शिक्षक संवर्ग के मान्यता प्राप्त संगठन है l
जिसकी उदासीनता का नतीजा है कि वह अपने घर को नही बचा सके और न ही बचाने का प्रयास किया परिणाम संवर्ग समाप्ति की ओर है l यदि उस समय के शिक्षक संगठनों ने ध्यान दिया होता तो
जिसकी उदासीनता का नतीजा है कि वह अपने घर को नही बचा सके और न ही बचाने का प्रयास किया परिणाम संवर्ग समाप्ति की ओर है l यदि उस समय के शिक्षक संगठनों ने ध्यान दिया होता तो
1997-98 मे शिक्षाकर्मी का जन्म न होता l
म.प्र. का शिक्षित बेरेजगार संविदा के आगोश मे न होता l
म.प्र. के हर कर्मचारी संगठनों ने अपने संवर्ग को बचाने की कोशिश नहीं की यदि उसे बचाने के लिये कोशिश की होती तो हर विभाग संविदा के गाल मे न होता l
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सत्ता के गलियारों की नजदीकियाँ बन गई तो भूल गये कि हम एक दबाब समूह है l जो अपने दबाब को बनाये रखने से ही वह संवर्ग जीवित है नही मृतप्राय है और उस संवर्ग को बचाये रखने की जरूरत है l तभी हमारी ताकत है वह शेष रहेगी l
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सत्ता की गलियों के सुख ने इन पदाधिकारियों को और संवर्ग को सुख से दूर कर दिया है l
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इसके ठीक विपरीत मै अपने अध्यापक संगठन को कहूँगा वह सही दिशा मे थे l जो कहते है कि कुछ नहीं किया वह भ्रम मे है l
म.प्र. का शिक्षित बेरेजगार संविदा के आगोश मे न होता l
म.प्र. के हर कर्मचारी संगठनों ने अपने संवर्ग को बचाने की कोशिश नहीं की यदि उसे बचाने के लिये कोशिश की होती तो हर विभाग संविदा के गाल मे न होता l
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सत्ता के गलियारों की नजदीकियाँ बन गई तो भूल गये कि हम एक दबाब समूह है l जो अपने दबाब को बनाये रखने से ही वह संवर्ग जीवित है नही मृतप्राय है और उस संवर्ग को बचाये रखने की जरूरत है l तभी हमारी ताकत है वह शेष रहेगी l
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सत्ता की गलियों के सुख ने इन पदाधिकारियों को और संवर्ग को सुख से दूर कर दिया है l
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इसके ठीक विपरीत मै अपने अध्यापक संगठन को कहूँगा वह सही दिशा मे थे l जो कहते है कि कुछ नहीं किया वह भ्रम मे है l
और उनका यह कहना कि अध्यापक संगठन के पदाधिकारी वर्ग ने कुछ नही किया l
कुछ न किया होता तो एक वर्ष के शिक्षा कर्मी होते थे जो हर वर्ष अतिथि के समान भरे जाते और निकाले जाते l
शिक्षाकर्मी 10 माह काम करता था l तो बाद मे संविदा भी बना साथ मे एक गुरूजी भी रहा है l सभी की एकजुटता ने अध्यापक संवर्ग को जन्म दिलाने मे और कर्मी कल्चर गुरूजी कल्चर,संविदा कल्चर को समाप्त कराने मे सफल रहे है l 1998 से 2013 तक इन्ही सब से मुक्ति मिली है जिसे कम नही कहा जा सकता तब जाके आज वह छठवाँ तक लाया है l
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2013 मे पाटीदारजी ने सत्ता के गलियों मे कदम रखा जिसका परिणाम था कि हम 2 वर्ष 2013 से 2015 तक दबाब को सरकार मे बनाने मे कामयाब न हो सके l देख ले दबाब समूह का सत्ता की ओर रूझान कितना दबाब को कम करता है l
कुछ न किया होता तो एक वर्ष के शिक्षा कर्मी होते थे जो हर वर्ष अतिथि के समान भरे जाते और निकाले जाते l
शिक्षाकर्मी 10 माह काम करता था l तो बाद मे संविदा भी बना साथ मे एक गुरूजी भी रहा है l सभी की एकजुटता ने अध्यापक संवर्ग को जन्म दिलाने मे और कर्मी कल्चर गुरूजी कल्चर,संविदा कल्चर को समाप्त कराने मे सफल रहे है l 1998 से 2013 तक इन्ही सब से मुक्ति मिली है जिसे कम नही कहा जा सकता तब जाके आज वह छठवाँ तक लाया है l
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2013 मे पाटीदारजी ने सत्ता के गलियों मे कदम रखा जिसका परिणाम था कि हम 2 वर्ष 2013 से 2015 तक दबाब को सरकार मे बनाने मे कामयाब न हो सके l देख ले दबाब समूह का सत्ता की ओर रूझान कितना दबाब को कम करता है l
---------- 2015 मे आजाद अध्यापक संगठन की तिरंगा रैली के बाद सरकार दबाब मे थी और सभी संघों के संयुक्त मोर्चा के बाद सरकार दबाब बना था l
लेकिन स्वागत करके आजाद अध्यापक संघ ने दबाब को कम कर दिया l सरकार को घटते दबाब का लाभ मिला कि वह इसे लंबा खीचने की प्रक्रिया जो शासन की होती है वह कामयाब रही l इससे आजाद संघ का नुकसान नहीं हुआ l नुकसान अध्यापक संवर्ग का हुआ जो 1998 से लड़ते हुए हर कल्चर को धोता हुआ आज 2015 मे छठवाँ पाने के नजदीक था l
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ब्रजेश शर्मा के नेतृत्व मे 2016 को संयुक्त मोर्चा ने फिर से दबाब को जीवित किया परिणाम यह हुआ कि सतत आँदोलन के बाद
