की गयी ,आज हम देख सकते है की पश्चिम बंगाल में विधायको के वेतन भत्ते सिर्फ 25 से 30 हजार ही है । और त्रिपुरा में पुरे भारत में सबसे कम जँहा मुख्यमंत्री को भत्तो सहित 18 हजार और विधायको को भत्तो सहित 15 हजार वेतन मिलता है । जबकि सबसे अधिक वेतन नवगठित राज्य तेलंगना में है जँहा मुख्यमंत्री को 4 लाख 20 हजार और विधायको को 2लाख 50 हजार वेतनभत्ता मिलता है ।इस प्रकार देखें तो पुरे भारत में विधायको ,मंत्रियो ,मुख्यमंत्रीयो के वेतन भत्तो में भारी असमानता है ।
यदि मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखा जाए तो विधायको का वेतन भत्ता ,एक sdm और sdop को प्राप्त वेतन और सुविधाओ के बराबर ही बैठता है। सम्पूर्ण भारत में औसतन देखा जाए तो विधायकों - सांसदों को प्राप्त वेतन भत्ते प्रथम श्रेणी के अधिकारियों के आसपास ही होंगी। जबकि देश में 4120 ( MLA,MLC व् मनोनीत ) विधायक और 790 सांसद ( लोकसभा ,राज्य सभा ,मनोनीत ) है। इसकी तुलना में प्रथम श्रेणी अधिकारी और सुविधा प्राप्त द्वितीय श्रेणी अधिकारियों की संख्या 4 लाख से अधिक है। विधायक-सांसद को एक अफसर की तुलना में कंही अधिक लोगो के संपर्क में रहना होता है और व्यापक भ्रमण की आवश्यक्ता होती है ।
हमने देखा है की कई विधायक और सांसद वेतन ग्रहण नहीं करते ,इसका एक उदाहरण रतलाम शहर विधायक श्री चैतन्य काश्यप है जो न तो वेतन लेते है न ही अन्य सुविधा स्वीकार करते है ,महात्मा गाँधी ने भी विधायको और सांसदों को सामाजिक कार्यकर्ता मानकर वेतन ग्रहण नहीं करने का आव्हान किया था ,यह धारणा तात्कालीन समय में उचित रही होगी लेकिन वर्तमान में तो विधायक और सांसद एक राजनेतिक कार्यकर्ता होता है और दिन रात अपनी पार्टी के कार्य भी संपादित करता है ।राजनेतिक कार्यकर्ता वाले खांके में वामपंथी सांसद और विधायक फिट बैठते है जो अपना पूरा वेतन पार्टी के ख़जाने में देते है और वे अपनी पार्टी द्वारा प्रदत्त वेतन भत्तो पर जीवन निर्वहन करते है और पार्टी का कार्य करते है ।क्या ऐसी व्यवस्था सभी दलो द्वारा नहीं अपनाई जा सकती ? जिसमे चुनाव खर्च सरकार उठाये और वेतन भत्ते पार्टी प्रदान करे ,लेकिन यह मुद्दा चुनाव सुधारो से जुड़ा है ,जिसमे किसी भी राजनेतिक दल की कोई रूचि नहीं है ।
वास्तविकता यह है की 4120 विधायको और 790 सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ने से ज्यादा हमे कोई समस्या नहीं ,समस्या इस बात से है की , ये लोग अपने वेतन भत्तो के प्रस्ताव पर कोई विचार विमर्श क्यों नहीं करते ,या इनमे कटौती का कोई प्रस्ताव क्यों नहीं लाया जाता । हर आर्थिक प्रस्ताव पर बजट के अभाव का रोना रोने वाली सरकार इन प्रस्तावों पर कोई बात क्यों नहीं करती साथ ही हर बढ़ोतरी में कटौती का प्रास्ताव लाने वाला विपक्ष इस मामले में कोई प्रस्ताव क्यों नहीं लाता । मेरा मानना है की विधायको को भी वेतन भत्ते और सुविधाये मिले लेकिन सबसे पहले वे एक लोकसेवक (कर्मचारी /अधिकारी) की तरह आचरण करे व कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी भी तय की जाए और कार्यो की समीक्षा हो ।
विधायकों -सांसदों के वेतन बढ़ाने के लिए कर्मचारीयो की ही तरह वेतन आयोग का गठन किया जाए इस प्रकार सम्पूर्ण देश में वेतन भत्तो में एक रूपता भी रहेगी एवं उन्हें स्वयं का वेतन में बढ़ाने का प्रस्ताव मंजूर भी नहीं करना होगा ।
सुरेश यादव(रतलाम)9926809650
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