इंतजार का फल कड़वा ( अध्यापक स्थान्तरण के संदर्भ में )- कृष्णा परमार सैलाना जिला रतलाम
आखीरकार 18 साल के लंबे इंतजार के बाद फल मिला वो भी कड़वा आज हम बात कर रहे हैं ऐसे निवाले की जो अध्यापकों के हाथ तो आ गया पर मुंह न लग पाया जी हां हम बात कर रहे हैं बहुप्रतीक्षित स्थानांतरण निति की बहुप्रतीक्षित शब्द इसलिए कि पुराणों में देवता भी इतनी लंबी तपस्या नहीं कर पाए जितनी कि मध्य प्रदेश की आम अध्यापक कहे जाने वाले इस प्राणी ने की है 18 साल की लंबी तपस्या के बाद उसे जो फल मिला इस कहावत को भी झूठा साबित करता है कि इंतजार का फल मीठा होता है अब तो ऐसा लगता है जैसे श्रवण के पिता का श्राप राजा दशरथ की बजाए मध्यप्रदेश के अध्यापकों को जा लगा कि जाओ तुम अपने परिवार और बच्चों से दूर रहकर तड़प तड़प कर जीवन बिताओगे न ही तुम अपने बच्चों की फूलों जैसी हंसी देख पाओगे नहीं तुम उनका बचपन जी पाओगे पत्नी तुम्हारी विरह वेदना में तड़पती रहेगी और ना ही तुम अपने मां बाप के बुढ़ापे का सहारा बन पाओगे | इतना घोर श्राप तो राजा दशरथ को भी ना लगा था |
अब आते हैं मुद्दे की बात पर अध्यापकों के लिए ट्रांसफर पालिसी जो कि 1 अप्रैल से जारी होने वाली है उपरोक्त स्थिति वहीं पर निर्मित हो रही हैं ट्रांसफर केवल 1 जिले से दूसरे जिले में ही होंगे लेकिन हम आपको बता दें कि जिले में एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी 100 से लगाकर 150 किलोमीटर तक है और यदि कोई अध्यापक जिला बदलकर ट्रांसफर लेता है तो वह ऐसी स्थिति में और भी अधिक दूरी पर पहुंच जाएगा |अब इस परिस्थिति में कोई क्योंकर आफत मोल लेना चाहेगा केवल कुछ गिने चुने अध्यापक ही इस पॉलिसी का लाभ ले पाएंगे यह पॉलिसी कुल मिलाकर हाथी के दांत जैसी है इसे आप और हम केवल छू सकते हैं महसूस कर सकते हैं देख सकते हैं पर इसका उपयोग नहीं कर सकते हैं हम अध्यापक अपील करते हैं सभी अध्यापक जगत के पदाधिकारियों से की इस अनु उपयोगी स्थानांतरण नीति का विरोध करें एवं बंधन मुक्त स्थानांतरण नीति जारी करवाएं | जिससे कि हमारे अध्यापक साथियों की 18 साल से चल रही तपस्या को सफल बनाया जावे एवं इंतजार के फल को फिर से मीठा किया जाए जिससे कि इंतजार का फल फिर से मीठा हो जाए |
यह लेखक के निजी विचार है लेखक स्वयं अध्यापक हैं।