16 अक्टूबर की शहडोल तिरंगा रैली ने जबरदस्त सरकार पर दबाब बनाया l
सरकार इतने दबाब मे थी कि वह 15 अक्टूबर को आनन फानन मे उल्टा सीधा गणनापत्रक जारी करना पड़ा l
यह होता है संगठन का दबाब कि दो घंटे मे माँग पूरी होती है l
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लेकिन फिर दबाब घटा आजाद संघ को आनन फानन मे जारी आदेश मे विसंगति न दिखी क्यूँ न दिखी कारण सत्ता के गलियों का सुख छूटने का डर यहाँ भूल जाते है कि जब तक दबाब है तभी तक शासन पास बुलाती है l
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ताज्जुब होता है कि कहाँ की नीति है कि दोबारा स्वागत किया जाय और क्यूँ किया जाय l
16 अक्टूबर की शहडोल तिरंगा रैली ने जबरदस्त सरकार पर दबाब बनाया l
सरकार इतने दबाब मे थी कि वह 15 अक्टूबर को आनन फानन मे उल्टा सीधा गणनापत्रक जारी करना पड़ा l
यह होता है संगठन का दबाब कि दो घंटे मे माँग पूरी होती है l
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लेकिन फिर दबाब घटा आजाद संघ को आनन फानन मे जारी आदेश मे विसंगति न दिखी क्यूँ न दिखी कारण सत्ता के गलियों का सुख छूटने का डर यहाँ भूल जाते है कि जब तक दबाब है तभी तक शासन पास बुलाती है l
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ताज्जुब होता है कि कहाँ की नीति है कि दोबारा स्वागत किया जाय और क्यूँ किया जाय l
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इस अध्यापक संघ ने आगे लगातार किये धरा मे पानी फेरने का काम किया है l
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पहली बार किसी को अपने हाथ से जानकर पैर मे कुल्हाड़ी मारते देखा है l
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यदि कर्मी कल्चर से संविदा जो आज अध्यापक है l अध्यापक संघर्ष ने बराबर दबाब बना के रखा जिसका परिणाम था कि हम धीरे धीरे लाभ की ओर अग्रसर है l यदि यही दबाब जीवित रखा को उचित माँगे पूरी होती रहेगी जिसमे कई माँगे शेष है l
एक बात और अध्यापक का निर्माण हो चुका
संविदा और फिर गुरूजी समाप्त कराने मे सफल रहे कारण क्या था l
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हमने शिक्षक संवर्ग और संविदा मे आगोश मे समाये विभाग के कर्मचारी की तरह नही सोचा था जिसका लाभ मिला हमने सबको समेटकर कर्मी कल्चर गुरूजी कल्चर, संविदा कल्चर को एकजायी अध्यापक बनाने मे सफलता हासिल की l
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यह सब 1998 से आज तक के संघर्ष का परिणाम था की दबाब समूह जीवित है l
इस अध्यापक संघ ने आगे लगातार किये धरा मे पानी फेरने का काम किया है l
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पहली बार किसी को अपने हाथ से जानकर पैर मे कुल्हाड़ी मारते देखा है l
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यदि कर्मी कल्चर से संविदा जो आज अध्यापक है l अध्यापक संघर्ष ने बराबर दबाब बना के रखा जिसका परिणाम था कि हम धीरे धीरे लाभ की ओर अग्रसर है l यदि यही दबाब जीवित रखा को उचित माँगे पूरी होती रहेगी जिसमे कई माँगे शेष है l
एक बात और अध्यापक का निर्माण हो चुका
संविदा और फिर गुरूजी समाप्त कराने मे सफल रहे कारण क्या था l
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हमने शिक्षक संवर्ग और संविदा मे आगोश मे समाये विभाग के कर्मचारी की तरह नही सोचा था जिसका लाभ मिला हमने सबको समेटकर कर्मी कल्चर गुरूजी कल्चर, संविदा कल्चर को एकजायी अध्यापक बनाने मे सफलता हासिल की l
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यह सब 1998 से आज तक के संघर्ष का परिणाम था की दबाब समूह जीवित है l
लेकिन शिक्षक संवर्ग की गलती को हम सुधार करने मे सफल न हो सके
जिसका खामियाजा सामने है l
कि हम उस संवर्ग के लाभ तक पहुँचने के लिये अभी सीढ़ियाँ चढ़ रहे है l
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सरकार निजी करण की तरफ
मन लगाने वाली है कारण अभी हारे हुए खिलाड़ी संयास की ओर है l और वह खुद संवर्ग सहित बुझने वाले है l और हमारे बढ़ने मे एक रोड़ा है l
(लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )
जिसका खामियाजा सामने है l
कि हम उस संवर्ग के लाभ तक पहुँचने के लिये अभी सीढ़ियाँ चढ़ रहे है l
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सरकार निजी करण की तरफ
मन लगाने वाली है कारण अभी हारे हुए खिलाड़ी संयास की ओर है l और वह खुद संवर्ग सहित बुझने वाले है l और हमारे बढ़ने मे एक रोड़ा है l
(लेखक स्वयं अध्यापक हैं और यह उनके निजी विचार हैं )
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