Friday, December 16, 2016

तबादला तो चाहिए अध्यापक को, किन्तु विभाग से या सिर्फ स्थान से ? गहन चिन्तन करे अध्यापक -राशी राठौर देवास

जब भी बात स्थानांतरण की आती है ,प्रदेश के लाखो अध्यापको की आंखे नम हो ही जाती है। यह मामला सीधा परिवार से जुडा है। यदि स्थानांतरण के आंकडे पर सरसरी नजर डाले तो 10 से 15 वर्षो से लाखो अध्यापक तबादले की बाट जोह रहै है। तबादला नीती आती भी है तो पहले वर्षो से प्रतिक्षारत अध्यापक भाई बहन को ही प्राथमिकता दी जायेगी जो सही भी है। मतलब लगभग पिछले 8 वर्षो मै नियुक्त अध्यापक का नम्बर वैसे भी नही लगने वाला। तबादला नीती के नियमानुसार मात्र 20% अध्यापकों की समस्या हल हो पायेगी। 100% ऊर्जा लगाकर 20% रिजल्ट ऊर्जा का हास नही तो क्या है। क्योंकि सरकार की अपनी विवशता है।
अब यदि अध्यापक के संघर्ष की कहानी पर नजर डाले तो हर एक छोटी -छोटी सुविधा के लिए ठंडे खाने पडे है। गुरू जैसे शांत प्राणी को आक्रामक होकर मैदान मै लडना पडा है। युद्ध तो चाणक्य ने भी किया था। किन्तु उनका प्रथम प्रहार ही अंतिम प्रहार था व विजयश्री उनके चरणों थी। छटवेवेतनमान ने अध्यापको को आर्थिक सबल दिया है और वे अपनी परिवारिक जिम्मेदारी निभाने मै पहले से ज्यादा सक्षम है।फिर भी इस बात मै संदेह नही है की तबादला एक भावनात्मक मामला है।किन्तु क्या अनुकम्पा नियुक्ति के बाट जोह रहे परिवार के आंसु भावनात्मक मामला नही है। चाइल्ड केयर लीव भी परिवार और ममत्व से जुडा मामला है। क्या अब सातवें वेतनमान के लिए अध्यापको को नही लडना पडेगा। तो कब तक हम इसी तरह लडाकू योद्धा की भूमिका अदा करते रहेंगे।अध्यापको को समान काम का समान दाम तो मिला है ,पर समान नाम और समान विभाग नही मिला। जिनके काम का हम खाते है, जिनका हुकम हम बजाते है(शिक्षा विभाग) ये हमारा दुर्भाग्य ही हो तो है कि हम उनके कुछ नही कहलाते है। विभिन्न सुविधाओं से वंचित सिर्फ एक लाइन लिखकर कर दिया जाता है की आप विभाग के कर्मचारी नही है। अध्यापको को का अंतिम प्रहार शिक्षा विभाग प्राप्त करने के लिऐ होना चाहिए इस एक लक्ष्य को साधने से तबादला, अनुकम्पा, चाइल्ड केयर लीव ही नही बल्कि सातवां वेतनमान की समस्या भी स्वतः ही सध जायेगी।( लेखिका स्वयं अध्य्यापक है,और यह उनके निजी विचार है)

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Friday, December 16, 2016

तबादला तो चाहिए अध्यापक को, किन्तु विभाग से या सिर्फ स्थान से ? गहन चिन्तन करे अध्यापक -राशी राठौर देवास

जब भी बात स्थानांतरण की आती है ,प्रदेश के लाखो अध्यापको की आंखे नम हो ही जाती है। यह मामला सीधा परिवार से जुडा है। यदि स्थानांतरण के आंकडे पर सरसरी नजर डाले तो 10 से 15 वर्षो से लाखो अध्यापक तबादले की बाट जोह रहै है। तबादला नीती आती भी है तो पहले वर्षो से प्रतिक्षारत अध्यापक भाई बहन को ही प्राथमिकता दी जायेगी जो सही भी है। मतलब लगभग पिछले 8 वर्षो मै नियुक्त अध्यापक का नम्बर वैसे भी नही लगने वाला। तबादला नीती के नियमानुसार मात्र 20% अध्यापकों की समस्या हल हो पायेगी। 100% ऊर्जा लगाकर 20% रिजल्ट ऊर्जा का हास नही तो क्या है। क्योंकि सरकार की अपनी विवशता है।
अब यदि अध्यापक के संघर्ष की कहानी पर नजर डाले तो हर एक छोटी -छोटी सुविधा के लिए ठंडे खाने पडे है। गुरू जैसे शांत प्राणी को आक्रामक होकर मैदान मै लडना पडा है। युद्ध तो चाणक्य ने भी किया था। किन्तु उनका प्रथम प्रहार ही अंतिम प्रहार था व विजयश्री उनके चरणों थी। छटवेवेतनमान ने अध्यापको को आर्थिक सबल दिया है और वे अपनी परिवारिक जिम्मेदारी निभाने मै पहले से ज्यादा सक्षम है।फिर भी इस बात मै संदेह नही है की तबादला एक भावनात्मक मामला है।किन्तु क्या अनुकम्पा नियुक्ति के बाट जोह रहे परिवार के आंसु भावनात्मक मामला नही है। चाइल्ड केयर लीव भी परिवार और ममत्व से जुडा मामला है। क्या अब सातवें वेतनमान के लिए अध्यापको को नही लडना पडेगा। तो कब तक हम इसी तरह लडाकू योद्धा की भूमिका अदा करते रहेंगे।अध्यापको को समान काम का समान दाम तो मिला है ,पर समान नाम और समान विभाग नही मिला। जिनके काम का हम खाते है, जिनका हुकम हम बजाते है(शिक्षा विभाग) ये हमारा दुर्भाग्य ही हो तो है कि हम उनके कुछ नही कहलाते है। विभिन्न सुविधाओं से वंचित सिर्फ एक लाइन लिखकर कर दिया जाता है की आप विभाग के कर्मचारी नही है। अध्यापको को का अंतिम प्रहार शिक्षा विभाग प्राप्त करने के लिऐ होना चाहिए इस एक लक्ष्य को साधने से तबादला, अनुकम्पा, चाइल्ड केयर लीव ही नही बल्कि सातवां वेतनमान की समस्या भी स्वतः ही सध जायेगी।( लेखिका स्वयं अध्य्यापक है,और यह उनके निजी विचार है)

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